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Monday, June 9, 2025

पारदर्शिता और प्रवर्तन—उत्तर प्रदेश के राजस्व प्रबंधन का नया अध्याय

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– राजस्व प्रशासन में योगी सरकार का सख्त रुख और संवेदनशील दृष्टिकोण

शरद कटियार

उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार एक बार फिर प्रशासनिक अनुशासन और जवाबदेही की मिसाल पेश कर रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा हाल ही में राज्य कर विभाग की समीक्षा बैठक में दिए गए निर्देश इस दिशा में निर्णायक पहल का संकेत देते हैं। कर संग्रह की प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करना, तकनीकी दक्षता को बढ़ावा देना और प्रभावी प्रवर्तन की रणनीति अपनाना केवल प्रशासनिक आदेश नहीं हैं, बल्कि एक सुविचारित आर्थिक दृष्टिकोण का प्रतीक हैं, जिसका उद्देश्य है – प्रदेश को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनाना और जनकल्याणकारी योजनाओं को मजबूती देना।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कर चोरी को “राष्ट्रीय अपराध” की संज्ञा देते हुए जिस प्रकार से उसकी आलोचना की, वह स्पष्ट करता है कि यह केवल वित्तीय हानि का मामला नहीं है, बल्कि सामाजिक और नैतिक विमर्श का विषय भी है। कर चोरी से जहां राज्य की विकास योजनाएं बाधित होती हैं, वहीं ईमानदारी से व्यापार करने वाले लाखों उद्यमियों के अधिकारों का हनन भी होता है। मुख्यमंत्री का यह कथन कि “कर चोरी का कृत्य ईमानदार व्यापारियों के अधिकारों में सेंध लगाने जैसा है” एक गहरी सच्चाई को उजागर करता है—सक्षम कर प्रणाली में ईमानदारी को प्रोत्साहन मिलना चाहिए, न कि दंड।

मुख्यमंत्री ने राज्य कर विभाग को निर्देशित किया कि शेल कंपनियों और अवैध रूप से पंजीकृत फर्मों की पहचान कर उनके विरुद्ध कठोरतम कार्रवाई की जाए। यह निर्देश न केवल विभागीय चुस्ती का आह्वान है, बल्कि कर प्रणाली की शुचिता को बहाल करने की कोशिश भी है। SGST के अंतर्गत पंजीकृत सभी नई फर्मों का स्थलीय निरीक्षण अनिवार्य बनाना, संदिग्ध फर्मों का पंजीकरण निरस्त करना और आवश्यक होने पर एफआईआर दर्ज करना इस बात का संकेत है कि सरकार अब ‘कागज़ी पंजीकरण’ और ‘बोगस बिलिंग’ की व्यवस्था को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।

राज्य कर विभाग ने अवगत कराया कि वित्तीय वर्ष 2025-26 के निर्धारित ₹1,75,725 करोड़ के लक्ष्य के सापेक्ष अप्रैल-मई में ₹18,161.59 करोड़ GST एवं VAT संग्रहित किया जा चुका है। यह प्रारंभिक प्रदर्शन संतोषजनक तो है, परंतु ज़िलानुसार असमानता सरकार के लिए चिंता का विषय है। लखनऊ, अयोध्या, आगरा, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, मेरठ, झांसी और सहारनपुर जैसे ज़ोन जहां 60% या उससे अधिक लक्ष्य प्राप्त कर चुके हैं, वहां की कार्यप्रणाली प्रशंसनीय है। वहीं वाराणसी प्रथम, प्रयागराज, कानपुर द्वितीय, इटावा, अलीगढ़ और मुरादाबाद जैसे ज़िले जहां लक्ष्य का 50% से भी कम संग्रह हुआ है, वहां कार्यप्रणाली और प्रणालीगत खामियों की विशेष समीक्षा आवश्यक है।

यह असमानता दर्शाती है कि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में राजस्व प्रशासन का एकरूप नहीं है। इसलिए मुख्यमंत्री द्वारा विशेष समीक्षा रिपोर्ट की मांग और फील्ड एक्सपर्ट्स के साथ रणनीतिक विश्लेषण की बात एक विवेकपूर्ण निर्णय है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने व्यापारियों से संवाद को प्राथमिकता देने की जो बात कही, वह वर्तमान में अत्यंत प्रासंगिक है। करदाता और कर प्रशासन के बीच अविश्वास की जो ऐतिहासिक खाई रही है, उसे पार करने का एकमात्र तरीका है – पारदर्शिता और सहभागिता। संवाद आधारित कर प्रशासन की बात करते हुए उन्होंने जो यह स्पष्ट किया कि “राजस्व केवल आंकड़ा नहीं, यह राज्य के विकास की आधारशिला है”, वह कर प्रशासन की भूमिका को केवल एक संग्रह एजेंसी की बजाय सहभागी विकास साधक के रूप में प्रस्तुत करता है।
यह दृष्टिकोण सूचित करता है कि कर संग्रह को लक्ष्य प्राप्ति की संख्या के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसके सामाजिक और आर्थिक प्रभावों को ध्यान में रखकर नीति बनाई जानी चाहिए। व्यापारियों से संवाद, तकनीकी समाधान, और कर शिक्षा—ये सभी मिलकर कर अनुपालन की भावना को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

