भारत–बांग्लादेश सीमा से इन दिनों जो तस्वीर सामने आ रही है, वह केवल अवैध प्रवासियों की “वापसी” भर की कहानी नहीं है। यह उस गहरी सच्चाई का संकेत है, जिसे वर्षों तक देश की राजनीतिक और प्रशासनिक संवेदनशीलता ने नजरअंदाज कर दिया था। दक्षिण बंगाल की सीमा पर BSF द्वारा रोजाना 100 से 150 अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को पकड़ा जाना कोई सामान्य घटना नहीं है—यह सुरक्षा, जनसंख्या संतुलन और राजनीतिक प्रबंधन के बड़े संकट की ओर इशारा करता है।
जैसे ही मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान की शुरुआत हुई, वैसे ही सीमा पर अवैध नागरिकों की भीड़ अचानक बढ़ गई। यह अपने आप में बताता है कि अवैध घुसपैठ सिर्फ एक “रोज़गार की मजबूरी” नहीं थी, बल्कि दशकों तक बिना दस्तावेज रहकर भारत में बस जाने की एक संगठित प्रवृत्ति थी, जिसे राजनीतिक सरंक्षण और प्रशासनिक शिथिलता के कारण बढ़ावा मिलता रहा।
आज जब कागज़, पहचान और सत्यापन की मांग उठी, तो हजारों लोग रातोंरात सीमा की ओर भाग रहे हैं—यह संकेत है कि देश के भीतर कितनी बड़ी संख्या में अघोषित और अनियंत्रित आबादी रहती आई है।
BSF ने खुद यह चेतावनी दी है कि हर व्यक्ति को मजदूर मान लेना सुरक्षा की सबसे बड़ी भूल होगी।
ऐसे प्रवासियों में अपराधी, तस्कर, कट्टरपंथी या संगठित गिरोहों से जुड़े लोग भी शामिल हो सकते हैं।
तभी हर व्यक्ति की बायोमेट्रिक जांच और पूछताछ अनिवार्य की गई है।
लेकिन सवाल यह है कि—
क्या हमारी सीमाएँ इतने सालों तक ऐसी खुली ही थीं कि आज हजारों की तादाद में लोग अचानक लौटने लगें?
जो लोग पकड़े जा रहे हैं, उनमें लगभग किसी के पास पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज नहीं हैं।
इसका सीधा अर्थ है कि:
प्रवेश अवैध था
ठहराव अवैध था
और वर्षों तक किसी ने इनकी मौजूदगी जानने की कोशिश तक नहीं की
यह केवल सुरक्षा विफलता नहीं, बल्कि आंतरिक जनसंख्या प्रबंधन की लापरवाही का बड़ा उदाहरण है।
BSF ने स्पष्ट किया है कि इतने बड़े पैमाने पर हिरासत केंद्र या प्रोसेसिंग सिस्टम संभव ही नहीं है।
इसलिए सुरक्षा जांच के बाद अधिकांश लोगों को BGB के हवाले करना ही व्यावहारिक विकल्प है।
लेकिन देश के सामने बड़ा प्रश्न यह है,क्या यह व्यवस्था भविष्य में और भी बड़े जनसंख्या विस्थापन का रास्ता खोल रही है?
जो स्थिति आज दिख रही है, वह अचानक नहीं बनी।
सालों तक वोटबैंक की राजनीति ने अवैध प्रवासियों को “सहूलियतें” दीं।
स्थानीय प्रभावशाली वर्ग ने उन्हें मजदूरी, पहचान और आश्रय दिया।
जब जांच का दौर शुरू हुआ, तो यह पूरा ढांचा खुद ढहने लगा।
यह संकट हमें याद दिलाता है कि आंतरिक सुरक्षा और जनसंख्या नीति राजनीतिक सौदेबाज़ी का विषय नहीं हो सकती।
भारत को अब
सीमाओं की पुनर्समीक्षा
अवैध आबादी के वास्तविक आंकड़ों की पहचान
और जनसंख्या से जुड़ी स्पष्ट राष्ट्रीय नीति
की ज़रूरत है। यह केवल संख्याओं का मामला नहीं; यह राष्ट्र की सुरक्षा, संसाधनों के संतुलन और सामाजिक संरचना का प्रश्न है।
भारत–बांग्लादेश सीमा पर बढ़ती हलचल केवल लोगों की वापसी नहीं है—यह उस समस्या का खुला हुआ पन्ना है, जिसे दशकों से दबाकर रखा गया था। SIR अभियान ने सिर्फ धूल हटाई है; असली तस्वीर देश को अब दिखाई दे रही है।
सरकार और समाज दोनों को यह समझने का समय आ गया है कि अवैध प्रवासन केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सुरक्षा और जनसांख्यिकीय चुनौती है, और इससे निपटने के लिए भावनाओं नहीं, कठोर नीति और ठोस इच्छाशक्ति की जरूरत है।






