लखनऊ: उत्तर प्रदेश रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (UP-RERA) के अध्यक्ष और ईमानदार (honesty) छवि वाले वरिष्ठ IAS अधिकारी संजय भूसरेड्डी के बेटे जयश भूसरेड्डी को एक अहम कमेटी (committee) में सदस्य बनाए जाने से सरकार और नौकरशाही में हलचल मच गई है। सवाल यह है कि क्या पारदर्शिता और नैतिक प्रशासन की बात करने वाले अफसर के परिवार को लाभ पहुंचाया गया?
दरअसल, यूपी रेरा द्वारा हाल ही में रियल एस्टेट की डिफॉल्टर 196 परियोजनाओं के मामलों की समीक्षा और नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में उचित प्रतिनिधित्व के लिए एक कमेटी गठित की गई थी। इस कमेटी में शामिल नामों में जयश भूसरेड्डी का नाम सामने आते ही हैरानी की लहर दौड़ गई, क्योंकि वह यूपी रेरा के वर्तमान अध्यक्ष संजय भूसरेड्डी के पुत्र हैं।
यूपी में रियल एस्टेट सेक्टर की लगभग 200 डिफॉल्टर कंपनियों के मामले NCLT में विचाराधीन हैं। इनमें लखनऊ, नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद की बड़ी बिल्डर कंपनियां भी शामिल हैं। इन मामलों की कानूनी समीक्षा और प्राधिकरण का पक्ष रखने के लिए यूपी रेरा ने एक विशेषज्ञ कमेटी बनाई थी। यही वह कमेटी है, जिसमें जयश भूसरेड्डी को सदस्य बनाए जाने पर लोगों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। क्या यह पारदर्शिता का उल्लंघन है, या महज़ एक संयोग? जनता, मीडिया और प्रशासनिक हलकों में इस घटना को लेकर चर्चा गर्म है। अब देखना यह होगा कि यूपी रेरा इस मुद्दे पर क्या स्पष्टीकरण देता है और क्या यह नियुक्ति वाकई रद्द की जाती है।
बताते चलें कि संजय भूसरेड्डी को एक ईमानदार और परिणामदायक अफसर माना जाता रहा है। बतौर आबकारी आयुक्त उन्होंने दावा किया था कि उन्होंने प्रदेश का आबकारी राजस्व 17-18 हजार करोड़ से बढ़ाकर 45 हजार करोड़ रुपये सालाना कर दिया। इसी कारण उन्हें यूपी रेरा जैसे संवेदनशील और प्रतिष्ठित पद पर नियुक्त किया गया था, जहाँ पहले यूपी के पूर्व मुख्य सचिव राजीव कुमार पदस्थ थे। लेकिन अब उनके बेटे की नियुक्ति पर उठते सवाल उनके प्रशासनिक नैतिकता के मानकों पर भी प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं।
सवाल जो उठ रहे हैं:
क्या जयश भूसरेड्डी की नियुक्ति योग्यता के आधार पर हुई या पद के प्रभाव के कारण?
क्या यह नैतिक टकराव (conflict of interest) नहीं माना जाएगा?
क्या अन्य योग्य विशेषज्ञों की उपेक्षा कर रेरा ने पक्षपात किया?
सूत्रों की मानें तो मामला सार्वजनिक होने के बाद भूसरेड्डी के करीबी अधिकारियों ने एक हफ्ते के भीतर आदेश रद्द होने का दावा किया है। हालांकि, अधिकारिक रूप से अब तक न तो यूपी रेरा की ओर से कोई प्रेस रिलीज़ जारी की गई है और न ही संजय भूसरेड्डी या उनके बेटे की ओर से कोई बयान सामने आया है।