तबीयत या तबादला : नौकरशाही की राजनीति और पारदर्शिता पर उठते सवाल

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शरद कटियार

उत्तर प्रदेश की नौकरशाही में इस समय सबसे बड़ा सवाल यही है कि मुख्य सचिव शशि प्रकाश गोयल का मामला स्वास्थ्य संबंधी है या तबादले की आड़ में कोई और कहानी छिपी है। बीते एक महीने से वह छुट्टी पर हैं, डॉक्टरों की सलाह पर आराम कर रहे हैं, लेकिन इसी बीच सरकार ने उन्हें सभी विभागीय जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया। उनकी जगह कृषि उत्पादन आयुक्त दीपक कुमार को नौकरशाही का नया सुपर बॉस बना दिया गया है।

सवाल यह उठता है कि जब एसपी गोयल खुद कुछ ही दिनों में काम पर लौटने वाले हैं, तो फिर इतनी बड़ी जिम्मेदारियों का फेरबदल क्यों किया गया। क्या यह सिर्फ स्वास्थ्य कारणों से लिया गया फैसला है या फिर सत्ता और प्रशासन के समीकरण बदलने का इशारा।

उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में मुख्य सचिव की भूमिका सिर्फ फाइलों तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह पद राजनीतिक और प्रशासनिक संतुलन का प्रतीक होता है। ऐसे में अचानक जिम्मेदारियों का हस्तांतरण नौकरशाही गलियारों में नई चर्चाओं को जन्म देता है। विपक्ष और प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा भी तेज है कि कहीं यह स्वास्थ्य से ज्यादा सत्ता संतुलन का मामला तो नहीं।

हालांकि, सरकार की ओर से इसे पूरी तरह स्वास्थ्य से जुड़ा निर्णय बताया जा रहा है। लेकिन पारदर्शिता की दृष्टि से यह आवश्यक है कि जनता को स्पष्ट तौर पर बताया जाए कि यह कदम सिर्फ अस्थायी है या कोई स्थायी बदलाव। क्योंकि शासन में अनिश्चितता केवल अफसरों के मनोबल को ही नहीं गिराती, बल्कि प्रशासनिक तंत्र की स्थिरता पर भी असर डालती है।

ऐसे में यह समय सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण है कि वह यह स्पष्ट करे कि उत्तर प्रदेश का नौकरशाही भविष्य किसके हाथों में स्थायी रूप से रहने वाला है—स्वस्थ होकर लौटने वाले एसपी गोयल के या फिर नए सुपर बॉस बने दीपक कुमार के।

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