नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ने सड़कों, हाईवे और सार्वजनिक स्थलों पर घूम रहे आवारा कुत्तों और पशुओं को लेकर सख्त रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि 8 हफ्तों के भीतर शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों जैसे सार्वजनिक स्थानों से आवारा कुत्तों और अन्य पशुओं को हटाकर सुरक्षित आश्रय गृहों में रखा जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश देशभर में बढ़ते कुत्तों के हमलों और रेबीज़ संक्रमण के मामलों को देखते हुए दिया है। अदालत ने कहा कि मानव जीवन की सुरक्षा सर्वोपरि है, इसलिए प्रशासन को ऐसी जगहों पर तुरंत कार्रवाई करनी होगी, जहाँ इन पशुओं से खतरा बढ़ रहा है।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि कुत्तों को मारने या प्रताड़ित करने की अनुमति नहीं है, बल्कि उन्हें पशु कल्याण कानूनों के तहत टीकाकरण और नसबंदी के बाद सुरक्षित आश्रय गृहों में रखा जाए।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर में लगभग 10 लाख आवारा कुत्ते हैं, जबकि देशभर में इनकी संख्या लगभग 6.2 करोड़ बताई जाती है। केवल दिल्ली में ही हर साल 20,000 से अधिक कुत्ते के काटने (डॉग बाइट) के मामले दर्ज होते हैं।
जनवरी 2025 तक के राष्ट्रीय आंकड़ों के मुताबिक, भारत में इस साल अब तक 4.3 लाख कुत्ते के काटने के मामले सामने आए हैं। इनमें से लगभग 3,200 मामलों में रेबीज़ संक्रमण की पुष्टि हुई है।
आदेश मे कहा गया
8 हफ्तों में रेलवे स्टेशन, अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और सरकारी परिसरों से कुत्ते व पशु हटाए जाएं।
सभी स्थानीय निकायों को आश्रय गृहों की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी।
कुत्तों को टीकाकरण और नसबंदी के बाद ही पुनर्वासित किया जाए।
सार्वजनिक स्थलों पर भोजन (feeding) केवल निर्धारित क्षेत्रों में ही किया जा सकेगा।
आदेश की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को विशेष समन्वय समिति गठित करने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कई पशु अधिकार संगठनों ने इसे “अमानवीय और अव्यवहारिक” करार दिया है। उनका कहना है कि देश में पर्याप्त आश्रय गृह नहीं हैं, जिनमें इतने बड़े पैमाने पर पशुओं को रखा जा सके। दिल्ली नगर निगम के पास इस समय केवल 25 से 30 आश्रय गृह हैं, जिनमें कुल मिलाकर 10,000 से कम कुत्तों को ही रखा जा सकता है।
आलोचनाओं के बाद 22 अगस्त को अदालत ने अपने आदेश में कुछ संशोधन किए।
अब अदालत ने स्पष्ट किया है कि
सभी कुत्तों को स्थायी रूप से कैद नहीं किया जाएगा।
केवल बीमार, आक्रामक या दुर्घटनाग्रस्त कुत्तों को सार्वजनिक स्थलों से हटाया जाएगा।
स्वस्थ कुत्तों को टीकाकरण व नसबंदी के बाद वापस छोड़ा जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सार्वजनिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से तो स्वागत योग्य है, लेकिन इसके क्रियान्वयन को लेकर कई व्यावहारिक चुनौतियाँ हैं। देश में फिलहाल इतने आश्रय गृह नहीं हैं जो लाखों आवारा पशुओं को एक साथ रख सकें।
अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे एक राष्ट्रीय पशु नियंत्रण नीति तैयार करें ताकि सड़कों से पशुओं को हटाने की प्रक्रिया मानवता और पशु अधिकारों दोनों के अनुरूप हो।




