प्रशांत कटियार
हर साल 31 मई को जब विश्व तंबाकू निषेध दिवस की बात होती है, तो हमारे सामने अस्पतालों की वे भयावह तस्वीरें तैर जाती हैं जहाँ मरीज फेफड़ों की बीमारियों से तड़प रहे होते हैं, बच्चे बूढ़े गले और मुँह के कैंसर से जूझ रहे होते हैं, और लाखों परिवार अपने किसी प्रियजन को खोने के दर्द से टूट चुके होते हैं। यह दिन सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक चेतावनी है एक ऐसी महामारी की, जो नशे के धुएं में समाज को निगल रही है। लेकिन सवाल उठता है कि जब सरकार और समाज दोनों जानते हैं कि तंबाकू जानलेवा है, तो फिर यह ज़हर खुलेआम बिक क्यों रहा है?
इस प्रश्न का उत्तर सीधा नहीं, बल्कि एक बेहद पेचीदा आर्थिक और राजनीतिक ताने-बाने में उलझा है। भारत सरकार ने 2022 23 में तंबाकू उत्पादों से लगभग 53,000 करोड़ रुपये का कर राजस्व अर्जित किया। यह राशि विकास के विभिन्न क्षेत्रों में खर्च होती है कागजों पर। लेकिन क्या यह राजस्व उन 13 लाख भारतीयों की जान से ज़्यादा मूल्यवान है, जो हर साल तंबाकू से जुड़ी बीमारियों की भेंट चढ़ जाते हैं?
यह दोहरा मापदंड नहीं तो और क्या है कि एक ओर सरकार तंबाकू उत्पादों पर घातक है कैंसर का कारण जैसी चेतावनियाँ छापती है, वहीं दूसरी ओर वही उत्पाद सरकारी अनुमति से देशभर में खुलेआम बिकते है स्कूलों के बाहर, रेलवे स्टेशनों पर, और अब तो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी।
सरकार का रवैया तंबाकू के मामले में एक असहज समझौते जैसा है जहाँ स्वास्थ्य नीति और राजस्व नीति आपस में टकराते हैं। यही वजह है कि तमाम जागरूकता अभियानों, टीवी विज्ञापनों और डरावने चित्रों के बावजूद तंबाकू सेवन पर लगाम नहीं लग पा रही।
विशेष चिंता का विषय यह है कि तंबाकू की पहुँच गरीब तबके और युवाओं तक सबसे ज़्यादा है। जब एक दिहाड़ी मज़दूर अपनी आधी कमाई बीड़ी सिगरेट में झोंक देता है, या एक किशोर गुटखे की लत में फँस जाता है, तो यह केवल व्यक्तिगत मामला नहीं रहता, यह सामाजिक पतन की कहानी बन जाती है।
सरकार अगर सचमुच जनस्वास्थ्य को प्राथमिकता देना चाहती है, तो उसे अब चेतावनियों से आगे बढ़ना होगा। केवल टैक्स बढ़ाना या पैक पर डरावनी तस्वीरें छापना पर्याप्त नहीं है। समस्या की जड़ तंबाकू की वैध उपलब्धता पर प्रहार जरूरी है।यह समय है जब नीति-निर्माताओं को यह तय करना होगा कि वे भविष्य की पीढ़ियों को स्वस्थ जीवन देना चाहते हैं, या फिर वर्तमान की कमाई के लिए उनके जीवन से समझौता करते रहेंगे।