शरद कटियार
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र की भूगोलिक एवं आर्थिक संरचना में एक नए युग की शुरुआत हो चुकी है। यह शुरुआत किसी साधारण उद्घाटन या रस्म अदायगी से नहीं, बल्कि उस महत्वाकांक्षी सोच और इच्छाशक्ति के परिणामस्वरूप हुई है, जो ‘नए भारत’ के निर्माण में ‘नए उत्तर प्रदेश’ की भूमिका को पुनर्परिभाषित कर रही है। गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे का लोकार्पण महज़ एक परियोजना का शुभारंभ नहीं, बल्कि पूर्वांचल की आकांक्षाओं को पंख देने का क्षण है।
गोरखपुर से आजमगढ़ तक फैला यह 91.352 किलोमीटर लंबा और चार लेन चौड़ा एक्सप्रेसवे आज जब जनता को समर्पित किया गया, तो वह दृश्य केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि एक बड़ी नियामक सोच का प्रतिबिंब था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में यह उद्घाटन न केवल विकास की प्रतीकात्मक तस्वीर बन गया, बल्कि यह स्पष्ट संदेश भी दे गया कि अब उत्तर प्रदेश विकास की धुरी लखनऊ और नोएडा तक सीमित नहीं रहने वाला।
यह परियोजना राज्य के उन क्षेत्रों को जोड़ने का कार्य कर रही है जिन्हें दशकों तक ‘पिछड़ा’, ‘अविकसित’ या ‘सामाजिक-राजनीतिक हाशिये’ पर देखा जाता रहा।
पूर्वांचल एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ प्राकृतिक संसाधन भरपूर हैं, जनशक्ति प्रचुर है, सांस्कृतिक परंपराएँ गहरी हैं, लेकिन आर्थिक दृष्टि से यह लंबे समय तक उपेक्षित रहा है। यहाँ के किसान, युवा, व्यापारी, कामगार और छात्र-छात्राएं वर्षों से इस क्षेत्र के विकास के लिए एक ठोस आधारभूत संरचना की बाट जोह रहे थे।
एक्सप्रेसवे जैसी सड़कें केवल यातायात का माध्यम नहीं होतीं, बल्कि वे अर्थव्यवस्था की नाड़ी होती हैं। एक ओर ये औद्योगिक निवेशकों के लिए नया द्वार खोलती हैं, तो दूसरी ओर किसानों के उत्पादों को बाज़ार तक शीघ्र और सस्ते तरीके से पहुँचाने का रास्ता भी बनती हैं।
इस परियोजना की लागत ₹7,283 करोड़ आँकी गई है और इसे उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (UPEIDA) ने निष्पादित किया है। इस एक्सप्रेसवे में आधुनिक ट्रैफिक नियंत्रण प्रणाली, टोल प्लाजा, अंडरपास, इंटरचेंज, ब्रिज और सुरक्षा मानकों का समावेश किया गया है। यह पूरी तरह चार लेन का है और भविष्य में इसे छह लेन तक विस्तारित करने की योजना भी है।
कृषि, उद्योग और पर्यटन—तीनों ही क्षेत्रों में इसका प्रभाव आने वाले वर्षों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होगा। गोरखपुर, मऊ, आजमगढ़ और आस-पास के जिलों से अब दिल्ली, लखनऊ, बनारस और प्रयागराज जैसे प्रमुख व्यापारिक केन्द्रों तक सीधा और तेज़ संपर्क स्थापित हो सकेगा।
किसी भी बड़ी परियोजना की सफलता के पीछे दो मुख्य आधार होते हैं—राजनीतिक इच्छाशक्ति और लोकसहभागिता। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार ने यह सिद्ध किया है कि यदि नीयत साफ हो और संकल्प दृढ़, तो बड़ी से बड़ी परियोजना भी समयबद्ध तरीके से पूरी की जा सकती है।
मुख्यमंत्री के वक्तव्य में ‘विकास के साथ संवाद’, ‘अधिग्रहण के साथ सम्मान’ और ‘संरचना के साथ सहमति’ जैसे शब्द नारे नहीं, बल्कि व्यवहारिक नीति के संकेतक हैं। ज़मीन अधिग्रहण की प्रक्रिया में किसानों और ज़मीन मालिकों को जो सम्मान और पारदर्शिता दी गई, वह राज्य सरकार की संवेदनशीलता का उदाहरण है।
