– 34 परिवार छोड़ रहे गांव, दबंगई और राजनैतिक संरक्षण से टूटा हौसला
– विकास दुबे जैसा खौफ
बिल्हौर (कानपुर): कानपुर (Kanpur) की बिल्हौर (Bilhaur) तहसील के गांव खासपुर (Khaspur) से एक सनसनीखेज मामला सामने आया है जहाँ कुर्मी समाज के 34 परिवार अपनी बेटियों, बहुओं और छोटे-छोटे बच्चों संग गांव छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। आरोप है कि गांव के ही दबंग ननकू और उसके गैंग द्वारा लंबे समय से उत्पीड़न किया जा रहा है। इस उत्पीड़न की पराकाष्ठा तब हुई जब गांव के पूर्व प्रधान पर जानलेवा हमला किया गया। इस हमले के बाद भी पुलिस-प्रशासन की चुप्पी ने गांव वालों का विश्वास पूरी तरह तोड़ दिया।
बेटियों की इज्जत पर खतरा, जीने की आज़ादी पर ताले
ग्रामीणों का कहना है कि ननकू और उसके समर्थक आए दिन महिलाओं पर अश्लील टिप्पणियां करते हैं, खेतों में जाते समय पीछा करते हैं और विरोध करने पर जान से मारने की धमकी देते हैं। हालात ऐसे हो गए हैं कि गांव की बेटियां स्कूल जाना छोड़ चुकी हैं और महिलाएं दरवाज़े के बाहर कदम रखने से डरती हैं।
राजनीतिक रसूख बना ‘ढाल’, पुलिस बनी ‘गूंगी-बहरी’
ननकू, जो कि कभी पूर्व विधायक कमलेश दिवाकर का ख़ास माना जाता था, अब भाजपा के विधायक के संरक्षण में बेखौफ होकर अत्याचार करता फिर रहा है। पूर्व प्रधान पर हुए हमले का मुकदमा दर्ज होने के बावजूद अभी तक कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई है। गांव में यह चर्चा है कि स्थानीय थाने को ‘ऊपर से फोन’ आता है, इसलिए कार्रवाई रोक दी जाती है।
‘जीरो टॉलरेंस’ की सरकार में ज़मीन पर ज़ुल्म का बोलबाला
सरकार की “जीरो टॉलरेंस” नीति को चुनौती देती यह घटना पुलिस-प्रशासन की निष्क्रियता पर बड़ा सवाल खड़ा कर रही है। ग्रामीणों का कहना है कि अब वे अपने परिवार की जान-माल और इज्ज़त की सुरक्षा के लिए गांव से पलायन कर रहे हैं क्योंकि प्रशासन के पास सिर्फ “हवा निकालने वाले बयान” हैं। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन जल्द ननकू और उसके गुर्गों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं करता तो वे तहसील मुख्यालय पर सामूहिक धरना देंगे और ज़िला मुख्यालय तक मार्च करेंगे।
ये घटना कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि शासन की संवेदनशीलता पर भी गहरे घाव छोड़ती है। क्या 34 परिवारों की इज्ज़त, जान और हक़ सिर्फ इसलिए कुचले जाएंगे क्योंकि एक दबंग को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है?