– फतेहगढ़ सर्विलांस सेल में तैनात सिपाही सचेंद्र सिंह गैंगस्टर देवेंद्र सिंह यादव उर्फ़ जग्गू और कुशल सिंह परिहार के विवाद में बना था ‘डीलमेकर’, पत्नी के नाम कीमती जमीन बैनामा कराई
फर्रुखाबाद: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की “जीरो टॉलरेंस नीति” (zero tolerance policy) जहां प्रदेश भर में माफियाओं (mafia) पर शिकंजा कस रही है, वहीं उसी नीति के अमल के बीच एक ऐसा सिपाही सामने आया है जिसने “नीति के प्रहरी” से “माफिया का साझेदार” बनने की लंबी छलांग मार ली। फतेहगढ़ सर्विलांस सेल में तैनात सिपाही सचेंद्र सिंह चौहान की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं—जिसने अपराधियों के बीच समझौते करवाकर संपत्ति अर्जित कर ली।
सूत्रों के अनुसार, सिपाही सचेंद्र सिंह चौहान ने गैंगस्टर और सपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष देवेंद्र सिंह यादव उर्फ़ जग्गू यादव तथा कुख्यात कुशल सिंह परिहार के बीच सुलह–समझौता कराया। परिहार के खिलाफ करीब तीन दर्जन आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं और वह कई बार जेल जा चुका है। आरोप है कि इस समझौते के एवज में सचेंद्र ने परिहार की पत्नी स्नेहलता परिहार से अपनी पत्नी विनीता सिंह (निवासी चकरनगर, इटावा) के नाम पर जेएनवी रोड स्थित 113.36 वर्गमीटर भूमि (गाटा संख्या 262) का बैनामा 15 जून 2020 को कराया।
इस रजिस्ट्री में स्वयं सचेंद्र सिंह चौहान ने गवाह के रूप में दस्तखत किए, जो पूरे सौदे की मंशा पर गहरे सवाल खड़े करता है। यह सौदा ‘समझौते की फीस’ के रूप में किया गया बताया जा रहा है। और दिखावे में एक नंबर की रकम का लेनदेन हुआ था।
बदले में सिपाही ने कुशल सिंह परिहार को आश्वासन दिया कि उसके खिलाफ अब कोई नया मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा। यही नहीं, जब बाद में परिहार और जग्गू यादव के बीच पुनः तनातनी हुई, तो सचेंद्र ने फिर “समझौता” करवाने की भूमिका निभाई। क्योंकि जग्गू यादव और कुशल परिहार पूर्व में जमीनों का पार्टनरशिप में काम करते थे, सूत्रों का कहना है कि सचेंद्र की यह डीलिंग “गुप्त संरक्षण” के तहत होती रही।
सचेंद्र सिंह की पहुँच बेहद ऊँची बताई जा रही है। वह अपर पुलिस महानिदेशक, कानपुर जोन के “विश्वासपात्र” कर्मियों में गिना जाता है। इसी प्रभाव के चलते, पहले संदेह के आधार पर हटाए जाने के बावजूद वह फतेहगढ़ सर्विलांस सेल में दोबारा तैनात करा लिया गया।
स्थानीय सूत्र बताते हैं कि सचेंद्र की “कुशल जोड़-तोड़” और अपराधियों से सांठगांठ के कारण ही उसकी पोस्टिंग बार-बार चर्चाओं में रही है। वह कई आपराधिक तत्वों के संपर्क में है और सूचनाओं के आदान-प्रदान के नाम पर निजी सौदेबाजी करता रहा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की “माफियामुक्त उत्तर प्रदेश” की घोषणा के बीच ऐसे मामलों का उजागर होना न केवल पुलिस की साख पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि “जीरो टॉलरेंस” नीति की जमीनी हकीकत भी सामने लाता है।
वरिष्ठ अधिकारी मौन हैं, पर सूत्रों के अनुसार मामला गंभीर जांच की मांग करता है। सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर एक सिपाही, जिसने कभी अपराध से लड़ने की शपथ ली थी, वह माफियाओं की संपत्ति का साझेदार कैसे बन गया?
फतेहगढ़ पुलिस लाइन से लेकर सर्विलांस सेल तक, सिपाही सचेंद्र सिंह का प्रभाव और संपर्क नेटवर्क विभागीय तंत्र की कार्यप्रणाली पर गहरा धब्बा बन चुका है। जब अपराधी और प्रहरी की रेखा धुंधली हो जाती है, तब कानून का सबसे बड़ा अपराध शुरू होता है।
माफिया अनुपम दुबे प्रकरण में एस पी ने हटाया था, लेकिन जोड़-तोड़ से दोबारा पहुंचा सर्विलांस सेल
माफिया अनुपम दुबे प्रकरण में संदिग्ध भूमिका और संदिग्ध संपर्कों के चलते हटाया गया सिपाही सचेंद्र सिंह चौहान एक बार फिर सुर्खियों मे है,तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार मीणा ने गंभीरता से लेते हुए उसे सिविल पुलिस से हटाकर जीआरपी (Government Railway Police) में भेज दिया था, लेकिन चौहान ने अपने “ऊँचे रसूख” और “जोड़-तोड़” के दम पर फिर से जिले में आमद करा ली।
सवाल यह है कि जिस सिपाही को माफिया नेटवर्क से निकटता के कारण हटाया गया था, वह आखिर किस प्रभावशाली लॉबी के दम पर न केवल वापसी करने में सफल रहा, बल्कि सर्विलांस सेल जैसे संवेदनशील विभाग में दोबारा पोस्टिंग भी पा गया?
सूत्रों के अनुसार, सचेंद्र सिंह की भूमिका माफिया अनुपम दुबे गैंग से जुड़े मामलों में संदिग्ध मानी गई थी। परंतु कुछ ही समय बाद सचेंद्र ने उच्च अधिकारियों के बीच लॉबिंग कर अपनी फतेहगढ़ में पुनः तैनाती करा ली। हैरत की बात यह है कि उसे सर्विलांस सेल, यानी उस इकाई में पोस्टिंग दी गई जहाँ से जिले के अपराधियों की कॉल रिकॉर्डिंग और ट्रैकिंग का काम होता है — वही विभाग जिसकी संवेदनशील जानकारी का दुरुपयोग सबसे बड़ा खतरा बन सकता है।


