गंगा-जमुनी तहज़ीब और सूफियाना रंग में रंगा ऐतिहासिक उर्स, विभिन्न मजहबों के लोगों ने पेश की अकीदत
फतेहगढ़: शहर की ऐतिहासिक और गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल, दरगाह हज़रत मखदूम (Dargah Hazrat Makhdoom) शाह सय्यद शहाबुद्दीन औलिया अलैहि रहमा पर ज़िल्हिज्जा की 16वीं शरीफ को छठा सालाना उर्स-ए-क़ुतुबुल अक़ताब शमसी तेहरानी अलैहि रहमा टोंकवी (Urs-e-Qutubul Aqtab Shamsi Tehrani Alaihi Rahma Tonkvi) बड़े ही अकीदतमंदाना और रूहानी माहौल में मनाया गया। इस मौके पर दूर-दराज़ से बड़ी संख्या में आए जायरीनों ने फूल और चादर पेश कर अपनी श्रद्धा जताई। मजहबी एकता और आपसी भाईचारे का अद्भुत दृश्य इस उर्स में देखने को मिला, जिसमें सभी धर्मों के श्रद्धालुओं ने शिरकत कर इंसानियत और मोहब्बत का पैग़ाम दिया।
कार्यक्रम की सरपरस्ती कर रहे दरगाह के नायब सज्जादा नशीन शाह मुहम्मद वसीम उर्फ़ मुहम्मद मियां ने अपने संबोधन में कहा कि “दरगाहें हमेशा से आपसी भाईचारे, मोहब्बत और इंसानियत की मिसाल रही हैं। सूफी संतों की तालीम हमें सिखाती है कि धर्म कोई दीवार नहीं, बल्कि इंसानियत को जोड़ने का पुल है।”
उन्होंने कहा कि आज के दौर में जब समाज में नफरत पनप रही है, सूफी संतों की शिक्षाएं हमें फिर से अमन और भाईचारे की राह दिखा सकती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि औलिया-ए-किराम के आस्ताने पर आने से रूहानी फैज़ के साथ-साथ इंसानियत का भी पैग़ाम मिलता है।
सूफियाना कलामों ने बांधा समां
इस मौके पर मशहूर क़व्वाल कमालुद्दीन ने अपने बेहतरीन कलामों से समां बांध दिया:
“तू बड़ा गरीब नवाज है, है दयारे फ़ैज़ो अता यही — ये दरे गरीब नवाज़ है”
“इश्क़ में तेरे कोहे ग़म सर पे लिया जो हो सो हो…”
इसक अतिरिक्त हाफिज फरहान सबरी, अयान साबरी और आरिश साबरी ने कुरान पाक की तिलावत कर महफिल को पाकीज़गी से भर दिया। अजहर हुसैन, अंसार साबरी, हाजी इशरत साबरी, रफ़त हुसैन, हनीफ भाई, मोवीन सबरी, राहुल, आकाश, शिवम आदि उपस्थित रहे और आयोजन को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। कार्यक्रम के अंत में सभी श्रद्धालुओं को लंगर वितरित किया गया, जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोगों ने भाग लिया।