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Monday, September 22, 2025

आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक लोकतांत्रिक एकजुटता की आवश्यकता

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शरद कटियार

 

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के वक्तव्य की पृष्ठभूमि में वैश्विक लोकतंत्रों की भूमिका पर विश्लेषण

27 मई, 2025 को नई दिल्ली (New Delhi) में संसद भवन (Parliament House) में आयोजित एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठक के दौरान लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला (Om Birla) ने आतंकवाद को मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा करार दिया। यह वक्तव्य केवल कूटनीतिक शिष्टाचार की औपचारिकता नहीं था, बल्कि एक सशक्त वैश्विक अपील थी—ऐसी अपील जो दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों को एकजुट होकर आतंकवाद जैसी त्रासदी से लड़ने का आह्वान करती है। श्रीलंका के संसदीय शिष्टमंडल के साथ हुई इस वार्ता में उन्होंने जिस संवेदनशीलता, राजनीतिक परिपक्वता और वैश्विक सोच का प्रदर्शन किया, वह निश्चित ही प्रशंसनीय है।

यह संपादकीय उस व्यापक सोच का विश्लेषण है जिसमें न केवल भारत और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों के संबंधों की गरिमा उजागर होती है, बल्कि इस बात पर भी जोर दिया जाता है कि लोकतंत्रों को आतंकवाद, सांस्कृतिक विनाश और तकनीकी अपराधों से लड़ने के लिए पारस्परिक सहयोग, तकनीकी नवाचार और साझा मूल्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

आतंकवाद आज किसी एक देश या सीमित क्षेत्र की समस्या नहीं रह गया है। यह एक वैश्विक महामारी बन चुका है जो सीमाओं, धर्मों, सभ्यताओं और विचारधाराओं को लांघकर समूची मानवता को प्रभावित कर रहा है। श्री ओम बिरला ने इस सच्चाई को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया कि आतंकवाद मानव विकास, शांति और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

21वीं सदी की वैश्विक व्यवस्था में जहां राष्ट्र अपनी आंतरिक सुरक्षा के साथ-साथ वैश्विक संबंधों की जटिलताओं से भी जूझ रहे हैं, वहीं आतंकवाद की चुनौती दिन-ब-दिन विकराल रूप धारण करती जा रही है। इस संदर्भ में लोकतांत्रिक देशों की संसदों को एकजुट होकर काम करने की जो अपील श्री बिरला ने की, वह केवल कूटनीतिक मंच की बात नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा से जुड़ा एक गंभीर वैश्विक एजेंडा है। भारत और श्रीलंका के संबंध सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत गहरे हैं। बौद्ध धर्म की साझी विरासत, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, और एक-दूसरे की आपात परिस्थितियों में मदद करने का इतिहास दोनों देशों के संबंधों को विशिष्ट बनाता है।

लोकसभा अध्यक्ष ने इस साझा विरासत को याद करते हुए इसे दोनों देशों की मैत्री का आधार बताया। उनका यह कथन कि “भारत और श्रीलंका की मित्रता साझे सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सभ्यतागत मूल्यों पर आधारित है,” केवल औपचारिकता नहीं थी, बल्कि दक्षिण एशिया की उन जड़ों की ओर संकेत था जो एकता, समरसता और सहयोग की भूमि पर टिकी हैं।

एक ओर जहां आतंकवाद जैसी समस्याओं से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है, वहीं दूसरी ओर लोकतंत्रों को आंतरिक रूप से भी सशक्त बनाना अत्यंत आवश्यक है। श्री बिरला ने इस अवसर पर भारत की डिजिटल पहल—फिनटेक, यूपीआई, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित संसदीय कार्यप्रणाली का उल्लेख कर यह स्पष्ट किया कि 21वीं सदी का लोकतंत्र तकनीक के सहारे अधिक पारदर्शी, सहभागिता आधारित और संवेदनशील बन सकता है।

भारत की संसद ने जिस तरह डिजिटल परिवर्तन को अपनाया है, वह अन्य विकासशील और लोकतांत्रिक देशों के लिए प्रेरणा है। श्रीलंका जैसे पड़ोसी देश के लिए यूपीआई आधारित भुगतान प्रणाली का परिचय इस सहयोग की एक उत्कृष्ट मिसाल है। एक और उल्लेखनीय बिंदु रहा PRIDE संस्थान द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम। संसदों के बीच संवाद और आदान-प्रदान का यह मंच न केवल संसदीय प्रक्रियाओं की समझ को बढ़ाता है, बल्कि लोकतांत्रिक संस्कारों को भी पुष्ट करता है। श्री बिरला ने यह बताते हुए कि अब तक 110 से अधिक देशों के सांसदों और अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है, भारत की लोकतांत्रिक नेतृत्व क्षमता को रेखांकित किया।

इससे यह संकेत भी मिलता है कि भारत न केवल क्षेत्रीय नेतृत्व का दावा करता है, बल्कि वह वैश्विक संसदीय संवाद का भी केंद्र बनने की दिशा में अग्रसर है।
श्रीलंका के डिप्टी स्पीकर डॉ. रिज़्वी सालीह ने भारत के सहयोग और आतिथ्य के लिए धन्यवाद व्यक्त करते हुए यह साफ कर दिया कि दोनों देशों के संबंध भावनात्मक, ऐतिहासिक और व्यावहारिक दृष्टियों से बेहद महत्वपूर्ण हैं। संकट के समय भारत द्वारा श्रीलंका को दी गई सहायता इस संबंध की सच्ची कसौटी साबित हुई।

यह प्रतिक्रिया केवल औपचारिक कृतज्ञता नहीं, बल्कि यह भी दर्शाती है कि भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति और वैश्विक दायित्वबोध का श्रीलंका सहित अन्य राष्ट्रों में गहरा प्रभाव है। इस बैठक के केंद्र में रहा आतंकवाद का मुद्दा। लोकतंत्र का मूल उद्देश्य है नागरिकों की सुरक्षा, स्वतंत्रता और समानता की रक्षा। आतंकवाद इन्हीं तीन मूल स्तंभों पर हमला करता है। अतः लोकतांत्रिक देशों की यह साझी जिम्मेदारी बनती है कि वे पारस्परिक सहयोग के माध्यम से इस चुनौती का सामना करें।

चाहे वह संयुक्त राष्ट्र में साझा प्रस्ताव हों, तकनीकी और खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान हो, या फिर आपसी रक्षा अभ्यास—हर क्षेत्र में एक संगठित और गंभीर रुख अपनाना आवश्यक है। आज जब विश्व एक ओर कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अंतरिक्ष यात्रा और जलवायु परिवर्तन जैसे नए युग में प्रवेश कर रहा है, वहीं आतंकवाद, धार्मिक कट्टरता, और साइबर अपराध जैसी समस्याएं मानवता को जड़ से हिलाने का प्रयास कर रही हैं। इस द्वंद्व में लोकतंत्रों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने श्रीलंका के शिष्टमंडल के समक्ष जो विचार रखे, वे सिर्फ भारत की विदेश नीति या लोकतांत्रिक मूल्यों की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक चेतना का आह्वान हैं। यह समय है जब सभी लोकतांत्रिक देशों को कंधे से कंधा मिलाकर आतंकवाद और मानवता विरोधी गतिविधियों के विरुद्ध एकजुट होना होगा। शब्दों से आगे बढ़कर नीति, रणनीति और ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है। तभी लोकतंत्र केवल शासन प्रणाली नहीं, बल्कि वैश्विक शांति और मानवीय गरिमा का प्रतीक बन पाएगा।

शरद कटियार

प्रधान संपादक, दैनिक यूथ इंडिया

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