सड़क सुरक्षा: हादसों से सीखने का वक्त

0
124

प्रशांत कटियार

उत्तर प्रदेश में सड़क हादसों की घटनाएं लगातार चिंता का विषय बनी हुई हैं। आए दिन सड़कों पर लापरवाही, यातायात नियमों की अनदेखी और प्रशासनिक खामियों के कारण लोगों की जान जा रही है। यह समस्या अब केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं रही, बल्कि हर परिवार के लिए एक डरावनी हकीकत बन चुकी है। सड़क हादसों की सबसे बड़ी वजहें तेज़ रफ्तार, शराब पीकर गाड़ी चलाना, गलत दिशा में वाहन चलाना और ट्रैफिक सिग्नल तोड़ना हैं। इसके अलावा खराब सड़कें, गड्ढे और सड़क किनारे सुरक्षा इंतज़ामों की कमी भी दुर्घटनाओं को बढ़ावा देती हैं। ग्रामीण इलाकों में बिना रिफ्लेक्टर वाले ट्रैक्टर-ट्रॉली और बिना स्ट्रीट लाइट वाली सड़कें हादसों को आम बना रही हैं।हेलमेट और सीट बेल्ट सड़क सुरक्षा के सबसे बुनियादी नियम हैं, लेकिन लोग इन्हें मामूली समझते हैं। बिना हेलमेट बाइक चलाने और बिना सीट बेल्ट कार चलाने की आदत जानलेवा साबित होती है। खासकर छोटे शहरों और कस्बों में लोग पुलिस को देखकर हेलमेट पहनते हैं और चेकिंग खत्म होते ही उतार देते हैं। यही मानसिकता हादसों को और घातक बना देती है।सरकार ने सड़क सुरक्षा को लेकर कई योजनाएं शुरू की हैं। जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं, स्कूल कॉलेजों में सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जाता है और जगह जगह होर्डिंग लगाए जाते हैं। वहीं, हाइवे पर सीसीटीवी कैमरे और चालान प्रणाली भी लागू की गई है। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि ज्यादातर लोग अभी भी यातायात नियमों को गंभीरता से नहीं लेते। पुलिस की कार्रवाई कई बार केवल दिखावे तक सीमित रह जाती है।
सड़क सुरक्षा केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है। हेलमेट और सीट बेल्ट पहनना, ट्रैफिक नियमों का पालन करना और सड़क पर अनुशासन बनाए रखना हर किसी की आदत बननी चाहिए। अगर हम अब भी नहीं सुधरे, तो उत्तर प्रदेश की सड़कें और अधिक खतरनाक होती जाएंगी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here