प्रशासन ने गुंडा नियंत्रण अधिनियम के साथ लिया सख्त कदम; अब कई मामलों में सच्चाई की जड़ तक पहुंचने की कोशिशें तेज हों
दस साल से इस शहर के अंधेरे कोनों में छिपे उन जुर्मीन जालों की मैं — शरद कटियार — लगातार पोल खोल रहा हूँ जिनकी आड़ में लोग डर के साये में जीते रहे। हालिया एडीएम कोर्ट के आदेश ने उस लम्बी, थकी-पर-अडिग लड़ाई को न्यायिक स्वर दे दिया है जिसमें अब “रच्छू ठाकुर” उर्फ अनूप सिंह राठौर, वकील अवधेश मिश्रा और माफिया अनुपम दुबे के नेटवर्क के काले धागे खुलकर सामने आए हैं।
एडीएम (नगर एवं राजस्व) अरुण कुमार सिंह द्वारा पारित आदेश संख्या 08/2024 (प्रकरण संख्या 42/2025) में स्पष्ट है कि अनूप सिंह राठौर को गुंडा नियंत्रण अधिनियम, 1970 (धारा 3(3)) के तहत शातिर अपराधी घोषित किया गया है। कोर्ट में पुलिस और निरीक्षकों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों से जुड़े मुकदमों और साक्ष्यों ने यह प्रमाणित किया कि इस गिरोह ने लोगों में भय और आतंक फैलाने, फर्जी मुकदमे दर्ज कर वसूली करने और संपत्ति विवादों में दबंगई जैसे कृत्यों को अपनाया। यह कदम न केवल एक व्यक्ति पर कार्रवाई है, बल्कि उस नेटवर्क पर प्रशासन का पहला सीधा प्रहार है जिसने कानूनी आड़ में अपराध को ठोस रूप दिया।
मैं यह साफ़ करना चाहूँगा कि यह लड़ाई किसी अखबार-न्यूज़पीस की तलाश नहीं, बल्कि सच्चाई का वाजिब हक है। पिछले दस वर्षों में मैंने इस गिरोह और इनके काले कारनामों की लगातार पड़ताल की — और वही लोग जिन्हें मैंने उजागर किया, आज खुलेआम सोशल मीडिया पर मेरी और मेरे परिवार की जान लेने की धमकियाँ दे रहे हैं। कई बार मुझ पर हत्या कराने के प्रयास भी किए गए, पर मैं रुकने वाला नहीं हूँ। जो लोग कानून और न्याय का सहारा लेकर अपराध कर रहे हैं, उन्हें रोकना हर नागरिक और हर सचेत संस्था की ज़िम्मेदारी है।
एडीएम का आदेश स्वागत योग्य और साहसिक है, पर असल काम तो अभी बाकी है — इस नेटवर्क की पूरी जड़ तक पहुंचकर सभी दोषियों पर कानूनी कार्यवाही सुनिश्चित करना, और उन लोगों की सुरक्षा पुख्ता करना जो सदियों से सच्चाई उजागर कर रहे हैं। पत्रकारों एवं परिवारों पर हो रही धमकियों की स्वतः और त्वरित जांच होनी चाहिए; जो भी शख्स किसी रिपोर्टर के विरुद्ध जानलेवा धमकी दे, उस पर कड़ी कार्रवाई हो। यही शासन-प्रकिया का असली चेहरा होगा — न केवल एक्शन का विज्ञापन, बल्कि वास्तविक न्याय।
शासन, प्रशासन को चाहिए कि,रच्छू ठाकुर और उसके समूचे नेटवर्क की नींव तक की जांच कर के, सभी सह-आरोपियों को चिन्हित कर गिरफ्तार किया जाए। मेरे जैसे पत्रकारों और उनके परिवारों को तत्काल सुरक्षा मुहैया करवाई जाए और धमकीकारों के खिलाफ विशेष सुरक्षा वाले मुकदमे दर्ज किए जाएँ।झूठे मुकदमों के जरिये किये गए वसूली के शिकार नागरिकों के शिकायत निवारण के लिये एक विशेष जांच-सदन बनाया जाए।
यह सिर्फ एक नाम या एक आदेश का मामला नहीं है — यह उस सिद्धांत का सवाल है कि कौन-सा फर्रुखाबाद हम चाहेंगे: एक जो गुंडाई और भय से चलाया जाए या एक जो कानून, पारदर्शिता और नागरिक सुरक्षा पर टिके। प्रशासन ने पहला कदम उठा लिया है; अब बाकी सबकी बारी है—नागरिक, पुलिस, न्यायपालिका और मीडिया—मिलकर इसका पालन और संरक्षण करना होगा।






