मोहर्रम की दसवीं पर शिया समुदाय ने निकाला जुलूस, जगह-जगह हुआ खूनी मातम
फर्रुखाबाद । मोहर्रम के आखिरी दिन पूरे शहर में “या हुसैन या मौला” की गूंज के साथ गम और मातम का माहौल छाया रहा। शिया समुदाय द्वारा परंपरागत रूप से ताजिए और आलम का जुलूस निकाला गया, जो मेहंदी बाग से प्रारंभ होकर शहर के विभिन्न मार्गों से होता हुआ चिलसरा रोड स्थित करबला तक पहुँचा, जहाँ इन्हें दफन किया गया।
इस दौरान “जब तक सूरज-चाँद रहेगा, हुसैन तेरा नाम रहेगा” जैसे नारे गूंजते रहे। जुलूस का नेतृत्व शिया समुदाय के सैयद आफताब हुसैन ने किया। घेर श्यामू खा से उठाए गए ताजिए एवं आलम के साथ जुलूस मेहंदी बाग से निकला, जो भूरा वाली गली, घूमन चौक, किराना बाजार, पक्का पुल और तिकोना से होकर करबला पहुँचा।
जुलूस के दौरान श्रद्धालुओं ने जगह-जगह सीना ज़नी और खूनी मातम करते हुए शहादत की याद में अपने जज्बात पेश किए। कुछ स्थानों पर श्रद्धालु ब्लेड से मातम करते देखे गए। भक्ति और श्रद्धा से ओतप्रोत इस माहौल में मौलाना सदाकत हुसैन सैंथली ने तकरीर पढ़ी और करबला में आलम व ताजियों को विधिपूर्वक दफनाया गया।
नगर प्रशासन ने मोहर्रम के मद्देनज़र सुरक्षा के विशेष इंतज़ाम किए थे। भूरा वाली गली के नुक्कड़ पर डीजे बजाने पर रोक लगाई गई थी। नगर मजिस्ट्रेट द्वारा केवल एक साउंड सिस्टम की अनुमति दी गई थी, जबकि अतिरिक्त डीजे को पुलिस ने कोतवाली में खड़ा कर लिया।
जुलूस के शांतिपूर्ण समापन के लिए स्थानीय पुलिस और प्रशासन मुस्तैद रहा। सम्पूर्ण कार्यक्रम सौहार्दपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ।