खास इंटरव्यू: राघवेन्द्र सिंह ‘राजू’
– क्या भारत हिंदू राष्ट्र बनेगा? ‘एक देश, एक नाम’ का सपना क्या साकार होगा?
-‘रामराज्य केसरी यात्रा’ और क्षत्रिय स्वाभिमान को लेकर बोले अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के वरिष्ठ नेता
लखनऊ | प्रशांत कटियार
“भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की दिशा में क्या आगे बढ़ा जा सकता है? ‘एक देश, एक नाम’ की परिकल्पना क्या साकार हो पाएगी? क्या लोकतंत्र ने देश को वह न्याय दिया, जिसकी उम्मीद आज़ादी के बाद की गई थी?” — इन्हीं सवालों को लेकर अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय महामंत्री राघवेन्द्र सिंह राजू से मीडिया ने विशेष चर्चा की।
राजू स्पष्ट शब्दों में कहते हैं, “भारत दुनिया का एकमात्र देश है, जिसे दो नामों — ‘हिंदुस्तान’ और ‘इंडिया’ — से जाना जाता है।” उनका मानना है कि यह नामों की दोहरी पहचान राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधा है और इसे ‘एक देश, एक नाम’ के सिद्धांत से ठीक किया जाना चाहिए।
‘राजपूतों ने भारत को बचाया’ — इतिहास का दोहराव जरूरी
राघवेन्द्र राजू ने कहा कि 8वीं से 17वीं सदी तक इस्लामिक आक्रांताओं ने देश पर हमले किए, लेकिन सनातन धर्म और हिंदू समाज की रक्षा का दायित्व केवल राजपूतों ने निभाया। उन्होंने बलिदान, शौर्य और देशभक्ति से इस भूमि को “इस्लामी राष्ट्र” बनने से रोका। उन्होंने यह भी जोड़ा कि “1857 से 1947 के बीच राजपूताना रियासतों में महिला अपराध की एक भी FIR दर्ज नहीं हुई, जबकि आज लोकतंत्र में हर दिन अपराध की खबरें सामने आती हैं।”
राजू ने कटाक्ष करते हुए कहा कि “गुलजारीलाल नंदा और लाल बहादुर शास्त्री की सादगी और निष्ठा अब सत्ता की होड़ में कहीं खो गई है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि स्वार्थी राजनीति ने राजपूतों और राष्ट्रवादी वर्ग को सत्ता से दूर रखने की साजिश रची है, और जातियों में उन्माद फैलाकर देश की अस्मिता से खिलवाड़ किया जा रहा है।
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद कुंवर हरिवंश सिंह के नेतृत्व में प्रस्तावित “रामराज्य केसरी यात्रा” के बारे में पूछे जाने पर राजू ने कहा कि यह यात्रा “क्षत्रिय स्वाभिमान और हिंदू राष्ट्र निर्माण की चेतना को जगाने के लिए निकाली जाएगी।”
राजू ने बताया कि 1952 में राजस्थान विधानसभा में 72 राजपूत विधायक चुने गए थे, वहीं 1980 में कांग्रेस के 139 विधायक राजपूत थे। 2012 में समाजवादी पार्टी ने 52 राजपूतों को टिकट दिया था, जिनमें 45 जीतकर आए। पर आज उत्तर प्रदेश में सिर्फ 61 राजपूत विधायक ही बचे हैं, जो एक गंभीर गिरावट है।
राजू ने सवाल उठाया कि “क्या संघ में कोई क्षत्रिय प्रमुख बनना सिर्फ एक सपना है?” उन्होंने कहा कि राजपूतों से रियासतें तो ले ली गईं, लेकिन सियासत में उनकी भागीदारी को सीमित कर दिया गया। वह मानते हैं कि “हमारे साथ सत्ता का अनुबंध क्या था, सरकार को जनता के सामने रखना चाहिए।”
राजू ने आलोचना की कि आज के कई राजपूत नेता ‘पाना तो बहुत चाहते हैं, लेकिन करना कुछ नहीं चाहते।’ वे पूर्वजों की गौरवगाथा पर जी रहे हैं, खुद को नहीं पहचान पा रहे। उन्होंने कबीर के दोहे “कस्तूरी कुंडलि बसे…” का जिक्र करते हुए कहा कि “राजपूतों को अपनी पहचान खुद बनानी होगी, सिर्फ अतीत पर जीने से भविष्य नहीं बनता।”
राजू ने खासतौर पर स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी किसी दल से टिकट नहीं मांगा, और न ही किसी विशेष पार्टी की आलोचना की। लेकिन वे मानते हैं कि “संगठन की शक्ति ही कलियुग में परिवर्तन ला सकती है।” उन्होंने क्षत्रिय समाज से आह्वान किया कि निजी स्वार्थ छोड़कर समाज हित को सर्वोपरि मानें, सोशल मीडिया पर भ्रम फैलाने के बजाय धरातल पर एकजुट हों, वोटबैंक बनाएं और लोकतंत्र में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करें।
राघवेन्द्र सिंह ‘राजू’ ने कहा —
“मैंने अपना 40 साल समाज को दिए हैं, कार्यकर्ता था, आज भी हूं। समाज सर्वोपरि था, है और रहेगा।”
उन्होंने अपने खास अंदाज़ में कहा “हमसे कोई लड़ नहीं सकता, पर हम आपस में बंटे हुए हैं। समय है कि संगठित हो, अपने हक की आवाज़ बुलंद करें।”