पेड़ों पर फुदकती, हल्की सी आहट से चौंकती प्यारी गिलहरी (Squirrels) क्रूर शिकारी भी हो सकती हैं। यकीन नहीं होता ना लेकिन यह सच है।
हम गिलहरियों को अखरोट तोड़ते देखने के ही आदी हैं, लेकिन फर वाली त्वचा और कोमल शरीर वाली गिलहरी चूहों का बेरहमी से शिकार करके बड़े चाव से खाती हैं। बीते 18 दिसंबर को जर्नल ऑफ इथोलॉजी में छपी एक नई रिसर्च रिपोर्ट ने इस बारे में जानकारी दी है। यह पहली बार है जब नाजुक दिखने वाली गिलहरियों के मांसाहारी होने की बात सामने आई है।
यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन-ऑ क्लेयर की एसोसिएट प्रोफेसर और रिसर्च रिपोर्ट की प्रमुख लेखक जेनिफर ई स्मिथ के लिए भी “यह हैरान करने वाला है।” प्रोफेसर स्मिथ ने कहा, “हमने इस तरह का व्यवहार पहले कभी नहीं देखा। हम तो उन्हें अपनी खिड़की के बाहर देखते हैं, अक्सर उनसे मेलजोल करते हैं।हालांकि विज्ञान के सामने पहले कभी नहीं आए इस रवैये ने इस सच को दिखाया है कि हमारे आसपास की प्रकृति के इतिहास के बारे में अभी बहुत जानना बाकी है।”
गिलहरियों का यह व्यवहार इस साल गर्मियों में नजर आया। कैलिफोर्निया में कॉन्ट्रा कोस्टा काउंटी के ब्रियोनेस रिजनल पार्क में लंबी रिसर्च के 12वें साल में यह पता चला। जून और जुलाई के बीच रिसर्चरों ने गिलहरियों और चूहों के 74 संपर्कों को रिकॉर्ड किया। इनमें से 42 फीसदी में गिलहरियों ने चूहों का शिकार किया।
रिपोर्ट की सह लेखिका सोन्या वाइल्ड कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की रिसर्चर हैं। उन्होंने माना कि जब अंडरग्रेजुएट छात्रों ने गिलहरियों का व्यवहार देखने के बाद पहली बार उन्हें इसकी जानकारी दी तो उन्हें भरोसा नहीं हुआ था। वाइल्ड ने कहा, “मैं अपनी नजरों पर यकीन नहीं कर पा रही थी। हालांकि बाद में जब हमने देखना शुरू किया तो यह सब जगह नजर आया।”
पहले यह माना जाता था कि गिलहरियों की तीस प्रजातियां ऐसी हैं जो मौका मिलने पर मांस भी खा लेती हैं। छोटी मछलियां और पक्षी ही उनका आहार बनते थे लेकिन सक्रिय रूप से शिकार करने के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं थी। नई रिसर्च ने पहली बार यह साबित किया है कि गिलहरियों का शिकार करना एक सामान्य बात है।
रिसर्चरों ने देखा कि गिलहरियां जमीन पर नीचे दुबक कर चलती हैं और फिर अचानक अपने शिकार पर धावा बोलती हैं। वो चूहों का पीछा करती हैं, उनपर झपट्टा मारती हैं और गले पर दांत से काटती हैं, इसके बाद उन्हें फिर झुलाती हैं। रिसर्च में यह भी पता चला है कि गिलहरियों का मांसाहारी रवैया जुलाई के पहले दो हफ्तों में चरम पर था। संयोग से इसी समय चूहों की आबादी बढ़ने की भी जानकारी मिली थी। वाइल्ड का कहना है, “यह दिखाता है कि गिलहरियों का व्यवहार लचीला है और भोजन की उपलब्धता के आधार पर बदलावों के साथ चल सकती हैं।”
रकून, चितकबरे लकड़बग्घे और काइयोट (उत्तरी अमेरिका में पाया जाने वाला छोटा भेड़िया) भी इस तरह का लचीलापान अपने आहार में दिखाते हैं। इंसानी गतिविधियों के कारण उनके पर्यावरण में जो बदलाव हुए हैं उसमें वन्य जीवों ने खुद को नई परिस्थितियों में ढालने का अच्छा उदाहरण पेश किया है।
रिसर्चरों को अभी कई सवालों के जवाब ढूंढने हैं। वो गिलहरी की प्रजातियों में शिकार की प्रवृत्ति पर रिसर्च करना चाहते हैं। वो यह भी जानना चाहते हैं कि क्या यह मां-बाप से बच्चों में आती है और साथ ही यह भी कि उनके विस्तृत इकोसिस्टम पर क्या असर डालती है।