फर्रुखाबाद: जनपद के विकास खंडों में वर्षों से जमे वरिष्ठ सहायक, अकाउंटेंट और बाबुओं ने ब्लॉकों को मानो अपनी जागीर बना लिया है। तबादला नीति (Transfer policy) इनके लिए केवल एक दिखावा है, क्योंकि यही लोग अधिकारियों के लिए प्रधानों और ठेकेदारों से कमीशन का इंतजाम करते हैं।परिणामस्वरूप, ये कर्मचारी वर्षों से एक ही ब्लॉक में जमे हैं और अब इनकी जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि खुद जिला प्रशासन (district administration) भी इन्हें हिला नहीं पा रहा।कमालगंज ब्लॉक (block) के वरिष्ठ सहायक विजय राठौर की पूरी नौकरी इसी ब्लॉक में बीत चुकी है।
इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही, और न ही जिलाधिकारी और मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) की इन पर नजर पड़ रही है बीते सप्ताह तबादले में लेखाकार यशवीर सिंह को बढ़पुर ब्लॉक से मोहम्मदाबाद भेजा गया, लेकिन वहां के बीडीओ ने अभी तक उन्हें कार्यमुक्त नहीं किया। ठीक यही हाल लेखाकार शिवकिशोर रावत का है, जिनका मोहम्मदाबाद से बढ़पुर ट्रांसफर हुआ लेकिन उन्हें भी रोक लिया गया है।इन सभी की ‘सेटिंग’ इतनी जबरदस्त है कि बीडीओ से लेकर बड़े अफसर तक इनकी मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता।
कारण साफ है ये बाबू और लेखाकार ब्लॉक स्तर पर घूसखोरी की पूरी चेन संभालते हैं, जिसमें अधिकारियों को भी हिस्सा जाता है। इसलिए कोई भी इन्हें अनचाही जगह भेजने का जोखिम नहीं उठाना चाहता।राजेपुर से उर्दू अनुवादक बाबू निहाल खां का तबादला बढ़पुर कर दिया गया, और उन्हें विधिवत कार्यमुक्त भी किया गया। लेकिन निहाल बाबू नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए अब भी रोज राजेपुर ब्लॉक पहुंच रहे हैं, मानो कुछ हुआ ही न हो।
पत्र वाहक विवेक बाथम की 10 साल की जमींदारी राजेपुर ब्लॉक में है। कुछ बाबू व लेखाकार तबादला होते ही जनप्रतिनिधियों के घरों की परिक्रमा कर तबादला रुकवाने की जुगत में लग गए हैं।जब ट्रांसफर नीति केवल कागजों में रह जाए, और बाबू अकाउंटेंट अपने रसूख से नियमों को ठेंगा दिखाएं, तो ये प्रशासन की सबसे बड़ी कमजोरी और भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी ताकत बन जाते हैं।अब सवाल उठता है क्या डीएम और सीडीओ भी इन बाबुओं के शिकंजे में हैं? या फिर जिला प्रशासन ने ही आंखें मूंद रखी हैं?जनता जानना चाहती है कि आखिर जिले में किसका राज चल रहा है डीएम का या कमीशन बाबुओं’ का?