किशोरों और युवाओं में आक्रामकता (Aggression) और हिंसा की बढ़ती घटनाएं हमारे समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुकी हैं। हाल के दिनों में ऐसे अपराधों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, जिनमें किशोरों ने न केवल हिंसक वारदातों को अंजाम दिया है, बल्कि कई मामलों में अपने ही परिवार के सदस्यों, शिक्षकों, और समाज के अन्य व्यक्तियों को अपना शिकार बनाया है।
गोरखपुर में भाभा रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक वैज्ञानिक की पत्नी की उनके ही नाबालिग बेटे द्वारा हत्या करना समाज में मौजूद इस समस्या की भयावहता को उजागर करता है। यह घटना मात्र एक उदाहरण नहीं है, बल्कि ऐसी घटनाओं की श्रृंखला का हिस्सा है, जो किशोरों में बढ़ती हिंसा की प्रवृत्ति को दर्शाती है।
इसी प्रकार छतरपुर, नालंदा, मुम्बई, और दिल्ली जैसे स्थानों पर हालिया घटनाएं यह दर्शाती हैं कि किशोर अब छोटी-छोटी बातों पर भी घातक कदम उठाने से नहीं हिचकते। किसी ने माता-पिता की डांट का बदला लिया, तो किसी ने शादी में रसगुल्ले को लेकर हुए विवाद पर हत्या कर दी।
ये घटनाएं न केवल किशोरों के मानसिक और भावनात्मक असंतुलन की ओर इशारा करती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि समाज के मौजूदा तंत्र, जिसमें परिवार, स्कूल, और सामुदायिक संगठन शामिल हैं, इस समस्या को रोकने में असफल हो रहे हैं। किशोरों और युवाओं में बढ़ती हिंसा के पीछे कई सामाजिक, मानसिक और सांस्कृतिक कारण जिम्मेदार हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कारण हैं,जैसे आजकल किशोर सोशल मीडिया, ओटीटी प्लेटफार्म और फिल्मों में दिखाई जाने वाली हिंसा, यौन सामग्री, और असामाजिक आचरण से अत्यधिक प्रभावित हो रहे हैं। हिंसा और अपराध को रोमांचक तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, जो किशोर मनोविज्ञान को दूषित करता है।
अभिभावकों द्वारा बच्चों की भावनात्मक और नैतिक जरूरतों की उपेक्षा किशोरों को अपराध की ओर धकेलती है। बच्चों के साथ समय न बिताना और उनके व्यवहार को समझने में असमर्थता, उनके मानसिक विकास को प्रभावित करती है।
स्कूल और कॉलेजों में नैतिक शिक्षा का अभाव एक बड़ी समस्या है। शिक्षा प्रणाली में प्रतिस्पर्धा और ग्रेड्स पर अधिक जोर दिया जाता है, जबकि मानवीय मूल्यों और नैतिकता पर कम ध्यान दिया जाता है।
किशोर न्याय अधिनियम का उद्देश्य सुधार था, लेकिन इसका दुरुपयोग हो रहा है। अपराधी जानते हैं कि नाबालिग होने के कारण उन्हें सख्त सजा नहीं मिलेगी। इससे किशोरों में अपराध करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। धार्मिक और सामाजिक संगठनों का बच्चों और किशोरों के चरित्र निर्माण में योगदान नगण्य हो गया है। ये संगठन कर्मकांडों में उलझे हुए हैं, जबकि नैतिक और सामाजिक मूल्यों का पाठ पढ़ाने की जरूरत है।
किशोरों में बढ़ती आक्रामकता का असर सिर्फ अपराधों तक सीमित नहीं है। यह समाज की संरचना, परिवार की स्थिरता, और भावी पीढ़ियों के विकास पर गहरा प्रभाव डालता है। किशोरों में हिंसा का बढ़ना समाज के लिए एक चेतावनी है, क्योंकि ये भविष्य में और बड़े सामाजिक संकट का कारण बन सकते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार, समाज, और परिवार सभी को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।
सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्म पर हिंसक और असामाजिक सामग्री पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। सेंसरशिप के साथ-साथ जागरूकता अभियान चलाकर बच्चों और किशोरों को इस सामग्री से दूर रखना होगा।
अभिभावकों की भूमिका अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ संवाद बढ़ाना चाहिए। उनकी भावनाओं को समझना, उनके साथ समय बिताना, और उनके व्यवहार पर ध्यान देना जरूरी है।
शिक्षा में नैतिकता का समावेश
स्कूलों में नैतिक शिक्षा को अनिवार्य किया जाना चाहिए। बच्चों को सदाचार, आत्मानुशासन और सहिष्णुता के महत्व को सिखाने के लिए विशेष पाठ्यक्रम तैयार किए जाने चाहिए। किशोर न्याय प्रणाली में सुधार
किशोर न्याय अधिनियम में बदलाव कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गंभीर अपराधों में शामिल किशोरों को उचित सजा मिले। यह अन्य किशोरों को अपराध से दूर रखने में मदद करेगा।
सामाजिक और धार्मिक संगठनों को किशोरों के मानसिक और नैतिक विकास में योगदान देना चाहिए। बच्चों और किशोरों को मानवीय मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारियों का पाठ पढ़ाने के लिए कार्यशालाएं और कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
किशोरों के लिए परामर्श सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। स्कूलों और सामुदायिक केंद्रों में मनोवैज्ञानिक परामर्श सेवाओं का विस्तार किया जाना चाहिए।
किशोरों में बढ़ती आक्रामकता केवल एक सामाजिक समस्या नहीं है, बल्कि यह हमारे भविष्य के लिए खतरा है। यदि समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो यह हमारी समाज व्यवस्था को गहरे संकट में डाल सकती है।
समाज को यह समझना होगा कि किशोर हमारे समाज के कर्णधार हैं। इन्हें सही दिशा देना, इनके चाल और चरित्र की रक्षा करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। परिवार, स्कूल, समाज और सरकार को मिलकर एक ऐसा माहौल बनाना होगा, जहां किशोर नैतिकता, सहिष्णुता, और सदाचार को अपनाएं और हिंसा और अपराध से दूर रहें।