– नियामक आयोग ने बिजली कंपनियों से सभी आपत्तियों पर मांगा बिंदुवार जवाब
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित महंगी बिजली दरों (electricity rates) और निजीकरण के मुद्दे पर नियामक आयोग ने आपत्तियों पर जवाब मांगा है। कंपनियों की ओर से दरों में 45% तक बढ़ोत्तरी की याचिका लगाई गई है। इस पर आम उपभोक्ताओं (consumers) ने सुनवाई में अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। नियामक आयोग ने सभी कंपनियों से आपत्तियों पर बिंदुवार जवाब मांगा है। विशेषज्ञों के मुताबिक बिजली कंपनियों ने आपत्तियों पर बिंदुवार संतोषजनक जवाब नहीं दिया तो बिजली दरें यथावत रहेंगी। उपभोक्ता परिषद ने प्रदेश की बिजली कंपनियों पर उपभोक्ताओं का 33 हजार 122 करोड़ रुपए सरप्लस का दावा करते हुए बिजली दरों में 45% की कमी करने की मांग जनसुनवाई में रखी थी।
उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग बिजली की दरों की प्रस्तावित बढ़ोत्तरी पर जनसुनवाई पूरी कर चुका है। इसके अलावा नियामक आयोग में 25 जुलाई को राज्य सलाहकार समिति की बैठक भी हो चुकी है। इस बैठक में भी सदस्यों ने बिजली दर बढ़ाने का विरोध किया था। अब राज्य नियामक आयोग ने सभी आपत्तियों पर बिंदुवार हर कंपनी से जवाब मांगा है। विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 64(3) के तहत बिजली कंपनियों को इन आपत्तियों पर अनिवार्य रूप से जवाब देना होगा। बिना इसके बिजली दरों के निर्धारण की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाएगी। नियामक आयोग के सचिव सुमीत कुमार अग्रवाल ने सभी बिजली कंपनियों के प्रबंध निदेशकों और पावर कॉरपोरेशन की रेगुलेटरी अफेयर यूनिट को लिखित आपत्तियों पर तत्काल जवाब देने के निर्देश दिए हैं।
पूर्वांचल और दक्षिणांचल के निजीकरण प्रस्ताव में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और नियमों के उल्लंघन संबंधी पॉइंट पर भी नियामक आयोग ने बिजली कंपनियों से जवाब मांगा है। बिजली कंपनियों पर उपभोक्ताओं का 33,122 करोड़ रुपए का सरप्लस निकल रहा है। इस आधार पर बिजली दरों में तत्काल 45% की कमी या अगले पांच वर्षों तक प्रतिवर्ष 9% की कमी की जाए।
निजीकरण से 68,000 कर्मचारियों की नौकरियां खतरे में होने का दावा करते हुए समिति ने इसे उपभोक्ताओं और कर्मचारियों के हितों के खिलाफ बताया। निजीकरण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर सहित कई जिलों में हुए।