अशोक भाटिया , मुंबई
अमेरिका के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य कैलिफोर्निया के लॉस एंजिल्स में लगी आग (Fire) ने विश्व को हिला कर रख दिया है । बीते मंगलवार रात को लगी इस आग में कम से कम दस लोगों की मौत हो गई है और हजारों घर जलकर खाक हो गए हैं। लॉस एंजिल्स के अलग-अलग इलाकों में 1,30,000 से ज्यादा लोगों को घर खाली करने का आदेश दिया गया है। कैलिफोर्निया की अग्नि सुरक्षा विभाग के मुताबिक सबसे पहले मंगलवार सुबह करीब साढ़े दस बजे आग लगने की खबर मिली थी। लॉस एंजिल्स के पैसिफिक पैलिसेड्स में लगी यह आग तब तक विकराल रूप ले चुकी थी। अधिकारी आग लगने के शुरुआती वजहों का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। 2025 की शुरुआत ही प्रलय की दस्तक के साथ हुई है। अमेरिका में लॉस एंजिल्स के जंगलों में लगी भयानक आग बढ़ती ही जा रही है। मौसम वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि तेज हवाएं आग को और भड़का सकती हैं। लॉस एंजिलिस शहर और उसके आसपास जंगलों में लगी भीषण आग के कारण मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है जबकि कम से कम 12 हजार मकान, इमारतें और अन्य ढांचे जलकर राख हो चुके हैं।
इस आग का कारण खोजने पर कई उत्तर मिलते है । दरअसल मनुष्यों ने जब से तापमान नापना सीखा है, तबसे लेकर आज तक 2024 सबसे गर्म साल रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है, “हम पिछले एक दशक से घातक गर्मी का सामना कर रहे हैं”। जापान, भारत, इंडोनेशिया, चीन, ताईवान, जर्मनी और ब्राजील, सभी में अधिकतम तापमान के नए रिकार्ड कायम हुए। यह बढ़ती गर्मी अब पृथ्वी के वाटर साइकिल पर असर डालने लगी है। सन् 2024 में पानी से जुड़ी त्रासदियों और संकटों के कारण कम से 8,700 लोगों ने अपनी जानें गंवाईं, चार करोड़ लोग विस्थापित हुए और 550 अरब डालर से अधिक का माली नुकसान हुआ।
लास एंजिल्स इसलिए जल रहा है क्योंकि पिछले नौ महीनों के दौरान कोई खास बारिश नहीं हुई। तेज हवाएं सात जनवरी को कई जंगली आगों का कारण बनीं। इसी तरह, वैश्विक तापमान में वृद्धि से उत्तरी अमेरिका में बर्फीले तूफानों की संख्या बढ़ती जा रही है। अत्यंत ठंडी हवा का जो बवंडर सामान्यतः उत्तरी ध्रुव के आसपास आर्कटिक तक सीमित रहता है, आगे बढ़ने लगा है जिससे अमेरिका, यूरोप और एशिया में भयानक सर्दी पड़ने लगी है। इस बीच हमारे अपने देश में अभी दो धूप भरे दिनों का जश्न मनाया गया। किसी को भी इस बात अहसास नहीं है कि हालांकि उत्तर भारत का कोहरे की चादर में लिपट जाना और यहां ठिठुरन भरी सर्दी पड़ना सामान्य है लेकिन जो हो रहा है वह सामान्य नहीं है।
आंकड़ों के मुताबिक, 2024 के शुरूआती नौ महीनों में 90 प्रतिशत से अधिक दिनों में भारत में कम से कम एक “अत्यंत गंभीर जलवायु संबंधी घटना” जैसे बाढ़ या तूफान आना घटित हुई। उपलब्ध रिकार्डों के अनुसार, जुलाई से अक्टूबर तक की अवधि में 1901 के बाद का सर्वाधिक न्यूनतम तापमान दर्ज किया गया। दिल्ली के बाद अब मुंबई, पुणे और बंगलौर जैसे शहरों सहित दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में भी हवा ज़हरीली हो रही है।
