
शरद कटियार
झांसी जिले से एक ऐसी खबर सामने आई है जिसने मानवता और चिकित्सा व्यवस्था दोनों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सड़क हादसे में घायल 27 वर्षीय दिनेश कुशवाहा का इलाज कराने आए उसके परिजनों को अस्पताल ने सिर्फ इलाज के नाम पर 1.07 लाख रुपये जमा कराने के बाद भी राहत नहीं दी। और जब दिनेश की मौत हो गई, तो अस्पताल ने परिवार से 77 हजार रुपये अतिरिक्त की मांग कर पांच घंटे तक शव उनके हवाले नहीं किया।
सबसे शर्मनाक पहलू यह था कि एंबुलेंस चालक ने घायल युवक को झांसी मेडिकल अस्पताल ले जाने के बजाय निजी अस्पताल में भर्ती कराया, जहाँ इंसानियत की जगह पैसे को सर्वोपरि माना गया। परिजन आर्थिक तंगी में फंसे हुए थे। गांव से आए लोगों और 25 हजार रुपये देने के बाद ही अस्पताल प्रशासन ने शव सौंपा।
यह केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है। परिवार ने अपने एकमात्र कमाने वाले की जान बचाने के लिए अपनी 50 डिसमिल जमीन तक बेच दी, लेकिन इंसानियत और न्याय उनके हाथ से फिसल गया। पत्नी मनीषा दो छोटे बच्चों के साथ अब बेमौत मातम में डूबी है।
यह घटना दिखाती है कि जब चिकित्सा संस्थान केवल लाभ कमाने के साधन बन जाएँ, तो गरीब परिवारों की जिंदगी और मौत दोनों ही व्यापार के अधीन हो जाती है। सरकारी निगरानी और सख्त कानून की आवश्यकता अब और अधिक बढ़ गई है।
दिनेश की मौत सिर्फ एक जीवन की क्षति नहीं है, बल्कि उस सिस्टम की पोल खोलती है, जो पैसे की ताकत से इंसानियत को दबा देता है। झांसी की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि अगर समाज में न्याय और मानवाधिकार की रक्षा नहीं हुई, तो गरीब और असहाय परिवार हमेशा शोषण का शिकार होंगे।
इस दुखद घटना ने स्पष्ट कर दिया है कि केवल चिकित्सा सुविधा होना पर्याप्त नहीं, बल्कि नैतिकता, सहानुभूति और कर्तव्यनिष्ठा भी उतनी ही जरूरी है। झांसी की यह शर्मनाक घटना हर नागरिक के लिए चेतावनी है कि इंसानियत की रक्षा के लिए हमें आवाज उठानी होगी।






