14.7 C
Lucknow
Wednesday, December 11, 2024

पुरुषों के उत्पीड़न का बढ़ता सवाल और न्यायिक तंत्र की चुनौती

Must read

अतुल सुभाष (Atul Subhash) की आत्महत्या ने समाज के सामने पुरुषों (Men) के उत्पीड़न के मुद्दे को एक बार फिर उजागर किया है। प्रतिष्ठित आईटी कंपनी में काम करने वाले इस सॉफ्टवेयर इंजीनियर की मौत न केवल व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि यह समाज और कानून व्यवस्था के उन पहलुओं पर गंभीर सवाल उठाती है, जहां महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के नाम पर पुरुषों के साथ अन्याय होने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। 24 पन्नों के सुसाइड नोट और डेढ़ घंटे के वीडियो के माध्यम से अतुल ने अपने जीवन की त्रासदियों को उजागर किया, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी और ससुराल वालों पर मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक शोषण का आरोप लगाया।

इस घटना ने सोशल मीडिया पर #MenToo और #JusticeForAtulSubhash जैसे अभियानों को जन्म दिया है, जो यह दिखाता है कि यह मुद्दा केवल एक व्यक्ति की त्रासदी तक सीमित नहीं है, बल्कि एक व्यापक सामाजिक समस्या का संकेत है।

पिछले कुछ वर्षों में पुरुषों के खिलाफ उत्पीड़न के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। शादी से जुड़े विवादों, झूठे दहेज उत्पीड़न के आरोपों और घरेलू हिंसा के झूठे मामलों ने कई पुरुषों की जिंदगी तबाह की है। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग अक्सर पुरुषों के लिए एक गंभीर समस्या बन जाता है।

अतुल सुभाष का मामला इस समस्या का ताजा उदाहरण है। सुसाइड नोट में उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी और ससुराल वालों ने उन्हें झूठे केसों में फंसाकर न केवल उन्हें बल्कि उनके परिवार को भी प्रताड़ित किया। यह अकेला मामला नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों की आत्महत्या दर पिछले एक दशक में लगातार बढ़ रही है, और इनमें से एक बड़ा हिस्सा वैवाहिक समस्याओं और पारिवारिक उत्पीड़न से संबंधित है।
भारत में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए दहेज प्रतिषेध अधिनियम, घरेलू हिंसा अधिनियम और आईपीसी की धारा 498ए जैसे कानून बनाए गए हैं। हालांकि, इन कानूनों का उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना था, लेकिन वास्तविकता यह है कि इनका दुरुपयोग एक आम बात हो गई है।

498ए को “लीगल टेरर” यानी “कानूनी आतंक” भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें आरोपी को बिना किसी जांच के गिरफ्तार किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार इस कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई है। लेकिन, इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। अतुल सुभाष का मामला यह दर्शाता है कि ऐसे कानूनों का दुरुपयोग किस तरह एक व्यक्ति को आत्महत्या करने तक मजबूर कर सकता है।

#MenToo आंदोलन ने पुरुषों के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का मंच प्रदान किया है। यह आंदोलन न केवल पुरुषों के लिए न्याय की मांग करता है, बल्कि समाज में लिंग समानता की ओर एक नए दृष्टिकोण को भी जन्म देता है।

अतुल की आत्महत्या ने इस आंदोलन को नई ऊर्जा दी है। सोशल मीडिया पर #JusticeForAtulSubhash के जरिए लोग न केवल उनके लिए न्याय की मांग कर रहे हैं, बल्कि पुरुषों के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचे की जरूरत को भी रेखांकित कर रहे हैं। इस घटना ने न्याय व्यवस्था और समाज दोनों पर सवाल खड़े किए हैं।

न्यायिक प्रणाली में पुरुषों के खिलाफ झूठे मामलों की सुनवाई में अक्सर विलंब होता है। आरोपी को खुद को निर्दोष साबित करने के लिए वर्षों तक लड़ाई लड़नी पड़ती है। इस प्रक्रिया में उनकी मानसिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ता

हमारे समाज में पुरुषों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे हमेशा मजबूत और आत्मनिर्भर रहें। उनकी भावनात्मक और मानसिक समस्याओं को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। आत्महत्या जैसे मामलों में भी समाज यह मानने को तैयार नहीं होता कि पुरुष भी शोषण का शिकार हो सकते हैं।

अतुल सुभाष की आत्महत्या केवल उनके परिवार या दोस्तों के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। यह घटना हमें बताती है कि अब समय आ गया है जब हमें पुरुषों के अधिकारों और उनकी समस्याओं को भी गंभीरता से लेना होगा।

ऐसे मामलों से बचने के लिए कानूनों में सुधार करना आवश्यक है। सभी आरोपों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और झूठे मामलों में कठोर सजा का प्रावधान होना चाहिए।

पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। उन्हें यह भरोसा दिलाना होगा कि वे अपनी समस्याओं को साझा कर सकते हैं और उनके साथ न्याय होगा।

समाज को अपनी सोच बदलनी होगी। पुरुषों को भी कमजोर होने और मदद मांगने का अधिकार है। यह जरूरी है कि हम लिंग समानता को केवल महिलाओं तक सीमित न रखें, बल्कि इसे पुरुषों के अधिकारों तक भी विस्तार दें।

अतुल सुभाष की मौत एक त्रासदी है, लेकिन यह एक बड़ा सबक भी है। यह घटना हमें बताती है कि पुरुषों के अधिकारों और उनके शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का समय आ गया है। समाज, कानून और न्यायिक प्रणाली को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह पुरुष हो या महिला, अन्याय का सामना न करना पड़े।

#MenToo आंदोलन ने जिस लहर को जन्म दिया है, वह केवल एक शुरुआत है। अगर हम सच में लिंग समानता और न्याय चाहते हैं, तो हमें यह स्वीकार करना होगा कि पुरुष भी शोषण का शिकार हो सकते हैं, और उनके लिए भी न्याय उतना ही महत्वपूर्ण है जितना महिलाओं के लिए। अतुल सुभाष का मामला एक ऐसी ही शुरुआत का प्रतीक है, जो समाज और कानून को नई दिशा दे सकता है।

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article