विजय गर्ग
पृथ्वी के तापमान में वृद्धि के कारण ऐसे रोगजनक सक्रिय हो सकते हैं जिनके बारे में पहले ज्यादा जानकारी नहीं थी । विज्ञानियों ने एस्परजिलस नामक फंगस के बढ़ते प्रसार के प्रति चिंता व्यक्त की है, जिसमें जलवायु परिवर्तन और गर्म तापमान की भूमिका भी शामिल है। यह प्रकार की फफूंदी मानव, पौधों और जानवरों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर सकती है और कुछ मामलों में मृत्यु का कारण भी बन सकती है।
हाल में किए गए एक अध्ययन में ब्रिटेन के शोधकर्ताओं ने फंगस के विस्तार का एक माडल तैयार किया है, जिसमें बताया गया है कि फंगस की तीन प्रजातियां, एस्परजिलस फ्यूमिगेटस, एस्परजिलस फ्लेक्स और एस्परजिलस नाइजर, अगले 70-80 वर्षों में उत्तर की ओर फैलेंगी। मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञानी नार्मन वैन रिजन का कहना है कि आद्रता और चरम मौसम की घटनाओं जैसे पर्यावरणीय कारकों में परिवर्तन, आवासों को बदल देंगे और फंगस के अनुकूलन और प्रसार को बढ़ावा देंगे।
गंभीर जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य के तहत, यूरोप में एस्परजिलस फ्यूमिगेटस का प्रसार 15 वर्षों में 77.5 प्रतिशत बढ़ सकता है, जिससे 90 लाख और लोगों को संक्रमण का खतरा हो सकता है। एस्परजिलस फ्लेक्स, जो गर्म क्षेत्रों को तरजीह देता है, यूरोप में 16 प्रतिशत तक फैल सकता है, जिससे अतिरिक्त 10 लाख लोग जोखिम में पड़ सकते हैं।
इस प्रकार के फंगस संक्रमण कमजोर व्यक्तियों, विशेषकर कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के लिए अधिक खतरनाक हो सकते हैं। फंगस के प्रकोप से फसलें नष्ट हो सकती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में दुनिया की आबादी को भोजन उपलब्ध कराने में चुनौतियां बढ़ सकती हैं। एशिया, यूरोप और अन्य क्षेत्रों में एस्परजिलस फंगस के साथ मानव संपर्क में वृद्धि से सार्वजनिक स्वास्थ्य का बोझ बढ़ सकता है और फसल सुरक्षा परिदृश्य में बदलाव आ सकता है।
इसके अलावा, एक अन्य फंगस, कैंडिडा आरिस भी विज्ञानियों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। यह फंगस भी दुनिया के गर्म होने के साथ- साथ नए क्षेत्रों में फैल रहा है और अन्य प्रजातियों के भी इसके अनुसरण करने की संभावना है। इन फंगस प्रजातियों का एक दूसरा पहलू यह है कि वे पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे पारिस्थितिकी तंत्र को लाभ पहुंचाते हैं, जिसमें कार्बन और पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण शामिल है। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले बदलावों पर विचार करते समय इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखना आवश्यक है। विज्ञानियों का कहना है कि फंगस रोगजनकों के प्रभावों को कम करने के लिए जागरूकता बढ़ाना और प्रभावी चिकित्सीय उपचार विकसित करना भी जरूरी होगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब