लखनऊ की तर्ज पर यहाँ भी झूठे मुकदमों का कारोबार, अब उठ रहे सवाल — क्या मिलेगा न्याय?
फर्रुखाबाद: लखनऊ की एससी-एसटी कोर्ट द्वारा झूठे मुकदमे दर्ज कराने वाले एडवोकेट परमानंद गुप्ता को सजा सुनाए जाने के बाद पूरे प्रदेश में चर्चा है कि आखिर ऐसे “कानूनी माफिया” (lawyer mafia) कब तक कानून की आड़ में निर्दोष लोगों को फँसाते रहेंगे। इस बीच फर्रुखाबाद (Farrukhabad) से भी एक ऐसा मामला सामने आ रहा है, जिसने स्थानीय प्रशासन और पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
स्थानीय सूत्रों और पीड़ित पक्षों के अनुसार, फर्रुखाबाद जनपद में अवधेश मिश्रा नामक एक वकील सक्रिय है, जिस पर आरोप है कि उसने अपने निजी लाभ और विरोधियों पर दबाव बनाने के लिए अब तक दर्जनों निर्दोष लोगों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज कराए हैं। आरोप है कि अवधेश मिश्रा ने पुलिस और प्रशासन में अपने संपर्कों का गलत इस्तेमाल करते हुए कई लोगों को जेल तक भिजवा दिया।
इस वकील पर यह भी गंभीर आरोप हैं कि वह एससी-एसटी एक्ट के साथ-साथ फर्जी बलात्कार, फर्जी 307 (हत्या का प्रयास) जैसी गंभीर धाराओं में भी झूठे मुकदमे दर्ज कराता है। बताया जाता है कि उसके गिरोह में कई ‘विषकन्याएं’ भी शामिल हैं, जिन्हें वह अपने “हथियार” की तरह इस्तेमाल करता है — पहले किसी व्यक्ति पर झूठे आरोप गढ़वाना और फिर कानूनी धमकी या समझौते के नाम पर वसूली करना इसका प्रमुख तरीका बताया जाता है।
पीड़ितों का कहना है कि अवधेश मिश्रा खुद को “कानून का रक्षक” बताता है, जबकि असल में वह कानून की आड़ में ब्लैकमेलिंग और निजी लाभ का खेल खेल रहा है। कई पीड़ितों ने बताया कि उसके डर से लोग शिकायत दर्ज कराने वाली हिम्मत नहीं जुटा पाते, क्योंकि उन्हें आशंका है कि इसके खिलाफ जाने पर और अधिक झूठे केस दर्ज कर दिए जाएंगे।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक अवधेश मिश्रा के खिलाफ कोई ठोस, सार्वजिक कार्रवाई नहीं हुई है। शिकायतें कई बार पुलिस और जिला प्रशासन तक पहुँचीं, परन्तु प्रभावशाली रसूख और कानूनी चालबाज़ियों की वजह से हर बार मामला दब जाने की बात पीड़ितों द्वारा कही जाती है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि “यदि लखनऊ की अदालत झूठे मुकदमों के आरोपी वकील को सजा दे सकती है, तो फर्रुखाबाद में भी ऐसे तत्वों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।” उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि पुलिस को हर शिकायत पर प्रारम्भिक जांच अनिवार्य करनी चाहिए और यदि आरोपों में प्रमाण मिले तो त्वरित कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि निर्दोष लोगों को झूठे मामलों में फँसने से रोका जा सके।


