– आज से मजलिसों का दौर शुरू, सज गए इमामबाड़े
फर्रुखाबाद: इस्लामिक नया साल शुरू होते ही मोहर्रम (Muharram) का चांद बुधवार रात नजर आ गया, जिसके साथ ही शिया समुदाय में ग़म का महीना आरंभ हो गया। शहर के शिया बहुल इलाकों में इमामबाड़ों की सजावट, मजलिसों का आयोजन और गम के रस्मों की शुरुआत हो गई है। शहर के घेरशामू खा, बूरा वाली गली, मादारबाड़ी, खटकपुरा, भीकमपुरा, बंगशपुरा, नख़ास, मनिहारी, बजरिया और भाऊटोला जैसे इलाकों में “या हुसैन” की सदाएं गूंजने लगीं और मजलिसों का सिलसिला शुरू हो गया।
ग़म में डूबे लोग, शुरू हुईं मजलिसें मौलाना सदाकत हुसैन सैंथली ने बताया कि
“मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है और यह माह शोक और बलिदान की याद दिलाता है। पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों की कर्बला में हुई शहादत को याद कर शिया समुदाय यह महीना ग़म में बिताता है।”
मोहर्रम की 10 तारीख (यौमे आशूरा) को सन 61 हिजरी में इराक के कर्बला शहर में यज़ीद की सेना ने इमाम हुसैन, उनके परिजनों और एक छह माह के बच्चे तक को भूखा-प्यासा रखकर शहीद कर दिया था। मोहर्रम की शुरुआत के साथ ही शिया मुस्लिम महिलाएं भी ग़म के रंग में रंग गईं। उन्होंने काले वस्त्र धारण किए और सुहाग की सभी निशानियाँ (चूड़ियाँ, बिंदी आदि) उतार दीं। कई महिलाओं ने इमामबाड़ों में चूड़ियाँ तोड़कर इमाम हुसैन के ग़म में शरीक होने की रस्म की।
शहर भर में अगले 10 दिनों तक मजलिसें, धार्मिक प्रवचन, और अज़ादारी का क्रम जारी रहेगा। विभिन्न स्थानों से ताज़िये, अलम और जुलूस भी निकलेंगे। सुबह से लेकर देर रात तक मजलिसों में शिरकत करने के लिए शिया समुदाय के लोग बड़ी संख्या में पहुंचेंगे।
मजलिसों में मौलाना मदीना से कर्बला तक के सफर का वाक़या बयान कर रहे हैं। इमाम हुसैन और उनके परिवार की कुरबानी के दृश्य सुनकर श्रोताओं की आंखें नम हो रही हैं। शहर में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन ने भी सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद कर दी है। सभी इमामबाड़ों और जुलूस मार्गों पर पुलिस बल की तैनाती की गई है।