– प्रदेश में हर मोर्चे पर अखिलेश यादव अकेले लड़ रहे राजनीतिक जंग, राहुल गांधी की चुप्पी पर उठे सवाल
प्रशांत कटियार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति इन दिनों उथल-पुथल से गुजर रही है—चाहे बात हो भ्रष्टाचार के आरोपों की, सामाजिक उत्पीड़न की घटनाओं की, या लोकसभा चुनाव के बाद के राजनीतिक समीकरणों की। लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की रहस्यमयी चुप्पी और अनुपस्थिति चर्चा का विषय बन गई है।
जबसे कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन हुआ है, ऐसा प्रतीत होता है कि राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश की ज़िम्मेदारी पूरी तरह अखिलेश यादव के कंधों पर छोड़ दी है। चाहे हाल की घटनाएं रही हों — दलितों पर हमले, प्रशासनिक ज्यादतियां, या बेरोजगारी और किसानों की समस्याएं — राहुल गांधी कहीं नजर नहीं आए।
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने अमेठी से दूरी बना ली और रायबरेली की जीत के बाद उन्हें यह लगने लगा कि यूपी में अब जिम्मेदारी साझा हो चुकी है। ऐसे में उन्होंने पूरी तरह मौन रहना और अखिलेश यादव पर भरोसा जताना शुरू कर दिया है।
दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर अखिलेश यादव सीधे मैदान में नजर आते हैं, वहीं राहुल गांधी न बयान देते हैं न ट्वीट करते हैं।
शिक्षा और भर्ती घोटालों, कर्मचारी आंदोलनों, और किसानों की समस्याओं पर भी अखिलेश यादव ही धरना-प्रदर्शन और प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखते हैं।
कई कांग्रेस कार्यकर्ता और युवा नेता खुद इस चुप्पी से हताश हैं। उनका मानना है कि अगर राहुल गांधी उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य को अनदेखा करेंगे, तो संगठन की जड़ें और कमजोर होंगी।
कांग्रेस के एक जिला स्तरीय नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा:
“हमारे कार्यकर्ता संघर्ष के लिए तैयार हैं, लेकिन नेतृत्व का मौन मनोबल गिराता है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में मौन राजनीति नहीं चलती।”
यह सवाल अब आम जनता से लेकर विपक्षी दलों तक में उठने लगा है — क्या कांग्रेस ने यूपी में सिर्फ सीटें पाने के लिए गठबंधन किया और अब जिम्मेदारी से खुद को अलग कर लिया?
अगर ऐसा है, तो यह गठबंधन सिर्फ आंकड़ों का गठजोड़ बनकर रह जाएगा, जनता के भरोसे का नहीं।
“राजनीति में गठबंधन जिम्मेदारी बांटने का नहीं, बढ़ाने का नाम है — लेकिन राहुल गांधी की चुप्पी इसे नकारती है।”
फिलहाल उत्तर प्रदेश की विपक्षी राजनीति में एक ही चेहरा सक्रिय दिखता है — अखिलेश यादव। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस नेतृत्व इस चुप्पी को तोड़ेगा या अखिलेश को ही ‘गठबंधन का अकेला सेनापति’ मान लिया गया है?