श्रीरामभद्राचार्य की रामकथा के बाद टेंट का हिसाब बना विवाद

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कारोबारी ने लगाया 42 लाख बकाया का आरोप

मेरठ। श्रीरामभद्राचार्य की रामकथा के सफल आयोजन के बाद अब टेंट और अन्य व्यवस्थाओं के पैसों को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। गाजियाबाद के टेंट कारोबारी अनुज अग्रवाल ने आरोप लगाया है कि उनसे 87 लाख रुपये में सौदा तय कर आयोजन में पंडाल और अन्य सुविधाएं कराई गईं। अग्रिम के रूप में उन्हें 25 लाख रुपये मिले और बाकी रकम किस्तों में देने का वादा किया गया। लेकिन अब तक उन्हें केवल 45 लाख रुपये ही दिए गए, जबकि 42 लाख रुपये का भुगतान बकाया है। उन्होंने आरोप लगाया कि आयोजक महामंडलेश्वर लाडलीनंद, सुनील शुक्ला और संतोष शुक्ला से कई बार संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने फोन तक रिसीव नहीं किया।

दूसरी ओर, जूना अखाड़े की महामंडलेश्वर लाडलीनंद ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया। उनका दावा है कि अनुज अग्रवाल को 60 लाख रुपये का भुगतान पहले ही किया जा चुका है। 45 लाख रुपये आयोजन के दौरान और 15 लाख रुपये कथा के समापन से एक दिन पहले दिए गए। उनका कहना है कि कारोबारी ने तय काम के मुताबिक व्यवस्था नहीं की और हिसाब निकालने पर उल्टा 27 लाख रुपये की गड़बड़ी सामने आई। इसलिए वे अनुज अग्रवाल से 21 लाख रुपये की वसूली की मांग कर रहे हैं और उन पर मानहानि का मुकदमा दायर करने की तैयारी में हैं।

लाडलीनंद ने यह भी आरोप लगाया कि टेंट कारोबारी शुरू में अजीत प्रधान के साथ आए थे और 30 लाख रुपये कमीशन काटने की बात कही गई थी। बाद में वह अकेले आकर सीधे डील करने लगे। यह विवाद भी इन्हीं मतभेदों का परिणाम बताया जा रहा है।

इसके साथ ही लाडलीनंद ने मेरठ के लोगों पर सहयोग न करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कथा आयोजन में स्थानीय स्तर पर अपेक्षित चंदा नहीं मिला और जो कुछ आया, वह मंच पर स्वागत और स्वामी जी के दर्शन के समय ही आया।

इस विवाद के बीच जूना अखाड़े के समाधि पीठाधीश्वर स्वामी हेमन्ता सरस्वती ने बड़ा खुलासा करते हुए कहा कि लाडलीनंद की महामंडलेश्वर पदवी अनौपचारिक है। उन्होंने बताया कि संन्यास और महामंडलेश्वर बनने की औपचारिक प्रक्रिया उन्होंने पूरी नहीं की है, जिसमें मुंडन संस्कार, पिंड दान, पंच गुरु दीक्षा और अखाड़े से औपचारिक मंजूरी शामिल है। अखाड़ा किसी भी उम्मीदवार का पूरा आपराधिक रिकॉर्ड और पृष्ठभूमि की जांच करता है, तभी औपचारिक मान्यता दी जाती है।

स्वामी हेमन्ता सरस्वती ने स्पष्ट किया कि फिलहाल लाडलीनंद को अखाड़े द्वारा औपचारिक मान्यता प्राप्त महामंडलेश्वर नहीं माना जा सकता। इस प्रकार, कथा के बाद खड़ा हुआ यह विवाद न केवल पैसों के बकाये का, बल्कि धार्मिक पदवी की वैधता का भी मुद्दा बन गया है।

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