– बिजली निजीकरण को लेकर ऊर्जा विभाग और कर्मचारी संघ आमने-सामने
– ऊर्जा विभाग ने कसी कमर
लखनऊ: उत्तर प्रदेश (UP) में बिजली के निजीकरण (electricity privatization) को लेकर गर्माई बहस के बीच सोमवार का दिन निर्णायक माना जा रहा है। ऊर्जा विभाग और राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद (State Electricity Consumer Council) दोनों ही आज नियामक आयोग का रुख करेंगे। मामला पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के 42 जिलों के निजीकरण से जुड़ा है, जिस पर नियामक आयोग में जोरदार बहस की संभावना है। खबर लिखे जाने तक कोई फैसले की कोई आधिकारिक सूचना नहीं प्राप्त हुई है।
ज्ञात हो की ऊर्जा विभाग बिजली निजीकरण प्रस्ताव को एक बार फिर विद्युत नियामक आयोग के समक्ष रखने की तैयारी में है। विभाग ने आयोग की पिछली आपत्तियों को दूर कर नया मसौदा तैयार किया है और सोमवार को इसे पेश किया जाएगा। विभाग की रणनीति है कि नियामक आयोग की स्वीकृति मिलने के बाद आगे की प्रक्रिया को गति दी जाए।
वहीं, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद भी पूरी तैयारी के साथ आयोग पहुंचेगा। परिषद आयोग में विधिक आपत्ति दाखिल कर निजीकरण प्रस्ताव को रद्द करने की मांग करेगा। परिषद का तर्क है कि निजीकरण से जुड़े कई दस्तावेज फिलहाल सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में लंबित हैं। ऐसे में जब तक न्यायालयों से स्थिति स्पष्ट नहीं होती, निजीकरण पर निर्णय लेना अनुचित होगा।
परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि बीते पांच वर्षों में आयोग द्वारा जारी बिजली दर आदेशों को लेकर बिजली कंपनियों और पावर कॉरपोरेशन ने अपीलेट ट्रिब्यूनल में मुकदमे दर्ज कर रखे हैं। उन्होंने कहा कि यह साबित करता है कि नियामक आयोग और बिजली कंपनियों के बीच पारदर्शिता की कमी है, ऐसे में निजीकरण जैसे बड़े फैसले को जल्दबाजी में पास नहीं किया जाना चाहिए। इस पूरे घटनाक्रम के बीच विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति भी सक्रिय हो गई है। रविवार को हुई बैठक में तय किया गया कि यदि नियामक आयोग निजीकरण से जुड़े दस्तावेजों को मंजूरी देता है, तो समिति आयोग कार्यालय के बाहर मौन प्रदर्शन करेगी।
समिति ने आरोप लगाया कि यह प्रस्ताव निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने की मंशा से तैयार किया गया है। संघर्ष समिति ने यह भी याद दिलाया कि नियामक आयोग के वर्तमान अध्यक्ष अरविंद कुमार पूर्व में पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष रहे हैं। 5 अक्टूबर 2020 को उन्होंने समिति के साथ लिखित समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें यह स्पष्ट था कि बिना बिजलीकर्मियों की सहमति के निजीकरण नहीं किया जाएगा। ऐसे में दस्तावेज को मंजूरी देना उस समझौते का उल्लंघन माना जाएगा।
विद्युत तकनीकी कर्मचारी एकता संघ उत्तर प्रदेश के केन्द्रीय अध्यक्ष वी के सिंह ने बताया कि निजीकरण और कुछ नहीं सरकारी संपत्तियों को कौड़ियों के दाम पर पूंजीपतियों को बेचना है जिससे गरीब जनता, किसान, नौकरी में आरक्षण एवं कर्मचारियों पर इसका बहुत बुरा परिणाम होने वाला, इससे उपभोक्ताओं और कर्मचारिओं की हानि ही होगी। कर्मचारियों की छटनी, बिजली दर में बढ़ोत्तरी मंहगाई और बेरोजगारी दोनों को बढ़ाएंगे। आज होने वाली सुनवाई और दलीलों के बाद यह तय होगा कि उत्तर प्रदेश की बिजली व्यवस्था में निजीकरण को आगे बढ़ाया जाएगा या नहीं। सभी पक्षों की नजरें नियामक आयोग के फैसले पर टिकी हैं।