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Thursday, July 17, 2025

दिल दहला देने वाली घटना “मिड-डे मील बना ज़हर की थाली!”

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– स्कूल के खाने से पांच मासूमों की हालत बिगड़ी, आठ साल की बच्ची की मौत, गांव में मचा कोहराम!

कायमगंज (फर्रुखाबाद)। उत्तर प्रदेश के कायमगंज तहसील क्षेत्र के गांव लखनपुर में बुधवार को मिड-डे मील ने पांच मासूम बच्चों की ज़िंदगी में ज़हर घोल दिया। स्कूल में मिले दोपहर के खाने के बाद एक ही परिवार के पांच बच्चे फूड प्वाइजनिंग के शिकार हो गए। सबसे दर्दनाक मोड़ तब आया जब आठ साल की मासूम सुनीता ने गुरुवार सुबह दम तोड़ दिया। गांव में मातम पसरा है, परिजन बेसुध हैं और प्रशासनिक तंत्र पर उंगलियां उठ रही हैं।

सुनीता (8), गीता (11), अंशुल (6), गुलशन (8) और रीता (12) – ये सभी बच्चे सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते हैं। बुधवार को रोज की तरह स्कूल गए थे, लेकिन स्कूल से लौटकर जैसे ही उन्होंने मिड-डे मील खाया, थोड़ी ही देर में उल्टी, पेट दर्द और दस्त शुरू हो गए।

जब तक परिजन कुछ समझ पाते, सुनीता की हालत बेहद गंभीर हो गई और उसने दम तोड़ दिया। अन्य चार बच्चों की हालत नाजुक बनी हुई है और उन्हें तत्काल कायमगंज सीएचसी में भर्ती कराया गया है। डॉक्टर्स की टीम इलाज में जुटी है, लेकिन पूरे गांव में डर और ग़ुस्से का माहौल है।

दुख से टूटा परिवार न्याय की गुहार लगा रहा है। मृत बच्ची के पिता राम सिंह, जो जौरा में ईंट भट्ठे पर मजदूरी करते हैं, का कहना है –

हमारे बच्चों को जो खाना स्कूल में दिया गया, वो ज़हर था। यही स्कूल के खाने ने मेरी बेटी की जान ले ली!

घटना की जानकारी मिलते ही एसडीएम कायमगंज और क्षेत्राधिकारी तुरंत मौके पर पहुंचे और बीमार बच्चों को अस्पताल भिजवाया। अधिकारियों ने घटनास्थल पर मौजूद ग्रामीणों को आश्वस्त किया कि पूरे मामले की जांच होगी और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।

गांव में आक्रोश है। ग्रामीणों का कहना है कि मिड-डे मील में लंबे समय से लापरवाही हो रही है।

“जब बच्चों को पढ़ाने भेजते हैं तो उम्मीद होती है कि वे तंदुरुस्त लौटेंगे, कोई ये नहीं सोचता कि स्कूल से लाश आएगी!” –

एक ग्रामीण की आंखों में आंसू और दिल में ग़ुस्सा साफ झलक रहा था।

सवालों के घेरे में मिड-डे मील योजना-

मिड-डे मील की निगरानी कौन करता है?
भोजन की गुणवत्ता की जांच क्यों नहीं होती?
दोषी कौन है – स्कूल प्रशासन, आपूर्तिकर्ता या सिस्टम?

यह घटना केवल एक बच्ची की मौत नहीं, बल्कि पूरे सरकारी सिस्टम पर सवालिया निशान है। एक बार फिर मिड-डे मील योजना की सच्चाई सामने आ गई है – “कहीं ये योजना पोषण नहीं, मौत बांट रही है!”

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