• बाढ़ से प्रभावित राज्यों में पशुधन व चारे की कमी, उत्पादन पर बड़ा असर।
• घी और दुग्ध उत्पादों के दाम बढ़े, त्योहारों पर और उछाल की आशंका।
– यह समय सरकार और डेयरी कंपनियों के लिए भी परीक्षा की घड़ी है।
हृदेश कुमार
लखनऊ।थोक दूध बाजार में इस समय अभूतपूर्व उथल-पुथल देखने को मिल रही है। दूध की मौजूदा स्थिति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कृषि और दुग्ध उत्पादन केवल बाजार का सवाल नहीं है, बल्कि यह लाखों किसानों की आजीविका और करोड़ों उपभोक्ताओं की रसोई से जुड़ा विषय है। जहां एक ओर किसान बढ़े हुए भाव से राहत महसूस कर रहे हैं, वहीं आम जनता महंगे दूध और दुग्ध उत्पादों की चिंता में है। यह समय सरकार और डेयरी कंपनियों के लिए भी परीक्षा की घड़ी है कि वे किस तरह आपूर्ति श्रृंखला को संतुलित रखते हुए किसानों को लाभ और उपभोक्ताओं को राहत दिला पाते हैं। असल सुधार तभी संभव है जब दुग्ध उत्पादन के लिए दीर्घकालिक नीति, पशुपालन को आधुनिक संसाधन और किसानों को टिकाऊ चारा आपूर्ति सुनिश्चित हो। फिलहाल के हालात यही संकेत देते हैं कि आने वाले त्योहारों में दूध और घी-पनीर का स्वाद महंगा ही पड़ेगा।
कई सालों बाद दूध के खरीद भाव आसमान छू गए हैं। बड़ी कंपनियां 62 रुपये से लेकर 63.30 रुपये प्रति लीटर तक दूध खरीद रही हैं, जिससे बाजार में मारा-मारी जैसी स्थिति बनी हुई है। यह दरें पिछले वर्षों की तुलना में काफी ऊंची मानी जा रही हैं।
सबसे बड़ी वजह है कि खपत लगातार बढ़ रही है लेकिन दुग्ध उत्पादन उतनी तेजी से नहीं बढ़ पा रहा है। गर्मी और मौसम के प्रभाव से पशुओं की दूध देने की क्षमता प्रभावित हुई है, वहीं हाल में आई बाढ़ ने भी पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े दुग्ध उत्पादक राज्यों में चारे की भारी कमी, पशुधन को हुए नुकसान और दूध संग्रहण में बाधाएं खड़ी कर दी हैं। इस वजह से उत्पादन और घटा है, जिसका असर सीधा बाजार पर पड़ा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ दूध कंपनियों के बीच कंपटीशन अब पूर्वी उत्तर प्रदेश तक फैल गया है। नामी कंपनियां किसानों को अधिक भाव देकर दूध खरीद रही हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर छोटे खरीदार और सहकारी समितियां दबाव में आ गई हैं। इसका सीधा असर घी और अन्य दुग्ध उत्पादों पर भी दिख रहा है।
हाल ही में घी के भाव 20 रुपए प्रति किलो बढ़ चुके हैं और त्योहारों के सीजन में घी, पनीर और दूध पाउडर जैसी वस्तुओं की कीमतों में और उछाल की आशंका है।
किसान की जुबान अलीगढ़ क्षेत्र:“पहले दूध बेचने पर हमें लागत भी मुश्किल से मिलती थी, अब कंपनियां खुद हमारे दरवाजे पर आकर ज्यादा दाम देने लगी हैं। फायदा है, लेकिन चारा महंगा और कमी का हो गया है।किसान फर्रुखाबाद क्षेत्र गंगा तलहटी:“इस बार बारिश और बाढ़ ने बहुत नुकसान किया। कई पशु बीमार हुए, हरा चारा भी बर्बाद हो गया, ऐसे में ज्यादा दूध निकाल पाना आसान नहीं है।
किसानों के लिए यह समय लाभकारी माना जा रहा है क्योंकि उन्हें दूध का उचित दाम मिल रहा है, लेकिन उपभोक्ताओं को बढ़ते दामों की मार झेलनी पड़ रही है। सरकार की ओर से हाल में जीएसटी में दी गई राहत का असर आगे चलकर दुग्ध उत्पादों के बाजार में जरूर दिखेगा, किंतु विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक उत्पादन सामान्य नहीं होता, तब तक बाजार में तंगी बनी रहेगी।
“भारत का दुग्ध बाजार पूरी तरह मांग और आपूर्ति पर आधारित है। फिलहाल मांग त्योहारों के कारण तेजी से बढ़ रही है, जबकि उत्पादन बाढ़ और मौसम की वजह से दबाव में है। अगले 4–5 महीने दूध और घी-पनीर जैसे उत्पाद ऊंचे दामों पर ही बिकने की संभावना है। हां, जीएसटी में राहत से कुछ स्थिरता आ सकती है, लेकिन असली संतुलन तभी बनेगा जब उत्पादन दोबारा पटरी पर आएगा।”