शरद कटियार

पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर प्रकरण ने न केवल देश के न्याय तंत्र की सच्चाई को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि अत्याचार और सत्ता का दुरुपयोग किसी भी महिला को उनके अधिकारों और सम्मान से वंचित नहीं कर सकता। पीड़िता का यह दृढ़ संकल्प कि “मैं न्याय के लिए आखिरी सांस तक लड़ूंगी,” समाज और न्यायपालिका दोनों के लिए एक मजबूत संदेश है। यह केवल व्यक्तिगत साहस का प्रतीक नहीं, बल्कि उन लाखों महिलाओं और लड़कियों के लिए प्रेरणा भी है, जो आज भी समाज में उत्पीड़न, हिंसा और अन्याय का सामना कर रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला इस दिशा में एक निर्णायक कदम है। यह केवल कुलदीप सेंगर को न्याय दिलाने तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे समाज को यह संदेश देता है कि कोई भी व्यक्ति—चाहे वह राजनीतिक प्रभावशाली क्यों न हो—कानून और न्याय के दायरे से बाहर नहीं रह सकता। पीड़िता ने सही ही कहा कि अगर आरोपी को जमानत मिल जाती, तो यह देशभर में ऐसे मामलों के लिए खतरनाक मिसाल बन सकती थी, जहां बहन-बेटियों के साथ अन्याय और हिंसा होती है। यह तथ्य समाज को यह सोचने पर मजबूर करता है कि न्याय की लड़ाई में देरी या प्रशासनिक ढिलाई कितनी हानिकारक हो सकती है।
इस प्रकरण में यह भी सामने आया कि पीड़िता और उनके परिवार को लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा, अनेक दफे पुलिस और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में धक्कामुक्की सहनी पड़ी। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि न्याय तक पहुंच की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है। पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अपने परिवार और समर्थकों को सीआरपीएफ सुरक्षा मिलने की बात कही, लेकिन यह सुरक्षा छह साल बाद वापस ले ली गई। यह संकेत देता है कि सरकारी तंत्र में पीड़ितों की सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है, ताकि कोई भी महिला, पीड़ित या उसके परिवार को धमकी और खतरे का सामना न करना पड़े।
सेंगर परिवार की बेटी इशिता सेंगर द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखी गई मार्मिक चिट्ठी भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वर्षों तक उन्होंने चुप्पी साधी, धैर्य रखा और केवल न्याय और कानून पर भरोसा किया। उन्होंने यह भी बताया कि उनकी पहचान केवल एक विधायक की बेटी तक सीमित कर दी गई, जिससे उनकी इंसानियत और पीड़ा नजरअंदाज हो गई। इस चिट्ठी में उन्होंने साफ शब्दों में बताया कि उनका और उनके परिवार का मौन विरोध प्रदर्शन या सोशल मीडिया अभियान की कमी से नहीं था, बल्कि उन्होंने संस्थाओं और न्याय प्रणाली पर विश्वास रखा। यह संदेश समाज के हर वर्ग के लिए चेतावनी है कि शक्ति, पद और राजनीति का दुरुपयोग अपराध को न्याय से बचाने के लिए नहीं किया जा सकता।
यह प्रकरण हमें यह भी याद दिलाता है कि न्याय केवल अदालतों तक सीमित नहीं है। यह समाज की नैतिक चेतना, पीड़ितों का साहस और समाज में सत्य और न्याय के पक्ष में उठने वाली आवाज़ों से भी मजबूत होता है। जो लोग सोशल मीडिया पर अपराधियों का पक्ष लेते हैं या उनकी सामाजिक स्वीकार्यता को बढ़ावा देते हैं, उन्हें यह समझना होगा कि ऐसा करना न केवल कानून का अपमान है, बल्कि समाज की नैतिकता के खिलाफ भी है।
इस पूरे मामले ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत में न्याय की लड़ाई लंबी हो सकती है, संघर्ष कठिन हो सकता है, लेकिन अंततः सत्य और न्याय की जीत अवश्य होगी। पीड़िता का यह साहस यह दर्शाता है कि हर पीड़ित महिला की आवाज़ कभी दबाई नहीं जा सकती। समाज को यह समझना होगा कि महिलाओं के खिलाफ अत्याचार, दमन और हिंसा केवल अपराध नहीं, बल्कि समाज की नींव और मानवता के खिलाफ अपराध है।
कुलदीप सेंगर प्रकरण सिर्फ एक व्यक्ति की सजा का मामला नहीं है, बल्कि यह उन सभी महिलाओं और परिवारों के लिए प्रेरणा है, जो सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक दबाव के कारण न्याय की लड़ाई में पीछे हटते हैं। यह प्रकरण यह स्पष्ट करता है कि न्याय और सच्चाई हमेशा विजयी होंगे और किसी भी ताकतवर या प्रभावशाली व्यक्ति को अपने अपराध की सजा से बचने का मौका नहीं मिलेगा।

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