राजस्व में वृद्धि के लिए तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है। डिजिटल रजिस्ट्रेशन, ट्रैकिंग सिस्टम, ई-वे बिल की सख्ती से निगरानी, और जीआईएस आधारित विश्लेषणात्मक प्रणाली राज्य कर विभाग को आधुनिक बनाएंगे। इन प्रयासों से न केवल कर संग्रह की प्रक्रिया तेज और सटीक होगी, बल्कि करदाता को भी सुविधा मिलेगी, जिससे भ्रष्टाचार की संभावनाएं कम होंगी।

विभागीय अधिकारियों को नवाचार और तकनीक आधारित नीति निर्माण की जो सलाह दी गई, वह इस दृष्टिकोण को समर्थन देती है। यह आवश्यक है कि डेटा विश्लेषण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, और रीयल टाइम मॉनिटरिंग जैसी प्रणालियों को कर प्रशासन का अंग बनाया जाए। इससे जहां कर चोरी को रोकने में मदद मिलेगी, वहीं नीति निर्धारण भी अधिक ठोस और सटीक होगा।

मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि कम कर संग्रह करने वाले जिलों की विशेष रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी और वहां की परिस्थिति का विश्लेषण कर नई रणनीति तैयार की जाएगी। यह कदम यह भी सुनिश्चित करेगा कि नकारात्मक प्रदर्शन की अनदेखी न हो, बल्कि संबंधित अधिकारियों को उनकी जवाबदेही के दायरे में लाया जाए। इसमें फील्ड अधिकारियों की कार्यशैली, बाजार की संरचना, करदाता प्रोफाइल और संसाधनों की उपलब्धता जैसे कारकों को ध्यान में रखकर रणनीति बनाना आवश्यक होगा।

यह भी सुझावनीय है कि कम कर संग्रह करने वाले जिलों के लिए विशेषज्ञ टीमों का गठन कर उन्हें सुधारात्मक उपायों की जिम्मेदारी दी जाए। जहां पर जरूरत हो, वहां प्रशिक्षण, डिजिटल उपकरण और प्रशासनिक सहयोग की व्यवस्था भी की जाए।

एक विशेष बात जो इस पूरी बैठक में उभरकर सामने आई, वह है ईमानदार व्यापारियों को प्रोत्साहन देने की नीति। आज जब अधिकांश व्यापारियों को नियमों के जाल और बार-बार की जांचों से परेशानी होती है, वहां सरकार का यह संकेत कि ईमानदार करदाताओं को सुरक्षा और सहयोग मिलेगा, एक सकारात्मक संकेत है।

सरकार को चाहिए कि वह “ईमानदार करदाता सम्मान योजना” जैसे कार्यक्रमों को फिर से सक्रिय करे या नए प्रारूप में पेश करे ताकि ज़्यादा से ज़्यादा व्यापारी कर प्रणाली में विश्वास और भागीदारी के साथ शामिल हों।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की यह समीक्षा बैठक केवल एक प्रशासनिक औपचारिकता नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के कर प्रशासन में एक गंभीर नीतिगत हस्तक्षेप थी। इसमें विकास और शासन की उस गहराई को उजागर किया गया, जो राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की ओर अग्रसर कर रही है।

राजस्व व्यवस्था को केवल ‘वसूली’ नहीं बल्कि ‘विकास का ईंधन’ मानने का जो नया विमर्श प्रस्तुत हुआ है, वह भारतीय शासन प्रणाली के लिए भी अनुकरणीय है। उत्तर प्रदेश अब कर प्रशासन में भी न केवल अनुशासन और तकनीक का समावेश कर रहा है, बल्कि संवेदनशीलता और संवाद की संस्कृति को भी स्थापित कर रहा है।

करदाता, अधिकारी और सरकार—इन तीनों के बीच विश्वास, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की त्रयी को सशक्त बनाना ही राज्य को आर्थिक रूप से मज़बूत बनाएगा। यही सशक्त उत्तर प्रदेश की आधारशिला होगी।

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