फर्रुखाबाद जनपद के रोशनाबाद क्षेत्र में स्थित सियाराम फिलिंग स्टेशन पर हुई प्रशासनिक कार्रवाई ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि यदि प्रशासनिक इच्छाशक्ति प्रबल हो, तो किसी भी अवैध गतिविधि पर समय रहते अंकुश लगाया जा सकता है। जिलाधिकारी आशुतोष कुमार द्विवेदी के निर्देश पर जिला पूर्ति अधिकारी सुरेंद्र यादव और टीम प्रभारी अनिल कुमार (एआरओ) के नेतृत्व में की गई छापेमारी न केवल अवैध डीजल-पेट्रोल की बिक्री को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे कानून को ताक पर रखकर कारोबार को अंजाम दिया जा रहा था।
सियाराम फिलिंग स्टेशन पर बायोडीजल के नाम पर पेट्रोल की अवैध बिक्री हो रही थी। जांच के दौरान करीब 15,000 लीटर डीजल और 3,000 लीटर पेट्रोल अवैध रूप से संचालित टैंकों में पाया गया। पंप के प्रोपराइटर पवन कटियार कोई वैध दस्तावेज, खरीद-बिक्री के बिल, जीएसटी विवरण तक प्रस्तुत नहीं कर सके।
बायोडीजल की अवधारणा एक वैकल्पिक और पर्यावरण-संवेदनशील विकल्प के रूप में प्रस्तुत की गई थी। लेकिन वर्तमान में इसका उपयोग कुछ व्यापारियों द्वारा कानून की धज्जियाँ उड़ाने और कर चोरी करने के लिए किया जा रहा है। बायोडीजल पंप की आड़ में पेट्रोल और डीजल जैसे नियंत्रित उत्पादों की अवैध बिक्री कर सरकार को राजस्व का बड़ा नुकसान पहुंचाया जा रहा है। यह मामला उसी भ्रष्ट प्रवृत्ति का जीवंत उदाहरण है।
यह भी अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है कि ऐसी गतिविधियां तब तक फलती-फूलती हैं जब तक किसी उच्चाधिकारी की निगाह उस पर न पड़ जाए। सवाल यह है कि इतनी बड़ी मात्रा में अवैध ईंधन का भंडारण कैसे संभव हुआ? क्या स्थानीय पुलिस, प्रशासनिक इकाइयों और संबंधित विभागों को इसकी भनक नहीं थी?
जिला प्रशासन द्वारा इस पूरे मामले में दिखाई गई तत्परता और सख्ती निश्चित रूप से सराहनीय है। जिलाधिकारी के आदेश पर जिला पूर्ति अधिकारी की अगुवाई में हुई छापेमारी केवल एक स्टेशन तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। यह पूरे जिले में फैले उन सभी पेट्रोल पंपों पर लागू होनी चाहिए, जो बायोडीजल, मिलावटी ईंधन अथवा बिना लाइसेंस संचालन कर रहे हैं।
जिला पूर्ति अधिकारी सुरेंद्र यादव द्वारा स्पष्ट किया गया कि किसी भी प्रकार का मिलावटी या अवैध ईंधन जिले में नहीं बिकने दिया जाएगा, एक दृढ़ और साहसिक संकल्प है। ऐसे कदम ही आम जनता का विश्वास प्रशासन में बढ़ाते हैं।
इस मामले में जीएसटी विभाग की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। जब कोई फर्म या पंप बिना कर चुकाए और बिना वैध बिलों के ईंधन बेच रहा हो, तो वह केवल आपराधिक मामला नहीं बल्कि कर अपवंचन का भी गंभीर मुद्दा बन जाता है। जीएसटी विभाग को ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेते हुए बकाया कर की वसूली, जुर्माना और लाइसेंस निरस्तीकरण जैसी कार्यवाही करनी चाहिए।
यह आवश्यक है कि राज्य स्तर से लेकर केंद्र स्तर तक के राजस्व विभाग इस दिशा में नीति निर्धारण करें जिससे कि बायोडीजल के नाम पर हो रही धोखाधड़ी को रोका जा सके।
मिलावटी डीजल या अवैध पेट्रोल न केवल वाहनों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि यह आम नागरिकों की सुरक्षा के लिए भी खतरा है। भूमिगत टैंकों में बिना सुरक्षा मानकों के स्टोरेज और गलत ढंग से डिस्पेंसिंग यूनिट का संचालन किसी बड़े हादसे को निमंत्रण देने जैसा है। प्रशासन को इस पहलू पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
इस छापेमारी में वरिष्ठ लिपिक राजीव कुमार की मौजूदगी यह दर्शाती है कि कार्रवाई केवल दिखावटी नहीं थी, बल्कि वास्तविक तथ्यों के आधार पर की गई। इस तरह की पारदर्शी कार्रवाई प्रशासनिक जवाबदेही को भी मजबूत करती है।
रोशनाबाद की यह घटना केवल एक पंप पर कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह पूरे सिस्टम के लिए चेतावनी है। यदि आज एक पंप पर इतनी बड़ी मात्रा में अवैध ईंधन पाया गया, तो सवाल उठता है कि अन्य स्थानों पर क्या स्थिति है? इस पूरे तंत्र की गहन जांच की आवश्यकता है।
राज्य सरकार को चाहिए कि वह ऐसी गतिविधियों के लिए एक समर्पित जांच सेल बनाए जो नियमित रूप से छापेमारी करे और रिपोर्ट सार्वजनिक करें। वहीं, जनता को भी चाहिए कि वह सजग नागरिक की भूमिका निभाते हुए किसी भी संदिग्ध पंप की जानकारी प्रशासन तक पहुंचाए।
इस मामले ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि मीडिया की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है। यदि इस खबर को गंभीरता से लिया गया है और प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई की है, तो यह जनतंत्र की ताकत का भी प्रमाण है।
सरकार, प्रशासन और जनता – तीनों की साझा जिम्मेदारी है कि वे ऐसे अवैध और खतरनाक कृत्यों के खिलाफ मिलकर खड़े हों। तभी एक सुरक्षित, पारदर्शी और जवाबदेह समाज का निर्माण संभव है।