प्रशांत कटियार ✍️
कॉलेज में एडमिशन की प्रक्रिया के दौरान छात्रों को आय, जाति, निवास और चरित्र प्रमाण पत्र जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों को जुटाने की जरूरत होती है। यह प्रक्रिया निश्चित रूप से समय-सारणी के हिसाब से चलती है, लेकिन इसके साथ जुड़ी हुई एक कड़वी सच्चाई है – रिश्वत का खेल। जन सुविधा केंद्रों के कर्मचारी सर्टिफिकेट के लिए जल्दबाजी दिखाने के नाम पर छात्रों से 400-500 रुपये की अतिरिक्त राशि वसूलते हैं। जिनके पास पैसे नहीं होते, उन्हें महीने भर इंतजार करने की सलाह दी जाती है, जबकि नियमों के अनुसार प्रमाण पत्र केवल बीस कार्यदिवसों में मिलने चाहिए।
यह स्थिति केवल एक भ्रष्टाचार का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह युवा पीढ़ी के मानसिकता पर भी गहरा असर डाल रही है। जिन छात्रों को शुरू से ही रिश्वत देने का दबाव झेलना पड़ता है, वे बड़े होकर समाज में वही मानसिकता अपनाते हैं। वे यह सोचने लगते हैं कि किसी काम को जल्दी और आसानी से कराने के लिए रिश्वत देना ही एकमात्र रास्ता है। इस प्रकार, हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ रहे हैं, जहां हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार को स्वीकार्यता मिलती जा रही है और ईमानदारी को नाकाफी माना जाने लगता है।
अगर इस दुष्चक्र को तोड़ना है, तो हमें एक साथ मिलकर इसकी जड़ में घुसी हुई इस मानसिकता का विरोध करना होगा। प्रशासन और सरकारी तंत्र को सख्त कदम उठाने होंगे ताकि युवाओं के मन में एक स्वस्थ और ईमानदार समाज की कल्पना बनाई जा सके। यही नहीं, शिक्षा संस्थाओं को भी छात्रों को यह सिखाने की जिम्मेदारी उठानी होगी कि किसी भी स्थिति में भ्रष्टाचार का समर्थन नहीं किया जा सकता, और जो सही है, वही अंततः सफलता की कुंजी है।अंततः, यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज उठाएं और एक ऐसा समाज बनाएं जहां ईमानदारी और कड़ी मेहनत को सम्मान मिले।
