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Wednesday, November 19, 2025

नई राजनीति का चमकता सितारा: चिराग पासवान का उदय और बिहार की बदलती राजनीतिक दिशा

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– समाजवाद, संवैधानिक संतुलन, सबका साथ—इन तीन धुरी पर खड़ा एक नया दलित नेतृत्व, जो बिहार की राजनीति को नई परिभाषा दे रहा है

– शरद कटियार

भारतीय राजनीति (indian politics) में कुछ नेता अपनी पहचान केवल नाम या वंश के आधार पर नहीं बनाते, बल्कि अपने विचारों, शैली और साहसिक निर्णयों से एक अलग स्थान अर्जित करते हैं। बिहार के युवा नेता चिराग पासवान (Chirag Paswan) आज उस नई पीढ़ी के प्रतीक बनकर उभर रहे हैं, जो राजनीति को जाति, धर्म और विभाजन की संकीर्ण सीमाओं से बाहर निकालकर विकास, सहभागिता और विश्वास पर आधारित करना चाहती है।

चिराग की राजनीति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे अपने पिता की तरह मुसलमानों या आरक्षण को राजनीतिक हथियार बनाकर वोट नहीं मांगते। वे न तो हज सब्सिडी बढ़ाने की राजनीति करते हैं और न ही जातिगत ध्रुवीकरण का सहारा लेते हैं। इसके बजाय वे सनातन संस्कृति, सामाजिक संतुलन, विकास की राजनीति और प्रत्येक वर्ग के सम्मान की बात करते हैं।

वे पिछड़ों, दलितों और वंचितों के अधिकारों पर स्पष्ट रुख रखते हैं, लेकिन साथ ही आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालकर स्थायी राजनीतिक ध्रुवीकरण के खिलाफ खड़े नजर आते हैं। उनकी राजनीति का मूल मंत्र है—“बंटवारे से नहीं, विश्वास से राजनीति।” पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद एलजेपी (आर) ने लोकसभा में 100% स्ट्राइक रेट हासिल कर बड़ा संदेश दिया। बिहार विधानसभा में भी लगभग 70% स्ट्राइक रेट ने उनकी रणनीति, नेतृत्व क्षमता और जनता के विश्वास को प्रमाणित किया।

यह आंकड़े सिर्फ विजय नहीं हैं, बल्कि यह संकेत हैं कि जो नेता जाति-धर्म से ऊपर उठकर सबकी बात करेगा, वही सत्ता में निर्णायक भूमिका निभाएगा। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में चिराग ने एक संतुलित और अत्यंत साहसिक सामाजिक समीकरण रखा,

30% टिकट सवर्णों को,
35% टिकट ओबीसी को,
35% टिकट दलितों को।

सबसे बड़ी बात यह कि सवर्ण उम्मीदवारों ने 96% स्ट्राइक रेट के साथ जीत हासिल कर पार्टी की सामाजिक स्वीकार्यता को नए स्तर पर पहुंचा दिया। बिहार के शिक्षा मॉडल की तरह यह राजनीतिक मॉडल भी भविष्य में अन्य राज्यों के लिए एक सीख बन सकता है। वर्तमान समय में कुछ राजनीतिक ताकतें समाज में नफरत और विभाजन की रेखाएं खींचने का प्रयास कर रही हैं। लेकिन चिराग पासवान इस माहौल का जवाब विकास, रोजगार, शिक्षा, आर्थिक अवसरों और सामाजिक भाईचारे से दे रहे हैं।

उनकी सभाओं और चुनावी भाषणों में नारा नहीं—विकास की ठोस रूपरेखा दिखती है। उनके भाषणों में आक्रोश नहीं—आत्मविश्वास और समाधान का मानचित्र होता है। चिराग पासवान आज एक ऐसे उभरते दलित नेता के रूप में सामने आ रहे हैं, जो खुद को सिर्फ दलित नेता तक सीमित नहीं रखते। जो हर समाज, हर वर्ग, हर उम्र के व्यक्ति के भरोसे को महत्व देते हैं। और जो बिहार को नई पीढ़ी के सपनों के अनुरूप ढालना चाहते हैं

एलजेपी (आर) ने बिहार में अपने विधायक दल का नेता राजू तिवारी को चुना है, जो संगठनात्मक मजबूती और जनाधार दोनों में सक्षम माने जाते हैं। इसका सीधा संदेश है—पार्टी युवा सोच और संतुलित नेतृत्व के साथ आगे बढ़ रही है। चिराग पासवान ने साबित कर दिया है कि राजनीति केवल जातीय समीकरणों का खेल नहीं है; यह विचारों, दूरदृष्टि, जोखिम लेने की क्षमता और जनसरोकारों के प्रति सच्चे समर्पण का नाम है। यदि यह गति और यह शैली जारी रही, तो आने वाले समय में चिराग न सिर्फ बिहार की राजनीति में निर्णायक चेहरा, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रभावशाली दलित नेतृत्व के रूप में स्थापित होंगे।

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