प्रशांत कटियार
राजनीति में शब्दों के चयन से लेकर चुप्पी तक, सबका अपना संदेश होता है। मैनपुरी से सपा सांसद डिंपल यादव पर एक मुस्लिम मौलाना की टिप्पणी ने इन दिनों राजनीतिक गलियारों में बेचैनी फैला दी है। इस पूरे घटनाक्रम ने समाजवादी पार्टी को एक ऐसे दोराहे पर ला खड़ा किया है, जहां प्रत्येक कदम पर जोखिम है और प्रत्येक चुप्पी पर प्रश्नचिन्ह।यह कोई साधारण विवाद नहीं है। टिप्पणी सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी पर हुई है, और स्वाभाविक है कि पार्टी के लिए यह व्यक्तिगत भी है और सार्वजनिक भी। महिला सम्मान को लेकर सपा ने हाल के वर्षों में मुखर रुख अपनाया है, लेकिन इस मामले में पार्टी नेतृत्व की चुप्पी ने उसकी ही रणनीति को कठघरे में ला खड़ा किया है।
खासकर तब, जब भाजपा इस मुद्दे को लगातार हवा दे रही है और अखिलेश यादव की चुप्पी पर तीखे सवाल खड़े कर रही है।इस मामले में पार्टी कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया दोहरी चिंता को दर्शाती हैएक तरफ सपा मौलाना साजिद रशीदी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा रही है, तो दूसरी ओर एक टीवी डिबेट के दौरान उन पर हाथ उठाने की घटना हुई, जिसने एक नई बहस को जन्म दे दिया। मौलाना साजिद रशीदी ने पिटाई के बाद मुस्लिम संगठनों की चुप्पी पर भी सवाल उठाए हैं, और ये सवाल केवल धार्मिक समाज की नहीं, बल्कि सियासी चरित्र की भी परीक्षा है।
इसी क्रम में कैराना से सपा सांसद इकरा हसन पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले योगेंद्र सिंह राणा के मामले को भी मुस्लिम समाज के लोग सोशल मीडिया पर उठा रहे हैं। वे पूछ रहे हैं कि क्या किसी सपा कार्यकर्ता ने राणा के खिलाफ ऐसी ही आक्रामक प्रतिक्रिया दिखाई, क्या महिला सम्मान का दायरा केवल विचारधारा और धर्म देखकर तय होगा, क्या विरोध की धार केवल कुछ सीमित मामलों तक ही सीमित रहेगी,यह मामला अब किसी एक बयान या एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रहा। यह समाजवादी पार्टी की कथनी और करनी के बीच के अंतर, राजनीतिक प्राथमिकताओं और महिला सम्मान की सार्वभौमिकता को लेकर उसके दृष्टिकोण की गंभीर परीक्षा बन चुका है।
समाज और राजनीति दोनों को यह तय करना होगा कि महिला सम्मान पर राजनीति से ऊपर उठकर सोचना होगा। अगर एक समुदाय या नेता पर सख्त प्रतिक्रिया दी जाती है, तो उसी मापदंड से दूसरे पक्ष पर भी प्रतिक्रिया होनी चाहिए न कि मौन और चुप्पी से स्थिति को टालने की कोशिश।