टैक्स के नाम पर कराह उठा भारत, इनकम और खर्च दोनों पर टैक्स

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भारत में कर व्यवस्था आम नागरिक के लिए एक उलझन और बोझ बन चुकी है। करदाता सबसे आसान निशाना है। जब कोई व्यक्ति गाड़ी खरीदता है, तो पहले रोड टैक्स भरता है और फिर उसी सड़क पर चलने के लिए टोल टैक्स भी चुकाता है। यही हाल इनकम टैक्स और जीएसटी का है। नागरिक अपनी आय पर ईमानदारी से टैक्स देता है, लेकिन जब वही पैसा खर्च करता है तो उस पर जीएसटी देना पड़ता है। मतलब कमाई पर भी टैक्स और खर्च पर भी टैक्स।
भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 2023-24 में प्रत्यक्ष कर (इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स) से लगभग 19 लाख करोड़ रुपये और अप्रत्यक्ष कर (जीएसटी, एक्साइज, कस्टम) से करीब 14 लाख करोड़ रुपये वसूले गए। यानी हर साल 33 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा जनता से टैक्स लिया जाता है। सवाल यह है कि इतना पैसा कहाँ जाता है? क्या इसका असर सड़कों, अस्पतालों, शिक्षा या मूलभूत सुविधाओं में दिखता है? जवाब है—नहीं। टूटी-फूटी सड़कें, बदहाल सरकारी अस्पताल, शिक्षकों के बिना स्कूल और बिजली-पानी की किल्लत—ये सब टैक्स चुकाने वाले नागरिक की हकीकत है।
वास्तविकता यह भी है कि टैक्स वसूली का बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों में गुम हो जाता है। व्यापारी और कारोबारी अच्छी तरह जानते हैं कि एक बार इनकम टैक्स की रेड पड़ जाए तो बिना रिश्वत दिए मामला सुलझना नामुमकिन है। जीएसटी विभाग के अधिकारी छोटे कारोबारियों को नोटिस और पेनल्टी का डर दिखाकर पैसा ऐंठते हैं। यानी टैक्स वसूली कानून के नाम पर लूट का जरिया बन चुकी है।
अब सवाल उठता है कि जब नागरिक ईमानदारी से टैक्स भर रहा है तो बदले में उसे क्या मिल रहा है? दुनिया के कई देशों में वन नेशन, वन टैक्स की व्यवस्था सच है, जहाँ एक बार टैक्स देने के बाद नागरिक को दोबारा अलग-अलग नामों पर टैक्स नहीं चुकाना पड़ता। भारत में भी यही व्यवस्था लागू होनी चाहिए। जब जीएसटी है तो रोड टैक्स और टोल टैक्स का औचित्य खत्म होना चाहिए।
करदाता अब चुप रहने वाला नहीं है। उसका धैर्य असीमित नहीं है। जब वह पूछता है कि रोड टैक्स देने के बाद टोल क्यों, और इनकम टैक्स देने के बाद जीएसटी क्यों, तो उसके सवाल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। टैक्स का असली उद्देश्य जनता को सुविधाएँ देना होना चाहिए, न कि उसे बार-बार लूटना। अगर टैक्स प्रणाली को सरल और पारदर्शी नहीं बनाया गया, तो जनता का भरोसा सरकार और व्यवस्था दोनों से उठ जाएगा, और यही किसी लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा।

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