(एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट – इटावा जिले की एक चौंकाने वाली घटना पर)
प्रवीन कुमार (जिला संवाददाता) इटावा, उत्तर प्रदेश: धार्मिक विश्वासों के नाम पर लोगों की आस्था से खिलवाड़ करना न सिर्फ नैतिक अपराध है, बल्कि कई बार यह विधिक दायरे में भी दंडनीय होता है। इटावा जिले में हाल ही में एक ऐसी ही घटना ने पूरे क्षेत्र में सनसनी फैला दी, जिसमें एक व्यक्ति ने राष्ट्रीय पहचान पत्र (आधार कार्ड) में असली पहचान छिपाकर पंडिताई, कथा वाचन और ब्राह्मण धर्माचार्य का रूप धारण कर वर्षों तक ब्राह्मण समाज और श्रद्धालुओं को गुमराह किया।
घटना का संक्षिप्त विवरण: एक व्यक्ति, जिसकी मूल जाति ब्राह्मण नहीं थी, ने फर्जी पहचान बनाकर खुद को “पंडित” घोषित किया। आधार कार्ड में नाम व पहचान बदलकर वह वर्षों से विभिन्न धार्मिक आयोजनों में कथा वाचन, यज्ञ अनुष्ठान और पूजन कर्म करता रहा। उसकी विद्वत्ता के नाम पर दिखावटी शैली, मधुर वाणी और राजनैतिक संपर्कों ने लोगों को भ्रमित कर दिया। लेकिन हाल ही में, कुछ स्थानीय सामाजिक संगठनों और जागरूक व्यक्तियों की जांच में खुलासा हुआ कि उक्त व्यक्ति की जाति ब्राह्मण नहीं है और उसने झूठे दस्तावेजों के सहारे धार्मिक पेशा अपनाया है।
कानूनी प्रावधान के अन्तर्गत भारत के संविधान और विधियों के अनुसार, नीचे दिए गए अपराधों की श्रेणी में यह मामला आता है:
1. भारतीय दंड संहिता (IPC):
धोखाधड़ी (Section 420 IPC): झूठ बोलकर लाभ कमाना।
फर्जी दस्तावेज तैयार करना (Section 468 & 471 IPC): नकली पहचान पत्र/आधार कार्ड का प्रयोग।
धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना (Section 295A IPC): जानबूझकर धार्मिक विश्वासों के साथ धोखा।
2. आई.टी. एक्ट के तहत:
यदि डिजिटल माध्यमों में फर्जी पहचान बनाई गई हो तो IT Act, 2000 की धाराएं भी लागू हो सकती हैं।
3. आधार अधिनियम, 2016:
फर्जी जानकारी देकर आधार कार्ड बनवाना कानूनन अपराध है और इसके लिए ₹10,000 तक का जुर्माना या तीन साल तक की सजा हो सकती है।
धर्म और समाज पर प्रभाव:
1. ब्राह्मण समाज की गरिमा पर आघात: यह घटना ब्राह्मण समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं का सार्वजनिक रूप से अपमान है।
2. श्रद्धालुओं में भ्रम और आस्था का संकट: जो लोग इस पंडित को धार्मिक गुरु मानते थे, अब ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
3. गुरु-शिष्य परंपरा की छवि धूमिल: धर्म का उपदेश देने वाले का यदि चरित्र ही झूठा निकले तो शास्त्रों की प्रतिष्ठा भी प्रश्नचिन्ह के घेरे में आ जाती है।
पुलिस की एक पक्षीय कार्यवाही पर उठने लगे सवाल, जन आक्रोश और जवाबदेही?
स्थानीय लोगों द्वारा ढोंगी पंडित की सार्वजनिक तौर पर मारपीट बेइज्जत करने की खबरें सामने आई हैं। सोशल मीडिया पर भी इस पर भारी प्रतिक्रिया हो रही है। कई धार्मिक संगठनों ने प्रशासन से इस विषय पर कठोर कानूनी कार्रवाई की मांग की है। अब आगे देखना यह है कि पुलिस के आला अफसर राष्टीय पहचान पत्र आधार कार्ड से छेड़छाड़ करने और धोखाधड़ी में क्या कार्यवाही करते है यह इटावा जिले की पुलिस के लिए मुसीबत बन गया है।
राजनीतिक रंग भी गहराया:
घटना के बाद कुछ स्थानीय राजनीतिक दलों ने इसे जातिगत रंग देते हुए राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की। ‘ब्राह्मण विरोध’ और ‘जातिगत उत्पीड़न’ जैसे मुद्दों को हवा देने की कोशिश भी देखी गई, जिससे स्थिति और अधिक संवेदनशील हो गई। धर्म, जाति और पहचान को लेकर झूठ बोलना न सिर्फ एक सामाजिक अपराध है, बल्कि यह समाज की आस्था, परंपरा और कानून सभी के साथ धोखा है। इटावा की यह घटना समाज को सचेत करने वाली है — कि धर्म के मंच पर कोई भी व्यक्ति तब तक पूज्य नहीं हो सकता जब तक उसका चरित्र, ज्ञान और आचरण पारदर्शी न हो।
अब जरूरत है कि कानून अपना काम करे, और समाज मिलकर इस तरह के ढोंगियों को पहचान कर उजागर करता रहे।