– 52 पृष्ठों के विस्तृत आदेश में गिरफ्तारी व्यक्ति के अधिकारों की दी गई विस्तृत व्याख्या
नई दिल्ली। देश के नागरिक अधिकारों को मज़बूती देने वाला एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा है कि अब किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए पुलिस या जांच एजेंसी को ‘लिखित आधार’ बताना अनिवार्य होगा। अदालत ने अपने 52 पन्नों के विस्तृत आदेश में कहा कि केवल पीएफआईआईआर (FIR) दर्ज होना गिरफ्तारी का पर्याप्त कारण नहीं है। गिरफ्तारी से पहले पुलिस अधिकारी को लिखित रूप में यह बताना होगा कि गिरफ्तारी क्यों आवश्यक है और इस संबंध में क्या ठोस आधार हैं।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस एस.वी. एन. भट्ट की पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी की शक्ति ‘मनमानी’ नहीं हो सकती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हर गिरफ्तारी के लिए पुलिस अधिकारी को यह लिखित रूप में दर्ज करना होगा कि गिरफ्तार व्यक्ति को हिरासत में लेना क्यों जरूरी है।
अदालत ने कहा, “गिरफ्तारी का अधिकार कानून का हिस्सा है, लेकिन यह अधिकार असीमित नहीं हो सकता। यह केवल तभी लागू होगा जब गिरफ्तारी आवश्यक और औचित्यपूर्ण हो।”
यह फैसला मुंबई के चर्चित हिट एंड रन मामले में आरोपी राजू शाह की याचिका पर सुनाया गया। याचिकाकर्ता ने कहा था कि पुलिस ने बिना ठोस आधार और लिखित कारण बताए उसे गिरफ्तार कर लिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह गलत है और भविष्य में सभी जांच एजेंसियों को लिखित औचित्य के बिना गिरफ्तारी से बचना होगा।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा
किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले मजिस्ट्रेट के सामने पेशी से दो घंटे पहले तक गिरफ्तारी का लिखित आधार प्रस्तुत किया जाए।
यदि गिरफ्तारी का कोई ठोस कारण नहीं है, तो व्यक्ति को तुरंत रिहा किया जाए।
गिरफ्तारी की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 21 और 22(1) के तहत व्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ी है, इसलिए इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
गिरफ्तारी की सूचना लिखित रूप में आरोपी के परिवार को देना भी अनिवार्य होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह फैसला गिरफ्तारी की शक्ति और व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करता है। अदालत ने यह भी कहा कि कई बार पुलिस अधिकारी बिना उचित कारण के गिरफ्तारी कर लेते हैं, जिससे निर्दोष व्यक्ति को अनावश्यक रूप से जेल में रहना पड़ता है।
कोर्ट ने कहा—
> “हर गिरफ्तारी को न्यायिक जांच के दायरे में लाया जाना चाहिए। पुलिस या जांच एजेंसी यह नहीं कह सकती कि हमें अधिकार है, इसलिए हमने गिरफ्तारी की। कानून अब कहता है — ‘लिखकर बताओ, क्यों की।’”
अब देशभर में किसी भी गिरफ्तारी के लिए पुलिस को निम्नलिखित नियमों का पालन करना होगा—गिरफ्तारी से पहले लिखित औचित्य दर्ज करना।मजिस्ट्रेट के सामने गिरफ्तारी का लिखित विवरण प्रस्तुत करना।आरोपी और उसके परिवार को लिखित जानकारी देना।गिरफ्तारी का दुरुपयोग होने पर जिम्मेदार अधिकारी पर कार्रवाई संभव।
यह फैसला न केवल पुलिस प्रणाली में पारदर्शिता लाएगा, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा भी करेगा। सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक निर्णय न्यायिक व्यवस्था में “मनमानी गिरफ्तारी” पर अंकुश लगाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।




