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Monday, August 25, 2025

“भारतीय मानवतावादी साहित्य व संस्कृति में लोकतांत्रिक मूल्यों की अवधारणा” डाक्टर प्रभात अवस्थी

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डाक्टर प्रभात अवस्थी

भारतीय संस्कृति की आत्मा में मानवतावाद और लोकतंत्र की भावना युगों से निहित रही है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक भारत का साहित्य और संस्कृति मानव कल्याण, सामाजिक समरसता और लोकतांत्रिक आदर्शों को उजागर करते आए हैं। पं० दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित ‘एकात्म मानववाद’ भी इसी मानवतावादी दृष्टिकोण की आधारशिला है।

मानवतावादी साहित्य वह साहित्य है, जो मनुष्य को केंद्र में रखकर उसके अधिकारों, कर्तव्यों, संवेदनाओं और सामाजिक न्याय की बात करता है। भारतीय साहित्य में रामायण, महाभारत, भगवद्गीता, उपनिषद, कबीर, रहीम, तुलसी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, डॉ. अम्बेडकर, गांधी और पं. दीनदयाल उपाध्याय जैसे चिंतकों ने मानवता को सबसे पहले रखा है।

इन रचनाओं में व्यक्ति की गरिमा, स्वतंत्रता, सह-अस्तित्व और न्याय के प्रति आग्रह मिलता है जो लोकतांत्रिक मूल्यों की आत्मा हैं।

भारत की संस्कृति ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को जन्म देती है, जिसमें संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानकर समता, सहिष्णुता और संवाद को प्राथमिकता दी गई है। ग्राम पंचायत प्रणाली, श्रम विभाजन, धर्मसभा और सभा-समिति जैसी व्यवस्थाएं प्राचीन भारत में लोकतंत्र की मिसाल रही हैं।

पं० दीनदयाल उपाध्याय का ‘एकात्म मानववाद’ लोकतांत्रिक प्रणाली में भारतीय विचारधारा का समावेश करता है। वे मानते थे कि “भारतीय लोकतंत्र की सफलता तभी संभव है, जब उसमें भारत की आत्मा हो।” उनका विचार था कि लोकतंत्र केवल चुनाव की प्रक्रिया नहीं, बल्कि लोक-कल्याण के प्रति समर्पण का संकल्प है।

प्रेमचंद की कहानियों में गरीबों, किसानों और श्रमिकों की पीड़ा को उठाया गया है, जो सामाजिक न्याय की पुकार है।
महादेवी वर्मा ने स्त्री स्वतंत्रता और आत्मसम्मान के प्रश्नों को उजागर किया।

डॉ. अम्बेडकर का साहित्य संविधान, सामाजिक समानता और दलित चेतना का प्रतिनिधित्व करता है।

गांधीजी के ‘हिन्द स्वराज’ में आत्मनिर्भरता, स्वराज और सत्याग्रह जैसे मूल्य लोकतांत्रिक ढांचे की नींव बनते हैं।
भारतीय मानवतावादी साहित्य और संस्कृति लोकतंत्र को एक मूल्य आधारित व्यवस्था मानते हैं, न कि केवल एक राजनीतिक ढांचा।

पं० दीनदयाल उपाध्याय का विचार हो या डॉ. अम्बेडकर का संविधान, सभी भारत की सांस्कृतिक चेतना में बसे मानवतावादी दृष्टिकोण के अनुरूप हैं। वर्तमान समय में जब लोकतंत्र चुनौतियों से घिरा है, ऐसे में भारतीय साहित्य और सांस्कृतिक धरोहर मार्गदर्शक बन सकती है।

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