भारत में आगे चलकर जलवायु के हालात और बिगड़ने वाले हैं। भारत वैश्विक औसत से अधिक गर्म है। यह दुनिया का अपेक्षाकृत निर्धन इलाका है जहाँ 140 करोड़ लोग रहते है। आने वाले समय में ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन का वैश्विक स्तर चाहे जो भी हो और मोदी सरकार ने भले ही प्लास्टिक, बीएस तीन और बीएस चार वाहनों पर रोक लगा दी हो मगर आने वाले सालों में जलवायु संकट की स्थिति और बिगड़ना तय है। इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स नाम की एक शोध संस्था के मुताबिक, जलवायु संबंधी परियोजनाओं पर होने वाला खर्च, जो 2015 में जीडीपी का 3.7 प्रतिशत था, 2021 में बढ़कर 5.6 प्रतिशत हो गया है। लेकिन इसे बहुत कम माना जा रहा है।
लेकिन भारत के लिए खर्च से अधिक महत्वपूर्ण है राजनीतिक इच्छाशक्ति और नई और पुरानी तकनीकों का अधिकाधिक इस्तेमाल। मगर हमारे यहाँ धार्मिक और क्षेत्रीय आधारों पर राजनीति की जा रही है और जानकारियों की जगह प्रोपेगेंडा ने ले ली है। कोई नहीं जानता कि 2024 की गर्म हवाओं में कितने लोगों ने अपनी जानें गवाईं, सिवाए इसके कि चुनावों के दौरान उत्तरप्रदेश में एक ही दिन में 33 मतदान अधिकारी इसके शिकार हुए। लेकिन जनता ऊंचे पहाड़ों और समुद्रों में स्थित धार्मिक स्थलों के पर्यटन में व्यस्त है। इस समय ठिठुरन भरी सर्दी चिंता का मुद्दा नहीं है बल्कि आप देख सकते हैं कि लोग ट्रेनों और बसों में लगभग एक दूसरे के ऊपर चढ़कर महाकुंभ में पहुंचने में जुटे हुए हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि 2025 भी उतना ही गर्म होगा, जितना गुजरा साल था। शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि 2025 की मौसम संबंधी भविष्यवाणियों और वर्तमान स्थितियां यह संकेत कर रही हैं कि उत्तरी दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्सों में सूखे के हालात और बदतर होंगे। सहेल और यूरोप के अधिक वर्षा वाले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढेगा। बल्कि शायद 2025, पिछले साल से भी अधिक झुलसानेवाला साल साबित हो सकता है। प्रशांत महासागर के ला नीना चरण में पहुंचने के बावजूद, जिसमें समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से कम रहता है और कुल मिलाकर अपेक्षाकृत ठंडक रहती है, तापमान अधिक रहने की संभावना है।
मगर भारत में जलवायु जनसरोकार नहीं है। लोगों को तूफानों, ठिठुराने वाली सर्दी और जलाने वाली गर्मी की कोई चिंता नहीं है। और अब जबकि 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप सत्ता संभालने जा रहे हैं, जलवायु संबंधी प्रयासों को बड़ा धक्का लगना निश्चित है। ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि उनका इरादा यह है कि अमेरिका को पेरिस समझौते से अलग कर दिया जाए। पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन संबंधी संयुक्त राष्ट्रसंघ के झंडे तले किया गया कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता है। 2025 में युद्ध भी बढ़ेंगे, एक और सीओपी का आयोजन होगा- शायद अमेरिका के बिना – जहां केवल तस्वीरें खींची जाएंगीं, और इसी दौरान अमेजन सूखती जाएगी, प्रशांत महासागर के द्वीप गायब होते जाएंगे और आप और मैं चिलचिलाती गर्मी का शिकार होते रहेंगे। मौसम के ये मिजाज़ हमें बता रहे हैं कि हम क़यामत की और बढ़ते जा रहे हैं।
