शरद कटियार
भारत (India) में सामाजिक न्याय (social justice) और समावेशिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए केंद्र सरकार (Central government) ने 30 अप्रैल 2025 को जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लिया है। यह निर्णय न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि यह आरक्षण नीति और सामाजिक संरचना में संभावित बदलावों का संकेत भी देता है। भारत में पहली बार 1872 में अंग्रेजों के शासनकाल में जनगणना हुई थी, जिसमें जाति संबंधी जानकारी दर्ज की गई थी। 1931 तक यह प्रक्रिया जारी रही, लेकिन स्वतंत्रता के बाद 1951 की जनगणना में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की जानकारी एकत्र की गई। इसके बाद से जातिगत जनगणना का मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक बहस का विषय बना रहा।
1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27% आरक्षण प्रदान किया गया। हालांकि, उस समय OBC की जनसंख्या के सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं थे। अब, जातिगत जनगणना के माध्यम से सरकार के पास विभिन्न जातियों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति के विस्तृत आंकड़े उपलब्ध होंगे, जो नीतिगत निर्णयों के लिए महत्वपूर्ण होंगे।
वर्तमान में भारत में आरक्षण की कुल सीमा 59.5% है, जिसमें SC को 15%, ST को 7.5%, OBC को 27% और आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग (EWS) को 10% आरक्षण प्रदान किया गया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 1992 के इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% निर्धारित की थी। इस सीमा को पार करने के प्रयासों को अदालत ने असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर खारिज कर दिया है।
जातिगत जनगणना के आंकड़ों के आधार पर विभिन्न जातियों की वास्तविक जनसंख्या और सामाजिक स्थिति का पता चलेगा। यदि OBC की जनसंख्या 40% से अधिक पाई जाती है, तो उन्हें 27% आरक्षण पर्याप्त नहीं माना जाएगा, जिससे आरक्षण सीमा बढ़ाने की मांग उठ सकती है। आरक्षण सीमा बढ़ाने के लिए संविधान में संशोधन करना आवश्यक होगा, ताकि सुप्रीम कोर्ट की निर्धारित 50% सीमा को पार किया जा सके। जातिगत जनगणना के आंकड़े राजनीतिक दलों के लिए रणनीति निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। OBC और अन्य पिछड़े वर्गों की मांगों को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र और नीतियों में बदलाव कर सकते हैं।
जातिगत जनगणना के बाद निजी शिक्षण संस्थानों और निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू करने की मांग जोर पकड़ सकती है। कांग्रेस पार्टी ने पहले ही निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू करने की मांग की है। जातिगत जनगणना के दौरान पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना आवश्यक है। इसके अलावा, आंकड़ों का दुरुपयोग रोकने और सामाजिक समरसता बनाए रखने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे।
जातिगत जनगणना भारत के सामाजिक न्याय प्रणाली में एक नया अध्याय जोड़ने जा रही है। इसके माध्यम से न केवल आरक्षण नीति में सुधार संभव होगा, बल्कि यह सामाजिक असमानताओं को दूर करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। हालांकि, इसके सफल क्रियान्वयन के लिए सरकार, न्यायपालिका और समाज के सभी वर्गों को मिलकर काम करना होगा, ताकि यह पहल सामाजिक समरसता और समावेशिता को बढ़ावा दे सके।
शरद कटियार
ग्रुप एडिटर
यूथ इंडिया न्यूज ग्रुप