कायमगंज , फर्रुखाबाद: साहित्यिक संस्था साधना निकुंज (Literary institution Sadhana Nikunj) एवं अनुगूंज के संयुक्त तत्वावधान (joint auspices) में महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि पर कृष्णा प्रेस परिसर में समीक्षा गोष्ठी आयोजित की गई। इस अवसर अपने संबोधन में प्रोफेसर रामबाबू मिश्र रत्नेश ने कहा कि महादेवी छायावाद की सबसे प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं। उनके काव्य में पुरातन का गौरव और नवयुग का अभिनंदन है। प्रकृति के सौंदर्य के साथ मानवीय संवेदनाओं का सुंदर चित्रण है। परंपरा और प्रगति का सुंदर सामंजस्य है । वेदना का उजास है वहीं नवजागरण का शंखनाद है।
गीतकार पवन बाथम ने कहा कि महादेवी वर्मा सहित सभी छायावादी कवियों के गीत लयात्मक सौंदर्य का खजाना हैं। उनकी परिमार्जित भाषा में इतर भाषाओं के शब्द नहीं मिलते। सर्व समावेशी हिंदी भाषाविदों को इस सच्चाई का नोटिस लेना चाहिए। पूर्व प्रधानाचार्य अहिवरन सिंह गौर एवं प्रधानाचार्य शिवकांत शुक्ला ने कहा कि प्रसाद पंत निराला और महादेवी वर्मा का छायावाद चतुष्टय विश्व साहित्य में अपना सानी नहीं रखता, इन कवियों का गद्य भी काव्यात्मक है और कविता सीधे पाठकों के हृदय में उतरती है।
अनुपम मिश्रा ने कहा कि मानव प्रकृति परंपरा नवयुग से संवाद है। हिंदी साहित्य का दर्पण छायावाद। छात्र यशवर्धन ने कहा कि उनकी कविता में रहते हैं सघन वेदना के स्वर। नीर भरी दुख की बदली हैं आंसू बहते हैं झर झर।।