जंगलों में आग के दो कारण होते हैं। एक है प्राकृतिक और दूसरा अप्राकृतिक। पहले प्राकृतिक कारणों पर आते हैं। आग को जलने के लिए दो चीजों की जरूरत होती है। ऑक्सीजन और तापमान। जंगल ऐसी जगह है, जहां ये दोनों चीजें बखूबी मिलती हैं और यहां की सूखी लड़कियां इस आग के लिए फ्यूल की तरह काम करती हैं। ज्यादा गर्मी या फिर बिजली गिरने पर जरा सी चिंगारी यहां भीषण आग बनने का कारण बन जाती है। वहीं तेज हवाओं के कारण आग पर काबू करना मुश्किल हो जाता है और आग तेजी से फैलती है।
अब अप्राकृतिक कारणों की बात करते हैं। बीते कुछ सालों में हरे भरे जंगलों में इंसानों के पहुंचने का सिलसिला काफी बढ़ा है। छुट्टियां मनाने के लिए बड़ी संख्या में लोग जंगलों में कैंपिंग करते हैं, यहां खाना पकाते हैं और स्मोकिंग भी करते हैं। इस दौरान उनकी जरा सी लापरवाही जंगल में आग का कारण बन जाती है। इसके अलावा ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जिनमें रील बनाने के चक्कर में लोगों ने जंगलों को आग के हवाले कर दिया।
अमेरिका में सबसे बड़ा अग्निकांड 1910 में हुआ था, जब इनलैंड नॉर्थवेस्ट में एक जंगल में लाग लग गई थी। इस आग ने पश्चिमी मोंटाना और उत्तरी इडाहो में तीन मिलियन एकड़ जमीन को जलाकर खाक कर दिया था। इस घटना में 85 लोगों की मौत हुइ थी, जिसमें 78 फायरफाइटर्स थे। जानकारी के मुताबिक, यह अग्निकांड रिकॉर्ड कम बारिश के बाद हुआ था। अग्निकांड का इतना भीषण होने का बड़ा कारण यहां 70 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाएं थीं, जिसे कारण आग बेकाबू हो गई और एक बड़े इलाके को अपनी चपेट में ले लिया। 23 अगस्त को बारिश के बाद इस आग पर काबू पाया गया था।
अभी जिस तरह की तबाही से अमेरिका दो-चार हो रहा है, कुछ वैसी ही तबाही पिछले साल भारत में भी मची थी। अप्रैल 2024 में उत्तराखंड के जंगलों में आग लगी थी। अल्मोड़ा के जंगलों में तो 41 दिनों तक आग धधकती रही थी। 10 लोगों की मौत हुई थी। सैकड़ों एकड़ जंगल स्वाहा हो गए थे। 6 मई 2024 की पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1 नवंबर 2023 से 5 मई 2024 तक उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की कुल 575 घटनाएं दर्ज हुई थीं जिससे करीब 690 हेक्टेयर यानी 1705 एकड़ क्षेत्र प्रभावित हुआ था। आग लगने की वजहों में क्लाइमेट चेंज तो था ही, मानवीय लापरवाही ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी।उत्तराखंड के जंगलों में 2016 में भी भीषण आग लगी थी। तब अप्रैल और मई के बीच में करीब 1600 आग की घटनाएं दर्ज हुई थीं। 4538 हेक्टेयर यानी 11213 एकड़ जंगल स्वाहा हो गया था।फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत के वन क्षेत्र का करीब 36 प्रतिशत हिस्सा आग के लिहाज से बेहद संवेदनशील है।देश में अभी दो धूप भरे दिनों का जश्न मनाया गया। किसी को भी इस बात अहसास नहीं है कि हालांकि उत्तर भारत का कोहरे की चादर में लिपट जाना और यहां ठिठुरन भरी सर्दी पड़ना सामान्य है लेकिन जो हो रहा है वह सामान्य नहीं है। मौसम के ये मिजाज़ हमें बता रहे हैं कि हम क़यामत की और बढ़ते जा रहे हैं।