(डॉ. फ़ौज़िया नसीम शाद-विभूति फीचर्स)
आज जिस तीव्रता के साथ हमारे नैतिक और सामाजिक मूल्यों में गिरावट आ रही है, वह वास्तव में गंभीर चिंता का विषय है। रिश्तों को कलंकित करती घटनाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं, जो हमारे समाज में अमर्यादित संबंधों की वृद्धि को दर्शाती हैं। ऐसे अवैध रिश्ते न केवल रिश्तों की मर्यादा और गरिमा को आहत करते हैं, बल्कि उन पर हमारे विश्वास की नींव को भी हिला देते हैं।आजकल समाचार पत्रों में प्रतिदिन ऐसी घटनाओं की सुर्खियाँ देखने को मिलती हैं जिन्हें पढ़कर सिर शर्म से झुक जाता है।
कहीं सगा मामा भांजी से विवाह कर आत्महत्या कर लेता है, कहीं पिता अपनी पुत्री का यौन शोषण करता है, तो कहीं पति अपनी पत्नी को बेच देता है। ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जो रिश्तों की पवित्रता पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं। हमारे सभ्य समाज में इन अमर्यादित रिश्तों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए, फिर भी इनकी जड़ें धीरे-धीरे फैलती जा रही हैं। यह अत्यंत गंभीर चिंतन का विषय है।
वास्तव में जब समाज के नैतिक मूल्यों और आचार नियमों को कुछ दूषित एवं विकृत मानसिकता वाले लोग तोड़ते हैं, तभी ऐसी घटनाएँ सामने आती हैं। परंतु हम केवल कुछ व्यक्तियों की मानसिक विकृति को दोष देकर इससे पल्ला नहीं झाड़ सकते। इस समस्या की उत्पत्ति के अनेक कारण हैं – तेज़ रफ़्तार जीवनशैली, समय का अभाव, आपसी रिश्तों में संवेदनहीनता, संयुक्त परिवारों का विघटन, अश्लील साहित्य, इंटरनेट पर सहजता से उपलब्ध पोर्न साइट्स, टीवी और वेब सामग्री की अशालीनता, सीमित घरेलू परिवेश, तथा परिवार में बच्चों के साथ संवाद की कमी आदि।
इसके अतिरिक्त, बच्चों को रिश्तों का महत्व और मर्यादा न सिखाना भी इस समस्या को बढ़ाने वाला प्रमुख कारण है। समाज में ऐसे रिश्तों का अस्तित्व न पनपे, इसके लिए हमें रिश्तों की गरिमा और मर्यादा का विशेष ध्यान रखना होगा। परिवार में बच्चों को संस्कारित करना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उन्हें रिश्तों के सम्मान का अर्थ भी समझाना होगा।
बच्चों से हर विषय पर खुलकर संवाद स्थापित करना आवश्यक है। सैक्स से जुड़े प्रश्नों का शालीनता के साथ तार्किक उत्तर देना चाहिए, न कि भ्रमित कर उनकी जिज्ञासाओं को और बढ़ाना।
बच्चे अपने माता-पिता का आईना होते हैं, अतः यह हमारा कर्तव्य है कि उनके समक्ष अमर्यादित वार्तालाप या व्यवहार से बचें, क्योंकि ऐसा करने से उनके कोमल मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
अंततः यह याद रखना चाहिए कि समाज बनता हमसे ही है, इसलिए अगर हम अपने घर से ही नैतिकता, मर्यादा और सम्मान का वातावरण बनाएँगे, तो समाज की दिशा अवश्य सुधरेगी। (विभूति फीचर्स)






