मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हालिया बयान, “आकाश से भी ऊंची है सनातन (Sanatan) की परंपरा,” न केवल भारतीय संस्कृति की गहराई और ऊंचाई को रेखांकित करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि कैसे सनातन धर्म मानव सभ्यता के लिए मार्गदर्शक बना है। उनकी यह टिप्पणी ‘महाकुम्भ महासम्मेलन’ के दौरान आई, जहां उन्होंने भारत की आध्यात्मिक विरासत, कुम्भ के महत्व और इसके सामाजिक व सांस्कृतिक आयामों पर प्रकाश डाला।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने वक्तव्य में इस तथ्य को रेखांकित किया कि सनातन धर्म न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व की सबसे पुरानी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा है। उन्होंने कहा, “हजारों वर्षों की यह विरासत इतनी समृद्ध है कि इसकी तुलना किसी मत, मजहब या संप्रदाय से नहीं की जा सकती।” यह कथन न केवल सनातन धर्म की सार्वभौमिकता को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि यह धर्म मानवता को जोड़ने का कार्य करता है।
सनातन परंपरा में कुम्भ जैसे धार्मिक आयोजन केवल आध्यात्मिक साधना तक सीमित नहीं हैं। यह आयोजन भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चिंतन के केंद्र रहे हैं। योगी आदित्यनाथ ने इस बात पर जोर दिया कि देवासुर संग्राम के बाद अमृत की बूंदें चार पवित्र स्थलों पर गिरीं—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन स्थलों पर महाकुम्भ का आयोजन केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि ज्ञान और चेतना का महायज्ञ है।
योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश की प्रगति और विकास का उल्लेख करते हुए कहा कि महाकुम्भ 2025 विरासत और विकास का अद्भुत संगम होगा। उन्होंने 2019 के प्रयागराज कुम्भ का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे आधुनिक तकनीक और पारंपरिक संस्कृति का समन्वय किया गया। महाकुम्भ का आयोजन इस बार भी वैश्विक मंच पर भारत की सांस्कृतिक समृद्धि को प्रस्तुत करने का अवसर बनेगा।
उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार ने महाकुम्भ को भव्य बनाने के लिए कई ठोस कदम उठाए हैं। इन प्रयासों से यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और प्रबंधन क्षमता का एक जीता-जागता उदाहरण बनेगा। योगी आदित्यनाथ ने कहा, “महाकुम्भ केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह भारत की राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है।”
मुख्यमंत्री ने हिंदू एकता और राष्ट्रीय एकता के बीच गहरे संबंध पर प्रकाश डाला। उनका यह कथन, “हिंदू एकता और राष्ट्रीय एकता को अलग करके नहीं देखा जा सकता,” भारतीय समाज के मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को समझने का महत्वपूर्ण संकेत देता है। इतिहास साक्षी है कि जब समाज बंटा है, तब देश कमजोर हुआ है, और जब एकजुट हुआ है, तब देश ने विजय प्राप्त की है।
योगी आदित्यनाथ ने सनातन धर्म की शक्ति को ‘शिखर पर रहने वाली परंपरा’ कहकर परिभाषित किया। यह धर्म न केवल भौतिक बल्कि आध्यात्मिक ऊंचाई को भी छूता है। उनके अनुसार, “जो लोग समाज को तोड़ने का काम करते हैं, वे दानव परंपरा के हैं। जबकि जोड़ने वाले मानव परंपरा का हिस्सा हैं।”
वक्फ बोर्ड के नाम पर भूमि पर अवैध कब्जे के मुद्दे पर मुख्यमंत्री का सख्त रुख भी चर्चा का विषय बना। उन्होंने कहा, “वक्फ बोर्ड समझ से परे है कि यह धार्मिक संगठन है या भू-माफियाओं का अड्डा।” उन्होंने साफ किया कि वक्फ बोर्ड द्वारा अवैध रूप से कब्जाई गई भूमि की जांच हो रही है, और इसे गरीबों के लिए आवास, शिक्षण संस्थान और अस्पताल बनाने के लिए वापस लिया जाएगा।
यह निर्णय न केवल भूमि विवादों को सुलझाने में मदद करेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि संसाधनों का उपयोग समाज के विकास के लिए किया जाए। मुख्यमंत्री ने कहा, “कुम्भ की परंपरा वक्फ से कहीं पुरानी है। इसकी गहराई समुद्र से और ऊंचाई आकाश से भी अधिक है।”
योगी आदित्यनाथ ने अपने भाषण में समाज को बांटने वाले तत्वों पर भी कड़ा प्रहार किया। उन्होंने कहा, “जो विदेशी पैसों के दम पर समाज को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, वे देशद्रोही हैं।” यह बयान भारत में सांस्कृतिक और सामाजिक विभाजन फैलाने वाले तत्वों पर उनकी सरकार की कठोर नीति को दर्शाता है।
मुख्यमंत्री ने ऐसे तत्वों को ‘विदेशी जूठन खाने वाले लोग’ कहकर संबोधित किया और जनता को इनके खिलाफ सतर्क रहने की अपील की। यह बयान भारतीय समाज की एकता और अखंडता को बनाए रखने के उनके संकल्प को दर्शाता है।
महाकुम्भ को लेकर मुख्यमंत्री का दृष्टिकोण केवल धार्मिक नहीं है। उनके अनुसार, यह आयोजन जाति, पंथ और लिंग भेद को समाप्त करता है। महाकुम्भ का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना है।
उन्होंने कहा कि महाकुम्भ भारत के ऋषि-मुनियों की तपस्या और चिंतन का परिणाम है। यह आयोजन न केवल परंपरा का सम्मान है, बल्कि इसे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने का भी माध्यम है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वक्तव्य में भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत के प्रति उनकी गहरी समझ और सम्मान झलकता है। सनातन धर्म केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि मानवता का मार्गदर्शन करने वाला एक आदर्श है।
महाकुम्भ जैसे आयोजन न केवल भारत की समृद्धि और एकता का प्रतीक हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि भारत ने अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए आधुनिकता को अपनाया है। मुख्यमंत्री का यह बयान आने वाले महाकुम्भ के प्रति न केवल उत्साह पैदा करता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और प्रचारित करने का आह्वान भी करता है।
सनातन की परंपरा आकाश से भी ऊंची और समुद्र से भी गहरी है। यह परंपरा न केवल भारत की पहचान है, बल्कि यह मानवता को जोड़ने वाला एक अद्वितीय सूत्र भी है।