भारत जैसे विविधता से भरे देश में धार्मिक भावनाएं और उनके इर्द-गिर्द पनपने वाली राजनीति अक्सर चर्चा का विषय रहती है। हाल ही में झारखंड के रांची स्थित राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में सरस्वती पूजा आयोजन को लेकर उठे विवाद ने न केवल छात्र समुदाय बल्कि पूरे राज्य में गहरी बहस छेड़ दी है। जहां एक ओर रिम्स प्रशासन ने पूजा को सीमित रूप से आयोजित करने का निर्णय लिया है, वहीं दूसरी ओर इस निर्णय को सोशल मीडिया पर गलत तरीके से धार्मिक रंग देकर हिंदू-मुस्लिम भावनाओं को भड़काने की कोशिश की जा रही है।
रिम्स में हर साल सरस्वती पूजा का भव्य आयोजन होता था। इस बार 24 जनवरी को कोकर क्षेत्र में रिम्स के छात्रों और बाहरी व्यक्तियों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद प्रबंधन ने पूजा पर रोक लगाने का निर्णय लिया। झड़प में एक एमबीबीएस छात्र गंभीर रूप से घायल हो गया था, जो अब भी वेंटिलेटर पर है। ऐसे में डीन स्टूडेंट वेलफेयर और रिम्स निदेशक प्रोफेसर राजकुमार की अगुवाई में बनी विशेष समिति ने यह निर्णय लिया कि पूजा आयोजन को स्थगित कर दिया जाए।
प्रबंधन ने सुरक्षा कारणों का हवाला दिया और कहा कि झड़प के बाद परिसर में तनाव का माहौल बना हुआ था। इसके अलावा, उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुसार अस्पताल परिसर से 200 मीटर तक किसी भी तरह के शोरगुल वाले आयोजन की अनुमति नहीं है।
पूजा की तैयारियों में जुटे छात्रों ने इस निर्णय का विरोध किया। उनका कहना था कि 70% तैयारियां पूरी हो चुकी थीं और चंदे की राशि भी इकट्ठा हो चुकी थी। छात्रों ने निर्णय पर पुनर्विचार की मांग की, जिसके बाद उच्च स्तर की निगरानी में सीमित रूप से पूजा की अनुमति दी गई।
इस बीच, सोशल मीडिया पर पूजा पर प्रतिबंध को धार्मिक रंग देने की कोशिश शुरू हो गई। कुछ तत्वों ने राज्य के स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी, जो मुस्लिम समुदाय से आते हैं, पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह निर्णय उनके दबाव में लिया गया है। हालांकि, रिम्स प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि मंत्री को इस मामले की कोई जानकारी नहीं थी और यह निर्णय पूरी तरह से प्रबंधन का था।
यह पहला अवसर नहीं है जब किसी विवाद को धार्मिक रंग देकर राजनीतिक मुद्दा बनाया गया हो। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, विशेषकर एक्स हैंडल, व्हाट्सएप ग्रुप्स, पर इस मुद्दे को हिंदू-मुस्लिम विवाद में तब्दील करने की कोशिश की गई। प्रबंधन के अनुसार, पूजा आयोजन पर निर्णय लेने वाली समिति में सभी सदस्य हिंदू समुदाय से हैं। बावजूद इसके, अफवाहें फैलाकर समाज में वैमनस्य पैदा करने की कोशिशें की गईं।
रिम्स परिसर में सरस्वती पूजा जैसे आयोजनों को लेकर पूर्व में भी विवाद होते रहे हैं। हर साल होने वाले इस आयोजन में डीजे बजाने, पटाखे फोड़ने और बाहरी व्यक्तियों की बड़ी संख्या में भागीदारी के कारण अस्पताल परिसर की शांति भंग होती रही है।
डीन स्टूडेंट वेलफेयर के अनुसार, छात्रों का व्यवहार अक्सर हुड़दंगी छात्रों जैसा हो जाता है, जिससे आमजन और परिसर के अन्य लोग परेशान रहते हैं। इस वर्ष भी पूजा के दौरान शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष समिति बनाई गई, जिसमें डॉ. शिव प्रिय, डॉ. लखन मांझी, डॉ. सुनंदा झा, डॉ. रेखा शर्मा, डॉ. देवेश कुमार, और डॉ. संदीप कुमार शामिल हैं।
झारखंड जैसे राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के मामलों की संख्या 2017-2022 के बीच 20% तक बढ़ी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में सांप्रदायिक हिंसा के 50 से अधिक मामले झारखंड में दर्ज किए गए। सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट और अफवाहें इन मामलों में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
रिम्स परिसर की बात करें तो पिछले तीन वर्षों में छात्रों और बाहरी व्यक्तियों के बीच झड़पों के छह मामले सामने आए हैं। 2023 में भी, परिसर में डीजे बजाने और पटाखे फोड़ने से जुड़े दो मामले रिपोर्ट किए गए थे, जिनमें स्थानीय प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा था।
रिम्स प्रशासन का सरस्वती पूजा पर रोक लगाने का निर्णय सुरक्षा और शांति बनाए रखने की दृष्टि से लिया गया प्रतीत होता है। उच्चतम न्यायालय के आदेशों और परिसर में बढ़ती हिंसक घटनाओं को देखते हुए यह निर्णय व्यावहारिक लगता है। हालांकि, छात्रों की तैयारी और चंदे की राशि को ध्यान में रखते हुए प्रबंधन को इस निर्णय के समय संवाद स्थापित करना चाहिए था।
इस पूरे प्रकरण ने यह स्पष्ट कर दिया कि कैसे कुछ तत्व प्रशासनिक निर्णयों को धार्मिक और राजनीतिक रंग देने का प्रयास करते हैं। झारखंड में हाल के वर्षों में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के मामले बढ़े हैं। यह स्थिति राज्य और समाज के लिए खतरनाक है, क्योंकि यह न केवल सांप्रदायिक सौहार्द को प्रभावित करती है, बल्कि प्रशासनिक निर्णयों पर भी दबाव डालती है।रिम्स जैसे संस्थानों में किसी भी धार्मिक आयोजन को लेकर स्पष्ट और पारदर्शी नीति होनी चाहिए। झूठी खबरों और अफवाहों को रोकने के लिए प्रशासन और पुलिस को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।छात्रों और प्रबंधन के बीच बेहतर संवाद सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की स्थितियां न उत्पन्न हों। ऐसे आयोजनों के लिए बनी समिति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आयोजन शांति और सुरक्षा के साथ संपन्न हो।
सरस्वती पूजा प्रकरण ने यह दिखा दिया कि किस प्रकार प्रशासनिक निर्णयों को राजनीतिक और धार्मिक मुद्दों में बदलने की कोशिश की जाती है। रिम्स प्रशासन ने यह निर्णय सुरक्षा और शांति बनाए रखने के लिए लिया, लेकिन इसके बावजूद कुछ तत्वों ने इसे सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया। ऐसे मामलों में समाज और प्रशासन दोनों को सतर्क रहना होगा। धार्मिक आयोजनों को प्रबंधन और छात्रों के सहयोग से शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित करने के प्रयास ही समाज में सौहार्द और एकता बनाए रखने में सहायक होंगे।