पहाड़ों की रानी कहे जाने वाले नैनीताल (Nainital) का नाम सुनते ही मन में झील, शांति और हरियाली की एक सुंदर तस्वीर उभर आती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस मनमोहक स्थान की खोज कैसे हुई? आज हम आपको नैनीताल की खोज की उस ऐतिहासिक कहानी (historical story) से रूबरू कराते हैं, जो एक अंग्रेज अधिकारी की जिज्ञासा से शुरू होकर आज के पर्यटन स्वर्ग तक पहुंची।
साल था 1841,ब्रिटिश शासन का दौर चल रहा था। कुमाऊं क्षेत्र में तैनात पिलिबीत के ट्रेज़री ऑफिसर (कोषाध्यक्ष) श्री पी. बैरन (P. Barron) एक साहसी और जिज्ञासु अंग्रेज थे। उन्हें प्रकृति से विशेष लगाव था और अक्सर वे पहाड़ी इलाकों में भ्रमण करते रहते थे। एक दिन स्थानीय लोगों से उन्हें खबर मिली कि कुमाऊं की पहाड़ियों के बीच एक रहस्यमयी झील है — एक ऐसी झील जिसके चारों ओर घना जंगल है और जिसके पानी में देवी नैना देवी का निवास माना जाता है। यह बात बैरन को आकर्षित कर गई। उन्होंने तुरंत अपने साथी, स्थानीय व्यापारी श्याम दत्त साह के साथ उस झील की खोज पर निकलने का निर्णय लिया।
पहली झलक और अचरज
कठिन पहाड़ी रास्तों से गुजरते हुए जब पी. बर्रन पहली बार उस झील के किनारे पहुंचे — तो वे उस सौंदर्य से स्तब्ध रह गए। सामने फैली हरी-नीली झील, चारों ओर देवदार और चीड़ के घने जंगल, और पर्वतों की गोद में बसा यह अद्भुत दृश्य उन्हें इतना भा गया कि उन्होंने इसे “जन्नत का टुकड़ा” कह डाला।
यही वह क्षण था जब नैनीताल की खोज आधिकारिक रूप से इतिहास के पन्नों में दर्ज हुई — साल 1841 में।
पहला घर और ब्रिटिश बस्ती की शुरुआत
झील की सुंदरता से प्रभावित होकर बैरन ने यहां अपना पहला घर बनवाया, जिसका नाम रखा “पिग्रिम लॉज ”। धीरे-धीरे अन्य अंग्रेज अधिकारी और परिवार भी यहां बसने लगे। 1842 तक नैनीताल ब्रिटिश अधिकारियों के लिए ग्रीष्मकालीन विश्राम स्थल (समर रिसोर्ट) के रूप में प्रसिद्ध हो गया। फिर यहां स्कूल, चर्च और सरकारी भवन बनने लगे — जिनमें प्रसिद्ध सेंट जोसेफ कॉलेज, गवर्नर हाउस (राजभवन) और नैना देवी मंदिर प्रमुख हैं।
स्थानीय किंवदंती के अनुसार, देवी सती के शरीर के अंग जब भगवान शिव के तांडव के दौरान धरती पर गिरे, तो उनकी आंखें (नयन) इसी स्थान पर गिरी थीं।इसी से इस जगह का नाम पड़ा — नैनीताल (“नयन” + “ताल” यानी “आंखों की झील”)। झील के उत्तरी किनारे पर आज भी नैना देवी मंदिर स्थित है, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है। आज नैनीताल न केवल उत्तराखंड की राजधानी (नैनीताल जनपद) का मुख्यालय है, बल्कि देश-विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र भी है।
नैनी झील, स्नो व्यू पॉइंट, टिफिन टॉप, नैना पीक, माल रोड, और राजभवन जैसी जगहें यहां आने वालों को मोह लेती हैं। जहां एक समय एक अंग्रेज अधिकारी ने जिज्ञासा में कदम रखा था, वहीं अब हर साल लाखों पर्यटक उसकी खोज की सराहना करने आते हैं। इस प्रकार, P. Barron द्वारा 1841 में की गई खोज ने एक अनदेखे, शांत और पवित्र स्थल को विश्व पटल पर ला खड़ा किया। आज नैनीताल सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि उस खोज की जीवंत कहानी है — जो जिज्ञासा, प्रकृति-प्रेम और सौंदर्य की तलाश का प्रतीक बन चुकी है।
स्पेशल स्टोरी : यूथ इंडिया
“हर खोज में छिपा है इतिहास, और हर इतिहास में बसता है एक सुंदर सपना — नैनीताल उसी सपने का नाम है।”


