आज का दिन विशेष है। एक ओर हम शिक्षक दिवस मना रहे हैं, जो भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को समर्पित है, वहीं दूसरी ओर ईद-ए-मिलादुन-नबी का पर्व भी हमें मानवता और भाईचारे का संदेश दे रहा है। संयोग से दोनों अवसर हमें यह याद दिलाते हैं कि समाज और राष्ट्र की असली शक्ति केवल आर्थिक या राजनीतिक सामर्थ्य में नहीं, बल्कि शिक्षा और सद्भाव में निहित है।
डॉ. राधाकृष्णन केवल राष्ट्रपति या शिक्षाविद ही नहीं थे, बल्कि वे उस भारत की आत्मा थे, जिसने ज्ञान और दर्शन के जरिए दुनिया को दिशा देने का काम किया। शिक्षक दिवस हमें स्मरण कराता है कि एक आदर्श गुरु केवल पाठ्यपुस्तक का ज्ञान ही नहीं देता, बल्कि वह समाज की अंतरात्मा को गढ़ता है। शिक्षक ही वह शिल्पी है, जो आने वाली पीढ़ी को आकार देता है और राष्ट्र की नींव को मजबूत करता है।
इसी कड़ी में ईद-ए-मिलादुन-नबी हमें पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद साहब की शिक्षाओं की ओर लौटने का अवसर देता है। यह दिन शांति, भाईचारा, सहिष्णुता और इंसानियत की मूल भावना का प्रतीक है। जिस तरह एक शिक्षक मार्गदर्शन करता है, उसी तरह यह पर्व समाज को नफ़रत से ऊपर उठकर सद्भाव और मोहब्बत का पैगाम देता है।
आज जब दुनिया तकनीक की तेज़ दौड़ में है और समाज कई चुनौतियों से जूझ रहा है, तब शिक्षा और सद्भाव दोनों की अहमियत और बढ़ जाती है। शिक्षा हमें सोचने और समझने की क्षमता देती है, जबकि सद्भाव हमें इंसानियत से जोड़े रखता है। यदि हम दोनों को साथ लेकर चलें तो राष्ट्र न केवल प्रगति करेगा बल्कि वह सभ्यता और संस्कृति का आदर्श भी बनेगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संदेश में भी यही भाव स्पष्ट दिखता है—शिक्षक शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाकर राष्ट्र को ऊंचाई पर ले जाएं और समाज में सकारात्मक बदलाव लाएं। साथ ही, त्योहार हमें एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील और सहयोगी बनने की प्रेरणा दें।
निष्कर्ष यही है कि शिक्षक दिवस और ईद-ए-मिलादुन-नबी दोनों ही हमें सिखाते हैं कि ज्ञान और सद्भाव का संगम ही भारत की असली पहचान है। जब तक शिक्षा और इंसानियत की मशाल हमारे हाथों में रहेगी, तब तक न अंधकार टिकेगा और न ही विभाजन की राजनीति।