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Thursday, November 27, 2025

गरीबी का दर्द: सड़े आलू खा जिंदगी काट गरीब संतोष का परिवार …

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– पीएम मोदी और सीएम योगी के राज में राशन कार्ड होते हुए भी नहीं मिल रहा अनाज; बदहाली में जी रहा पांच बच्चों का परिवार
– सोशल मीडिया से पता चला तो समाजसेवी अजीत यादव मदद करने पहुंचे

फर्रुखाबाद: थाना मऊदरवाजा क्षेत्र के गांव टीमरूआ (Village Timarua) का एक परिवार (family) ऐसी बदहाली के दौर से गुजर रहा है, जिसे देखकर अच्छे-अच्छों की आंखें नम हो गईं। संतोष कुमार श्रीवास्तव, जो अपने पांच मासूम बच्चों और पत्नी के साथ कच्चे, जर्जर घर में रहते हैं—एक ऐसी जगह जहाँ न छत है, न दीवारों पर प्लास्टर, और न ही घर चलाने के लिए कोई स्थायी आय।

सबसे पीड़ादायक बात यह है कि राशन कार्ड होने के बावजूद संतोष को आज तक सरकारी अनाज नहीं मिला। परिणाम यह कि परिवार फेंके हुए सड़े आलू चुनकर किसी तरह एक वक्त की रोटी जुटा पा रहा है। जब 26 नवंबर 2025 को यह दर्दनाक हाल सोशल मीडिया के माध्यम से सामने आया तो श्रद्धा और संवेदना के साथ अजीत यादव अपने साथियों वीरेंद्र सिंह सोमवंशी और प्रदीप सिंह के साथ तुरंत मौके पर पहुंचे। वहां जो दृश्य उन्होंने देखा, उसने सभी को भीतर तक झकझोर दिया।

कोल्ड स्टोरेज से फेंके जाने वाले खराब आलुओं के ढेर में से थोड़ा-बहुत सही आलू चुनकर, संतोष अपने परिवार का जीवन चलाने को मजबूर है। बच्चों के पास पहनने को गर्म कपड़े नहीं, और ठंड में बचाने के लिए घर में कोई ढंग की छत तक नहीं है। इस बदहाली को देखकर उपस्थित लोगों की आंखें भर आईं। मानवीय संवेदना दिखाते हुए अजीत यादव ने तुरंत परिवार को राशन,ठंड से बचने के लिए कंबल, और आर्थिक सहायता प्रदान की, ताकि बच्चों को कम से कम कुछ दिन की राहत मिल सके।

सरकार भले ही गरीबों के लिए बड़ी-बड़ी योजनाओं का दावा करती हो,पर टीमरूआ के संतोष कुमार की कहानी बताती है कि ज़मीन पर हालात कितने भयावह हैं। राशन कार्ड है – पर अनाज नहीं, मकान है – पर छत नहीं, बच्चे हैं – पर दो वक्त की रोटी का भरोसा नहीं, यह कहानी सिर्फ संतोष की नहीं, बल्कि व्यवस्था की विफलता का जीवंत चित्रण है।
क्या किसी भी योजना का लाभ पाने के लिए लगातार संघर्ष और सोशल मीडिया की चीख-पुकार ही एकमात्र रास्ता बच गया है?

क्या टीमरूआ जैसे गांवों में रहने वाले गरीबों को मानव जीवन की न्यूनतम सुविधाएँ भी नसीब नहीं? संतोष कुमार का परिवार आज भी रोज़ मेहनत, संघर्ष और अभाव में जी रहा है।लेकिन उनकी कहानी समाज और शासन—दोनों से यह सवाल पूछती है,“क्या हम सच में एक विकसित और संवेदनशील भारत की तरफ बढ़ रहे हैं?”

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