कार्यक्रम स्थल पर उपस्थित हजारों लोगों की आँखों में जो चमक थी, वह केवल समारोह की सजावट नहीं, बल्कि आने वाले उज्जवल भविष्य की झलक थी। स्थानीय व्यापारियों का मानना है कि अब उनके लिए बड़े बाजारों तक पहुँचना आसान होगा और परिवहन लागत में भी कमी आएगी।
किसानों के लिए यह परियोजना वरदान बनकर सामने आई है। अब वे अपने कृषि उत्पादों को गोरखपुर से बनारस या लखनऊ तक न्यूनतम समय और लागत में पहुँचा सकेंगे। यही नहीं, युवा वर्ग भी अब इस उम्मीद से है कि एक्सप्रेसवे के किनारे विकसित होने वाले औद्योगिक क्लस्टर उन्हें स्थानीय रोजगार के नए अवसर देंगे, जिससे ‘पलायन’ की विवशता भी कम होगी।
गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे केवल एक संरचना नहीं, बल्कि यह शासन के उस दृष्टिकोण का प्रतिबिंब है जो विकास को केवल ‘भौतिक’ नहीं, बल्कि ‘समावेशी’ बनाने की ओर अग्रसर है। उत्तर प्रदेश के 403 विधानसभा क्षेत्रों में समावेशी विकास की जो परिकल्पना मुख्यमंत्री योगी ने रखी है, यह एक्सप्रेसवे उसी की एक प्रायोगिक शुरुआत है।
विशेषकर यह बात ध्यान देने योग्य है कि इस तरह की परियोजनाओं के माध्यम से न केवल शहरी इलाकों को फायदा मिलता है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों को भी शहरों से जोड़ने में सहूलियत होती है। छोटे गांव, कस्बे और बाजार अब राष्ट्रीय स्तर की संरचनाओं से सीधे जुड़े रहेंगे।
गौर करने की बात यह भी है कि ऐसी परियोजनाओं में केवल नेतृत्व नहीं, बल्कि प्रशासनिक तंत्र और तकनीकी विशेषज्ञता की भी अहम भूमिका होती है। UPEIDA की भूमिका इस परियोजना में अनुकरणीय रही। समयसीमा का पालन, गुणवत्ता में कोई समझौता नहीं, और पारदर्शी टेंडर प्रणाली ने इस परियोजना को एक मॉडल के रूप में स्थापित कर दिया है।
जहाँ एक ओर यह एक्सप्रेसवे पूर्वांचल की रीढ़ बन सकता है, वहीं इसकी दीर्घकालिक सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसके किनारे कितनी जल्दी औद्योगिक विकास, लॉजिस्टिक पार्क, वेयरहाउसिंग और सर्विस सेंटर स्थापित किए जा सकते हैं।
राज्य सरकार को चाहिए कि अब अगले चरण में इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ ‘सॉफ्ट डेवलपमेंट’—जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, स्किल डेवेलपमेंट और स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देने की दिशा में ठोस कदम उठाए।
साथ ही, ट्रैफिक मैनेजमेंट, टोल व्यवस्था की पारदर्शिता, और सुरक्षा के आधुनिक उपायों को भी समय-समय पर अपडेट करना आवश्यक होगा।
गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे के लोकार्पण के साथ ही पूर्वांचल ने केवल एक सड़क नहीं, बल्कि अपना आत्मबल, अपनी पहचान और अपनी आकांक्षाओं का रास्ता पा लिया है। यह एक्सप्रेसवे न केवल भौगोलिक दूरी को मिटाएगा, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दूरी को भी कम करेगा।
आज जब भारत ‘विकसित राष्ट्र’ बनने की ओर अग्रसर है, तब यह आवश्यक है कि उसका हर क्षेत्र, हर गाँव, हर नागरिक उस विकास यात्रा में सहभागी बने। गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे यही सुनिश्चित करता है—कि कोई पीछे न छूटे।
यह परियोजना भावी उत्तर प्रदेश की उस तस्वीर का प्रारंभिक खाका है, जहाँ गति है, प्रगति है और समग्रता है।