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Monday, August 18, 2025

मोरारी बापू को लेकर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का बड़ा बयान – “जब तक धर्म मर्यादा में नहीं आते, उनका चेहरा देखना भी पाप”

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– काशी से जारी किया धर्मदंड, सनातनी समाज को किया सावधान

काशी: उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर परमाराध्य परमधर्माधीश जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद (Shankaracharya Avimukteshwaranand) सरस्वती जी ने धर्मशास्त्रों के उल्लंघन को लेकर कथावाचक मोरारी बापू (Morari Bapu) पर बड़ा धर्मिक निर्णय (religious judgment) सुनाया है। उन्होंने मोरारी बापू को धर्मविरुद्ध आचरण का दोषी ठहराते हुए कहा है कि “जब तक मोरारी बापू धर्म मर्यादा में स्थित नहीं होते, तब तक उनका चेहरा देखना भी पाप समझा जाएगा।” शंकराचार्य जी ने मोरारी बापू को “धर्म के मामलों में अप्रमाण” घोषित किया है।

यह प्रेस वक्तव्य काशी से आषाढ़ कृष्ण एकादशी, संवत 2082 (दिनांक 21 जून 2025) को जारी किया गया। शंकराचार्य जी के मीडिया प्रभारी संजय पांडेय के माध्यम से दी गई जानकारी में कहा गया है कि मोरारी बापू का हालिया आचरण शास्त्रीय मर्यादा के विपरीत रहा है, और उन्होंने धार्मिक विधियों का निरंतर उल्लंघन किया है।

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी ने बताया कि शास्त्रों में धर्माचार्यों को विशेषाधिकार प्राप्त है कि वे धर्म से भटकते हुए आचरण पर दंड दे सकते हैं। उन्होंने मोरारी बापू के अपनी पत्नी के निधन के बाद शास्त्रीय सूतक और उत्तर क्रिया का पालन न करने, काशी जैसे पवित्र नगर में विश्वनाथ मंदिर में गर्भगृह में प्रवेश कर पूजा करने तथा वहीं कथा करने जैसे कार्यों को “अशास्त्रीय” बताया।

शंकराचार्य जी ने यह भी कहा कि जब समाज, विद्वान, धर्माचार्य और श्रद्धालुजन उन्हें रोकते रहे, तब भी उन्होंने कथा बंद नहीं की। उन्होंने निम्बार्क संप्रदाय का हवाला देते हुए कहा कि उनके पास भी शास्त्र हैं, लेकिन शास्त्र सम्मत प्रमाण सार्वजनिक नहीं किया। जगद्गुरु शंकराचार्य ने धर्मिक निर्णय लेते हुए मोरारी बापू के उपदेशों और आचरण को धर्म के लिए अप्रमाण घोषित किया है। साथ ही कहा,

 

“आज से हम मोरारी बापू का चेहरा देखना भी पाप समझेंगे और उन्हें भी जीवन में हमें देखने का अवसर समाप्त करते हैं, जब तक कि वे शास्त्र मर्यादा में स्थित नहीं हो जाते।”

उन्होंने जनता से अपील की है कि वे मोरारी बापू के उपदेशों और कथनों को प्रमाण न मानें और उनकी उपेक्षा करें। शंकराचार्य जी ने ब्रह्मसूत्र, मनुस्मृति, पराशर माधवीय सहित अनेक शास्त्रीय स्रोतों का उल्लेख करते हुए बताया कि सूतक (मरणोत्तर अपवित्रता) के दौरान कोई भी धार्मिक अनुष्ठान, पूजा, कथा, भजन आदि निषिद्ध हैं। उन्होंने कहा कि

 

“शास्त्र की आधी बात मानना और आधी नहीं मानना शास्त्रों का अपमान है।”

उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि जैसे टैक्सी किराए पर लेने पर आप चलाएं या खड़ी रखें, किराया देना ही होता है – उसी प्रकार शास्त्र में निषिद्ध कार्यों से दूर रहना भी धर्म है। शंकराचार्य जी ने निम्बार्क संप्रदाय और उनके आचार्य से भी अपील की कि वे मोरारी बापू के संदर्भ में सनातन समाज का मार्गदर्शन करें और यह स्पष्ट करें कि उनके आचरण संप्रदाय की मर्यादाओं के अनुरूप हैं या नहीं। यह बयान सनातन धर्म में शास्त्र मर्यादा की प्रतिष्ठा और उसके पालन के संदर्भ में अत्यंत गंभीर माना जा रहा है। मोरारी बापू पर सीधे धर्मदंड लगाने की इस घोषणा से धार्मिक जगत में हलचल तेज हो गई है। अब देखना होगा कि मोरारी बापू की ओर से इस पर क्या प्रतिक्रिया आती है।

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