शरद कटियार
उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाने वाले अरविंद कुमार शर्मा का बुधवार को ग़ुस्सा पावर कॉरपोरेशन के अधिकारियों पर जमकर फूटा। राजधानी लखनऊ में हुई एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग बैठक में उन्होंने जिस सख़्त लहजे में अधिकारियों को आड़े हाथों लिया, वह मौजूदा बिजली व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर करता है।मंत्री एक एक मुद्दे पर जमीनी सच्चाई लेकर सामने आए, और अधिकारियों की एसी रूम वाली रिपोर्ट को सरासर झूठा करार दिया। उन्होंने कहा आप लोग अंधे, बहरे और काने होकर बैठे हैं। जो नीचे से झूठी रिपोर्ट आती है, वही ऊपर तक जाती है। जनता की पीड़ा आपको दिखाई नहीं देती।यह बयान केवल एक ग़ुस्से का इज़हार नहीं, बल्कि उन हजारों लोगों की पीड़ा की गूंज है जो ट्रांसफार्मर जलने, गलत बिल, और बिजली कटौती जैसी समस्याओं से हर रोज़ जूझ रहे हैं।
ऊर्जा मंत्री ने साफ कहा कि बिजली विभाग कोई बनिए की दुकान नहीं है। यह जन सेवा का माध्यम है। इसे उसी नज़र से देखना होगा।यह कथन अपने आप में एक विचारधारा है कि शासन की मूल भावना सेवा हो, वसूली नहीं।मंत्री के अनुसार, कुछ जिलों में तो हालात इतने बदतर हैं कि एक सामान्य उपभोक्ता को 72 करोड़ रुपये तक का बिल भेजा गया। इसके बाद जब उपभोक्ता बिल ठीक कराने जाता है, तो पैसे वसूले जाते हैं। यही नहीं, गलत जगहों पर विजिलेंस की छापेमारी, वसूली के नाम पर उत्पीड़न, और ईमानदार उपभोक्ताओं की लाइन तक काट देना, इन सब मुद्दों को ऊर्जा मंत्री ने न सिर्फ़ गंभीरता से उठाया, बल्कि हमारी सुपारी ली गई है जैसी अभूतपूर्व टिप्पणी तक कर डाली।
ऊर्जा मंत्री का यह फीडबैक हवा में नहीं था। बीते दिनों वह प्रदेश के कई ज़िलों के दौरे पर रहे, जहां उन्होंने जनता, विधायकों और जनप्रतिनिधियों से सीधे शिकायतें सुनीं। कई भाजपा विधायक तक अपनी ही सरकार के बिजली तंत्र से असंतुष्ट दिखे और सार्वजनिक पत्र लिखे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह सिर्फ लापरवाही है, या जानबूझकर जन असंतोष को जन्म देने की साजिश?
मंत्री ने चेताया कि अब यह सब नहीं चलेगा। मैं विधानसभा में जनता को जवाब देता हूं। आप लोग कहीं और से संचालित होकर उल्टा काम करते हैं।यह कथन इस बात की ओर इशारा करता है कि शासन में सामंजस्य और पारदर्शिता की भारी कमी है। यदि मंत्री की बातों को गंभीरता से न लिया गया, तो आने वाले समय में यह मुद्दा राजनीतिक नुकसान तक दे सकता है।
जनता अब घोषणाओं से ज़्यादा, ज़मीनी क्रियान्वयन देखना चाहती है। यदि जनता को संतोषजनक बिजली सेवा नहीं मिली, तो सोशल मीडिया और जनप्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार को घेरने की स्थिति और तेज़ हो सकती है।
ऊर्जा मंत्री अरविंद शर्मा का यह फटकार भरा संवाद केवल विभागीय आलोचना नहीं, बल्कि एक प्रशासनिक अलार्म है जो बता रहा है कि अब सिर्फ़ कागज़ी रिपोर्टों से काम नहीं चलेगा, सिस्टम को ज़मीन पर उतरना पड़ेगा। यह चेतावनी है हर उस अधिकारी के लिए जो जनता के दर्द को नज़रअंदाज़ कर रहा है, और एक उम्मीद है उस आम नागरिक के लिए जो हर महीने बिजली बिल भरता है पर अंधेरे में जीता है।