41.5 C
Lucknow
Thursday, June 12, 2025

सियासत, साम्राज्य और सौदे: संजय सेठ और शालीमार ग्रुप की वो कहानी जिसे जानना बाकी है!

Must read

शरद कटियार।

लखनऊ: एक नाम है जो लखनऊ के रियल एस्टेट में ‘ब्रांड’ बन चुका है – शालीमार ग्रुप। और इस ब्रांड के पीछे जो शख्स है, उसका नाम है संजय सेठ। लेकिन संजय सेठ सिर्फ एक बिल्डर नहीं हैं, बल्कि वो उस राजनीति की उपज हैं जहां सत्ता, जमीन और समझौते एक-दूसरे के पूरक बन चुके हैं।

आज शालीमार ग्रुप लखनऊ के सबसे महंगे इलाकों – हजरतगंज, गोमतीनगर विस्तार, सीतापुर रोड और चिनहट – में शाही टावर खड़ा कर चुका है। लेकिन सवाल ये है कि ये सफलता सिर्फ बिजनेस स्किल से आई या राजनीतिक कृपा से सिंचाई हुई बाग से?

फर्श से अर्श तक: LDA की मेहरबानी या सियासी ताकत का खेल?

राजधानी लखनऊ में ज़मीन का खेल सदा ही बड़ा रहा है। लेकिन 2004 से 2007 और फिर 2012 से 2017 की सपा सरकारों में संजय सेठ को LDA (लखनऊ विकास प्राधिकरण) से जिस स्तर पर ज़मीनें मिलीं, वो हैरान करने वाला है। सूत्रों के मुताबिक, सिर्फ इकाना स्टेडियम के आसपास की ज़मीन ही नहीं, बल्कि गोमतीनगर एक्सटेंशन, सुल्तानपुर रोड, कुर्सी रोड और अलीगंज तक में LDA से उन्हें बड़ी मात्रा में ज़मीन बेहद कम दरों पर अलॉट हुई।

Sanjay Seth: Founder & Mentor at Shalimar Corp

इस दौरान उनकी सीधी साझेदारी प्रतीक यादव से मानी गई – जो खुद मुलायम सिंह यादव के दत्तक पुत्र हैं। संजय सेठ ने न सिर्फ प्रतीक यादव के परिवार से नजदीकियां बनाईं बल्कि विक्रमादित्य मार्ग स्थित अपने ही बंगले के पास एक कोठी बनाकर प्रतीक और अपर्णा यादव को भेंट भी की।

इनकम टैक्स रेड और एमएलसी की ठंडी होती फाइल

2014 में जब सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने संजय सेठ का नाम गवर्नर कोटे से एमएलसी के लिए प्रस्तावित किया, तभी उनके ठिकानों पर इनकम टैक्स की बड़ी रेड पड़ी। करोड़ों की बेहिसाब नगदी और दस्तावेज मिलने के बाद माहौल बदल गया।

गवर्नर राम नाइक ने कहा कि “ऐसे भ्रष्ट व्यक्ति को एमएलसी नहीं बनाया जा सकता।” इसके बाद सेठ की फाइल महीनों तक शासन में घूमती रही। हर बार फाइल लौटकर आ जाती और उस पर “अनुशंसा नहीं” की टिप्पणी होती।

जब सियासत ने रास्ता निकाला: राज्यसभा की कुर्सी का तोहफा

साल 2016 में संजय सेठ को सपा सरकार ने राज्यसभा का टिकट थमा दिया – बताया जाता है कि इस बार प्रतीक और अपर्णा यादव ने सिफारिश को दबाव में बदला। इस दौरान सेठ सपा के बड़े ‘फंडर’ बन चुके थे और पार्टी के भीतर उनका रसूख अपने चरम पर था।

उत्तर प्रदेश में जब 2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी, तो संजय सेठ को सियासत की हवा पहचान में देर नहीं लगी। उन्होंने सपा से इस्तीफा देकर सीधे भाजपा का दामन थाम लिया—और ये सब हुआ अपर्णा यादव की मध्यस्थता से।

अपर्णा खुद भी भाजपा में शामिल हो चुकी थीं और उन्होंने सेठ की ‘शिफ्टिंग’ में प्रमुख भूमिका निभाई।

इसके बाद जब राज्यसभा चुनाव हुए, तो सेठ भाजपा के समर्थन से फिर से राज्यसभा पहुंच गए, जबकि वे पहले सपा कोटे से आए थे। यह एक ऐतिहासिक ‘क्रॉस-वोटिंग’ घटनाक्रम था, जिसमें उन्होंने अपनी राजनीतिक उपयोगिता फिर से साबित की।

Must read

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article